मैनपुरी: जिले के बदनपुर गांव के रहने वाले पूर्व सैनिक सालिग राम के अंदर देश के प्रति अभी भी जज्बा कम नहीं हुआ है. 1957 में सालिग राम कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए और 1962 में इनकी तैनाती लेह में हुई. इसी दौरान भारत और चीन के बीच युद्ध शुरू हो गया. सालिग राम जिस यूनिट में थे, उसमें कुल 120 सैनिक थे. चीन के हमले में 114 सैनिक शहीद हो गए, जबकि सिर्फ छह सैनिक ही जिंदा बचे. सालिग राम 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान जिंदा बचने वाले छह लोगों में से ही एक थे.
शरीर में झुर्रियां पड़ गईं, जीवन के आखिरी पड़ाव में है, लेकिन देश के प्रति जज्बा अभी भी कम होने का नाम नहीं ले रहा है. हम बात कर रहे हैं मैनपुरी जिले के वीर सपूत सालिग राम की, जिन्होंने यहां की मिट्टी में जन्म लिया. साल 1957 में सालिग राम की कुमाऊं रेजीमेंट में तैनाती हुई थी. 1962 में उनकी यूनिट को लेह में तैनात किया गया. इसी बीच 18 नवंबर को चीन के सैनिकों ने उनकी यूनिट पर देर रात आक्रमण कर दिया. उस समय उनकी यूनिट में कुल 120 सैनिक थे, जिनमें से 114 सैनिक चीन के हमले में शहीद हो गए. चीन के हमले के बाद इस पूरी यूनिट में बस छह लोग जिंदा बचे, जिनमें से एक सालिग राम भी हैं.
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1962 की जंग देख चुके सालिग राम के बेटे राजेंद्र सिंह भी भारतीय सेना में थे. 1988 में राजेंद्र सिंह भारत की ओर से शांति सेना के तौर पर श्रीलंका गए थे. 1962 की लड़ाई के 26 साल बाद ठीक उसी दिन 18 नवंबर को ही सालिग राम के बेटे राजेंद्र सिंह भी श्रीलंका में एक विस्फोट के चलते शहीद हो गए. सालिग राम अपने बेटे के पार्थिव शरीर तक को नहीं देख पाए. खुद मौत के मुंह से वापस आने और अपने बेटे को खोने के बाद भी इस सैनिक के घर तक जाने के लिए ठीक-ठाक रास्ता नहीं बन सका है. ईटीवी भारत की टीम से बात करते हुए उन्होंने कई बार रास्ता बनाए जाने की मांग की.