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बदलेगी आपराधिक प्रवृत्ति और सुधरेंगे बंदी, जेल प्रशासन करा रहा भजन कीर्तन

इसके लिए जिला कारागार प्रशासन की ओर से बंदियों को पूर्ण सहयोग किया जा रहा है. कारागार प्रशासन बाहर से भी धार्मिक उपदेशक बुलाकर बंदियों को धार्मिक उपदेश दिलवाता है ताकि वह जल्द आपराधिक प्रवृत्ति को छोड़ मुख्यधारा में शामिल हो सकें.

बदलेगी आपराधिक प्रवृत्ति और सुधरेंगे बंदी, जेल प्रशासन करा रहा भजन कीर्तन
बदलेगी आपराधिक प्रवृत्ति और सुधरेंगे बंदी, जेल प्रशासन करा रहा भजन कीर्तन
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Published : Oct 20, 2021, 4:34 PM IST

मथुरा : जिला कारागार मथुरा अपने यहां निरुद्ध बंदियों को आपराधिक प्रवृत्ति से दूर रखने के लिए एक अनूठी पहल कर रहा है. इस पहल के अंतर्गत जिला कारागार में निरुद्ध बंदियों को कारागार प्रशासन द्वारा धार्मिक प्रवृत्ति की ओर लाने का प्रयास किया जा रहा है. इसके चलते कारागार प्रशासन द्वारा हर रोज निरुद्ध बंदियों से भजन कीर्तन सुंदरकांड आदि कराया जाता है. इसके लिए कभी-कभी कारागार प्रशासन की ओर से बाहर से धार्मिक उपदेशक भी बुलाए जाते हैं.

बदलेगी आपराधिक प्रवृत्ति और सुधरेंगे बंदी, जेल प्रशासन करा रहा भजन कीर्तन

जिला कारागार प्रशासन का मानना है कि धार्मिक प्रवृत्ति की ओर आने से कारागार में निरुद्ध बंदियों की आपराधिक प्रवृत्ति दूर होगी और वह अपनी सजा काटने के बाद बाहर निकलने के बाद मुख्यधारा से जुड़ सकेंगे.

बता दें कि बंदियों में धार्मिक प्रवृत्ति जगाने के लिए जेल प्रशासन विभिन्न कामों को कर रहा है. इसके तहत जिला कारागार में निरुद्ध बंदी सुंदरकांड और भजन-कीर्तन कर आपराधिक प्रवृति से दूर रहने का प्रयास कर रहे हैं.

इसके लिए जिला कारागार प्रशासन की ओर से बंदियों को पूर्ण रूप से सहयोग किया जा रहा है. कारागार प्रशासन बाहर से भी धार्मिक उपदेशक बुलाकर बंदियों को धार्मिक उपदेश दिलवाता है ताकि वह जल्द आपराधिक प्रवृत्ति को छोड़ मुख्यधारा में शामिल हो सकें.

यह भी पढ़ें : शरद पूर्णिमा के दिन बांके बिहारी मंदिर में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, दर्शन कर भाव विभोर हुए श्रद्धालु

जानकारी देते हुए डिप्टी जेलर संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान में कारागार का कांसेप्ट बदल गया है. पहले इसे जेल कहते थे. ब्रिटिश काल में प्रताड़ना गृह कहा जाता था. आजादी के बाद जेल की अवधारणा में सुधार आया और इसे सुधारगृह के रूप में स्थापित किया जाने लगा.

बताया कि अपराधियों को आम लोगों की रक्षा के लिए जेल में निरुद्ध किया जाता है. हमें इनमें सुधार लाना है. सुधार लाएंगे कैसे. सुधार लाने के लिए हम इन्हें धार्मिक गतिविधियों में भी शामिल करते हैं जैसे भजन-कीर्तन, मोरल टीचिंग. कहा कि बाहर से धार्मिक उपदेशक भी बुलाए जाते हैं इन्हें उपदेश देते हैं ताकि इनकी अंदरूनी आपराधिक प्रवृत्ति दूर हो सके.

बाहर से हम विभिन्न प्रकार के वोकेशनल प्रोग्राम चलाते हैं. खेल कूद करातें हैं. हम व्यवसायिक शिक्षा भी देते हैं. इन्हें सिलाई का प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है. मोमबत्ती इत्यादि चीजें बनवाई जा रहीं हैं. कारपेंटर व प्लंबर का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है ताकि यह बाहर निकलकर अपना रोजगार कर सकें.

खेलकूद के माध्यम से इन्हें नियमों के अंतर्गत रहना और अनुशासित रहना सिखाते हैं. बताया कि क्राइम आदमी अनुशासित न रहने के कारण करता है. अगर एक बार बंदी अंदर से सुधर गया तो उसने अनुशासन में रहना सीख लिया. फिर वह अपराध नहीं करेगा.

मथुरा : जिला कारागार मथुरा अपने यहां निरुद्ध बंदियों को आपराधिक प्रवृत्ति से दूर रखने के लिए एक अनूठी पहल कर रहा है. इस पहल के अंतर्गत जिला कारागार में निरुद्ध बंदियों को कारागार प्रशासन द्वारा धार्मिक प्रवृत्ति की ओर लाने का प्रयास किया जा रहा है. इसके चलते कारागार प्रशासन द्वारा हर रोज निरुद्ध बंदियों से भजन कीर्तन सुंदरकांड आदि कराया जाता है. इसके लिए कभी-कभी कारागार प्रशासन की ओर से बाहर से धार्मिक उपदेशक भी बुलाए जाते हैं.

बदलेगी आपराधिक प्रवृत्ति और सुधरेंगे बंदी, जेल प्रशासन करा रहा भजन कीर्तन

जिला कारागार प्रशासन का मानना है कि धार्मिक प्रवृत्ति की ओर आने से कारागार में निरुद्ध बंदियों की आपराधिक प्रवृत्ति दूर होगी और वह अपनी सजा काटने के बाद बाहर निकलने के बाद मुख्यधारा से जुड़ सकेंगे.

बता दें कि बंदियों में धार्मिक प्रवृत्ति जगाने के लिए जेल प्रशासन विभिन्न कामों को कर रहा है. इसके तहत जिला कारागार में निरुद्ध बंदी सुंदरकांड और भजन-कीर्तन कर आपराधिक प्रवृति से दूर रहने का प्रयास कर रहे हैं.

इसके लिए जिला कारागार प्रशासन की ओर से बंदियों को पूर्ण रूप से सहयोग किया जा रहा है. कारागार प्रशासन बाहर से भी धार्मिक उपदेशक बुलाकर बंदियों को धार्मिक उपदेश दिलवाता है ताकि वह जल्द आपराधिक प्रवृत्ति को छोड़ मुख्यधारा में शामिल हो सकें.

यह भी पढ़ें : शरद पूर्णिमा के दिन बांके बिहारी मंदिर में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, दर्शन कर भाव विभोर हुए श्रद्धालु

जानकारी देते हुए डिप्टी जेलर संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि वर्तमान में कारागार का कांसेप्ट बदल गया है. पहले इसे जेल कहते थे. ब्रिटिश काल में प्रताड़ना गृह कहा जाता था. आजादी के बाद जेल की अवधारणा में सुधार आया और इसे सुधारगृह के रूप में स्थापित किया जाने लगा.

बताया कि अपराधियों को आम लोगों की रक्षा के लिए जेल में निरुद्ध किया जाता है. हमें इनमें सुधार लाना है. सुधार लाएंगे कैसे. सुधार लाने के लिए हम इन्हें धार्मिक गतिविधियों में भी शामिल करते हैं जैसे भजन-कीर्तन, मोरल टीचिंग. कहा कि बाहर से धार्मिक उपदेशक भी बुलाए जाते हैं इन्हें उपदेश देते हैं ताकि इनकी अंदरूनी आपराधिक प्रवृत्ति दूर हो सके.

बाहर से हम विभिन्न प्रकार के वोकेशनल प्रोग्राम चलाते हैं. खेल कूद करातें हैं. हम व्यवसायिक शिक्षा भी देते हैं. इन्हें सिलाई का प्रशिक्षण दिलाया जा रहा है. मोमबत्ती इत्यादि चीजें बनवाई जा रहीं हैं. कारपेंटर व प्लंबर का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है ताकि यह बाहर निकलकर अपना रोजगार कर सकें.

खेलकूद के माध्यम से इन्हें नियमों के अंतर्गत रहना और अनुशासित रहना सिखाते हैं. बताया कि क्राइम आदमी अनुशासित न रहने के कारण करता है. अगर एक बार बंदी अंदर से सुधर गया तो उसने अनुशासन में रहना सीख लिया. फिर वह अपराध नहीं करेगा.

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