मथुरा : विजयदशमी का पर्व हर साल हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. त्रेतायुग में कान्हा की नगरी मथुरा में यमुना नदी के किनारे लंकापति रावण ने शिवलिंग की स्थापना की. इस प्राचीन मंदिर में हर साल सारस्वत ब्राह्मण समाज के लोग रावण के पुतला दहन का विरोध करते हैं. और इस मंदिर में रावण की पूजा अर्चना करने के बाद आरती की जाती है.
मथुरा शहर के लक्ष्मी नगर के यमुना नदी के किनारे शिवलिंग का प्राचीन मंदिर है, जो कि त्रेतायुग का बताया जाता है. कहा जाता है कि इस स्थान पर लंकापति रावण ने शिवलिंग की स्थापना की. यहां पर हर साल सारस्वत समाज के सैकड़ों लोग एकजुट होते हैं. मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद रावण की आरती उतारी जाती है. यह स्थान यमुना नदी से मात्र 30 मीटर की दूरी पर है.
रावण के पुतला दहन का विरोध
असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक विजयदशमी का पर्व रावण का पुतला दहन करके मनाया जाता है. लेकिन मथुरा जनपद में सारस्वत ब्राह्मण समाज के लोग रावण के पुतला दहन का विरोध करते हैं. इनका मानना है कि लंकापति रावण प्रचंड विद्वान और वेदों का ज्ञाता थे. भगवान शिव की आराधना करता थे. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी रावण की शिव के प्रति भक्ति, वेदों का ज्ञाता होने व महा शक्तियों का समावेश देखकर कहा था- रावण के बराबर कोई विद्वान इस धरती पर नहीं होगा. सारस्वत ब्राह्मण समाज के लोगों का कहना है- हिंदू संस्कृति के अनुसार मरे हुए व्यक्ति का एक बार ही पुतला जलाया जाता है न कि बार बार. लेकिन हर साल विजयदशमी के पर्व पर रावण का पुतला दहन किया जाता है जोकि अनुचित है.
कृष्ण की नगरी मथुरा से लंकापति रावण का रिश्ता
त्रेतायुग में लंकापति रावण का नाता मथुरा से भी था. रावण की दो बहनें सुपर्णखा और कुंभिनी थी. कुंभिनी का विवाह मधु राक्षस के साथ मथुरा में हुआ था. मथुरा का प्राचीन नाम मधुपुरा था. अपनी बहन से मिलने के लिए लंकापति रावण मधुपुरा आता जाता रहता था. कुंभिनी राक्षस लवणासुर की मां थी. इसलिए रावण का मथुरा से पुराना नाता रहा है.
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लंकेश भक्त मंडल समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत ने कहा कि लोगों को रावण का सम्मान करना चाहिए, पुतला दहन नहीं करना चाहिए. जब हम भगवान राम का सम्मान करते हैं तो हमें लंकेश्वर का भी सम्मान करना चाहिए. उनका कहना था कि विजयदशमी के दिन महाराज दशानन विष्णुलोक को गए थे, उस दिन मथुरा में महाराज रावण की विशेष महाआरती की जाती है. और लोगों से प्रार्थना की जाती है कि पुतला दहन न किया जाए.