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रेजांग ला दिवस: 114 सैनिकों की शहादत का वह मंजर याद आते ही भर आती हैं आंखें

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Published : Nov 18, 2019, 3:15 PM IST

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के रहने वाले वीर सालिग राम साल 1962 में रेजांग ला युद्ध में जिंदा बचने वाले छह जवानों में से एक हैं. सालिग राम के बेटे राजेंद्र भी 18 नवंबर 1988 को श्रीलंका में शहीद हो गए. देखिए सालिग राम से ईटीवी भारत की बीतचीत...

रेजांग ला का जांबाज.

मैनपुरी: जिले के बदनपुर गांव के रहने वाले पूर्व सैनिक सालिग राम के अंदर देश के प्रति अभी भी जज्बा कम नहीं हुआ है. 1957 में सालिग राम कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए और 1962 में इनकी तैनाती लेह में हुई. इसी दौरान भारत और चीन के बीच युद्ध शुरू हो गया. सालिग राम जिस यूनिट में थे, उसमें कुल 120 सैनिक थे. चीन के हमले में 114 सैनिक शहीद हो गए, जबकि सिर्फ छह सैनिक ही जिंदा बचे. सालिग राम 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान जिंदा बचने वाले छह लोगों में से ही एक थे.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

शरीर में झुर्रियां पड़ गईं, जीवन के आखिरी पड़ाव में है, लेकिन देश के प्रति जज्बा अभी भी कम होने का नाम नहीं ले रहा है. हम बात कर रहे हैं मैनपुरी जिले के वीर सपूत सालिग राम की, जिन्होंने यहां की मिट्टी में जन्म लिया. साल 1957 में सालिग राम की कुमाऊं रेजीमेंट में तैनाती हुई थी. 1962 में उनकी यूनिट को लेह में तैनात किया गया. इसी बीच 18 नवंबर को चीन के सैनिकों ने उनकी यूनिट पर देर रात आक्रमण कर दिया. उस समय उनकी यूनिट में कुल 120 सैनिक थे, जिनमें से 114 सैनिक चीन के हमले में शहीद हो गए. चीन के हमले के बाद इस पूरी यूनिट में बस छह लोग जिंदा बचे, जिनमें से एक सालिग राम भी हैं.

इसे भी पढ़ें- शहादत का गवाह है बस्ती का यह पेड़, 500 क्रांतिकारियों को दी गई फांसी

1962 की जंग देख चुके सालिग राम के बेटे राजेंद्र सिंह भी भारतीय सेना में थे. 1988 में राजेंद्र सिंह भारत की ओर से शांति सेना के तौर पर श्रीलंका गए थे. 1962 की लड़ाई के 26 साल बाद ठीक उसी दिन 18 नवंबर को ही सालिग राम के बेटे राजेंद्र सिंह भी श्रीलंका में एक विस्फोट के चलते शहीद हो गए. सालिग राम अपने बेटे के पार्थिव शरीर तक को नहीं देख पाए. खुद मौत के मुंह से वापस आने और अपने बेटे को खोने के बाद भी इस सैनिक के घर तक जाने के लिए ठीक-ठाक रास्ता नहीं बन सका है. ईटीवी भारत की टीम से बात करते हुए उन्होंने कई बार रास्ता बनाए जाने की मांग की.

मैनपुरी: जिले के बदनपुर गांव के रहने वाले पूर्व सैनिक सालिग राम के अंदर देश के प्रति अभी भी जज्बा कम नहीं हुआ है. 1957 में सालिग राम कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए और 1962 में इनकी तैनाती लेह में हुई. इसी दौरान भारत और चीन के बीच युद्ध शुरू हो गया. सालिग राम जिस यूनिट में थे, उसमें कुल 120 सैनिक थे. चीन के हमले में 114 सैनिक शहीद हो गए, जबकि सिर्फ छह सैनिक ही जिंदा बचे. सालिग राम 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान जिंदा बचने वाले छह लोगों में से ही एक थे.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

शरीर में झुर्रियां पड़ गईं, जीवन के आखिरी पड़ाव में है, लेकिन देश के प्रति जज्बा अभी भी कम होने का नाम नहीं ले रहा है. हम बात कर रहे हैं मैनपुरी जिले के वीर सपूत सालिग राम की, जिन्होंने यहां की मिट्टी में जन्म लिया. साल 1957 में सालिग राम की कुमाऊं रेजीमेंट में तैनाती हुई थी. 1962 में उनकी यूनिट को लेह में तैनात किया गया. इसी बीच 18 नवंबर को चीन के सैनिकों ने उनकी यूनिट पर देर रात आक्रमण कर दिया. उस समय उनकी यूनिट में कुल 120 सैनिक थे, जिनमें से 114 सैनिक चीन के हमले में शहीद हो गए. चीन के हमले के बाद इस पूरी यूनिट में बस छह लोग जिंदा बचे, जिनमें से एक सालिग राम भी हैं.

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1962 की जंग देख चुके सालिग राम के बेटे राजेंद्र सिंह भी भारतीय सेना में थे. 1988 में राजेंद्र सिंह भारत की ओर से शांति सेना के तौर पर श्रीलंका गए थे. 1962 की लड़ाई के 26 साल बाद ठीक उसी दिन 18 नवंबर को ही सालिग राम के बेटे राजेंद्र सिंह भी श्रीलंका में एक विस्फोट के चलते शहीद हो गए. सालिग राम अपने बेटे के पार्थिव शरीर तक को नहीं देख पाए. खुद मौत के मुंह से वापस आने और अपने बेटे को खोने के बाद भी इस सैनिक के घर तक जाने के लिए ठीक-ठाक रास्ता नहीं बन सका है. ईटीवी भारत की टीम से बात करते हुए उन्होंने कई बार रास्ता बनाए जाने की मांग की.

Intro:57 साल पहले युद्ध के दौरान शहीद हुए 114 सैनिकों का मंजर देखकर आंखें भर आती हैं श्रीलंका में शांति दूत के दौरान शहीद हुए बेटे का पार्थिव शरीर तक ना देख सका देश सेवा के बाद भी घर तक रास्ता ना बना सकी सरकार


Body:जीवन के आखिरी पड़ाव में शरीर साथ नहीं दे रहा बाल भूरे हो चुके थे शरीर पर झुर्रियां थी फिर भी वीर सैनिक का देश के प्रति जज्बा कम होने का नाम नहीं ले रहा था 57 साल पहले की यादें तरु ताजा हो गई आंखों ने वह मंजर देखा था रात के अंधेरे में हजारों की संख्या में चीनी सैनिक टूट पड़े थे और उन्होंने हमारे सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया हमारी वेदना थी कि देश आजाद होने के बाद लड़ने के लिए असलाह नहीं थे हालांकि कुछ घंटे लड़ाई ही चली थी 121 सैनिको की यूनिट में 114 शहीद हुए थे साथ ही जीवित बचे थे उसमें एक मैं भी था मंजर याद आता है तो आंखें भर आती हैं देश की सेवा के बाद भी सरकार ने आश्वासन तो दिया लेकिन घर तक रास्ता तक न बना सके गड्ढे में गिरता हूं। मैंने अपना जवान बेटा देश को न्योछावर कर दिया रुदे हुए गले से सिसकती आवाज में बेटे की मौत की सूचना मिली थी पार्थिव शरीर तक ना देख सका
जोकि 1988 में श्रीलंका का शांति दूत बनकर जब सेना गई थी तो शहीद हो गया अधिकारी तो आए थे खूब आश्वासन दिया किसी ने सुध नहीं ली

मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर दूरी पर बदनपुर गांव इस गांव की मिट्टी ने ऐसे लाल को जन्म दिया जिसका नाम था सालिक राम 1957 में कुमाऊँ रेजीमेंट सैनिक पद पर तैनाती हुई कुछ समय के बाद सैनिक की तैनाती जम्मू एंड कश्मीर के लेह जिले की रजंगिला पहाड़ी पर 121 सैनिकों के साथ कर दी गई 18 नवंबर 1962 की वो रात जब कमांडर की तरफ से आदेश किया जाता है कि कुछ घुसपैठिए देखे गए हैं चांदनी रात थी साफ दिख रहा था कि कुछ 10 से 12 लोग घुस आए हैं इसी के चलते भारतीय सेना ने कुछ चीनी सैनिकों को मार दिया और कुछ भाग गए वही चार घंटे बीतने के बाद पांच हजार चीनी सैनिक उनके आगे याक (जोकि भारत में बैल कहा जाता है ) गले में लालटेन बंधी हुई थी आगे चल रहे थे अचानक भारतीय सेना पर टूट पड़े और नरसंहार किया रात का मंजर जिसमें हमारे 114 सैनिक शहीद हुए थे 7 सैनिकों में भी एक था जो जीवित बचा आंखों का वह मंजर आज भी भूले नहीं भूलता जवान बेटा जब शांति दूत सेना में श्रीलंका में गया था तो वहां लगी माइंस में शहीद हो गया बेटे की मौत की सूचना तो मिली पार्थिव शरीर तक नहीं दे सका देश की सेवा की है। लेकिन घर के लिए रास्ता तक सरकार ना दे सकी अधिकारी आते हैं आश्वासन देते हैं कोई सुध नहीं लेता बाइट- शालिग्राम वीर सैनिक




Conclusion:303 की राइफल थी 50 कारतूस जबकि चीनी सैनिकों पर आधुनिक हथियार से लैस थे।
प्रवीण सक्सेना मैनपुरी 94 5741 304
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