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महोबा: रोजी-रोटी की तलाश में जारी है ग्रामीणों का पलायन

उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में आए दिन ग्रामीण पलायन करने को मजबूर हैं. दरअसल जिले में रोजगार की बेहद कमी है, जिसके चलते लोगों को रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों का रुख करना पड़ रहा है.

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Published : Aug 8, 2019, 7:26 PM IST

जिले में रोजगार की कमी के कारण ग्रामीण कर रहे पलायन.

महोबा: बुंदेलखंड में लगातार हो रहे पलायन को रोकने की सारी कवायदें सरकारी कागजों तक सिमट कर रह गई हैं. मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी बुंदेलखंड से पलायन को नहीं रोक सकी. यही वजह है कि आज रोजी रोटी की तलाश में हजारों ग्रामीण बुंदेलखंड के गांवों से महानगरों की तरफ पलायन कर रहे हैं.

जिले में रोजगार की कमी के कारण ग्रामीण कर रहे पलायन.

बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने किया पलायन
महोबा मुख्यालय की सीमा से सटा हुआ सिजहरी एक ऐसा गांव है. इस गांव की जनसंख्या लगभग 12 हजार के आसपास है और यहां से बड़ी तादाद में ग्रामीण पलायन कर रहे हैं. वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही है, लेकिन रोजगार सही से न मिल पाने के कारण बुंदेली महानगरों के लिए पलायन कर जाते हैं और गांव में रह जाते हैं कुछ बुजुर्ग, जो अपने दरवाजों के बाहर बैठे नजर आते हैं. हर साल पड़ रहे सूखे ने बुंदेलखंड के महोबा जिले के किसानों को बदहाल कर दिया है.

रोजगार की कमी के चलते करना पड़ रहा है पलायन
ग्रामीण बताते हैं कि गांव में रोजगार मुहैया नहीं है. साथ ही बारिश न होने के कारण खेती भी जवाब दे रही है इसलिए मजबूरन गांव छोड़कर जाना पड़ता है. सरकार द्वारा मनरेगा रोजगार योजना तो चलाई जा रही है लेकिन प्रतिदिन काम नहीं मिलता है और भुगतान भी महीनों में होता है. ऐसे में मजदूर दो वक्त की रोटी के लिए पलायन करने को मजबूर हैं.

जहां एक ओर बुंदेली बड़ी संख्या में दो वक्त की रोजी रोटी के लिए पलायन कर रहे हैं, वही दूसरी तरफ जिलाधिकारी अजय कुमार तिवारी ने अपना बचाव करते हुए बताया कि जिले में पलायन जैसी कोई समस्या नहीं है. जब कि गांव के घरों में लगे ताले जिलाधिकारी के बयान को झूठा साबित कर रहे हैं.

महोबा: बुंदेलखंड में लगातार हो रहे पलायन को रोकने की सारी कवायदें सरकारी कागजों तक सिमट कर रह गई हैं. मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी बुंदेलखंड से पलायन को नहीं रोक सकी. यही वजह है कि आज रोजी रोटी की तलाश में हजारों ग्रामीण बुंदेलखंड के गांवों से महानगरों की तरफ पलायन कर रहे हैं.

जिले में रोजगार की कमी के कारण ग्रामीण कर रहे पलायन.

बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने किया पलायन
महोबा मुख्यालय की सीमा से सटा हुआ सिजहरी एक ऐसा गांव है. इस गांव की जनसंख्या लगभग 12 हजार के आसपास है और यहां से बड़ी तादाद में ग्रामीण पलायन कर रहे हैं. वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही है, लेकिन रोजगार सही से न मिल पाने के कारण बुंदेली महानगरों के लिए पलायन कर जाते हैं और गांव में रह जाते हैं कुछ बुजुर्ग, जो अपने दरवाजों के बाहर बैठे नजर आते हैं. हर साल पड़ रहे सूखे ने बुंदेलखंड के महोबा जिले के किसानों को बदहाल कर दिया है.

रोजगार की कमी के चलते करना पड़ रहा है पलायन
ग्रामीण बताते हैं कि गांव में रोजगार मुहैया नहीं है. साथ ही बारिश न होने के कारण खेती भी जवाब दे रही है इसलिए मजबूरन गांव छोड़कर जाना पड़ता है. सरकार द्वारा मनरेगा रोजगार योजना तो चलाई जा रही है लेकिन प्रतिदिन काम नहीं मिलता है और भुगतान भी महीनों में होता है. ऐसे में मजदूर दो वक्त की रोटी के लिए पलायन करने को मजबूर हैं.

जहां एक ओर बुंदेली बड़ी संख्या में दो वक्त की रोजी रोटी के लिए पलायन कर रहे हैं, वही दूसरी तरफ जिलाधिकारी अजय कुमार तिवारी ने अपना बचाव करते हुए बताया कि जिले में पलायन जैसी कोई समस्या नहीं है. जब कि गांव के घरों में लगे ताले जिलाधिकारी के बयान को झूठा साबित कर रहे हैं.

Intro:एंकर- बदहाल हम है इस कदर की रोटी की तलाश में फिरते है दर बदर यही तस्वीर इन दिनों बुंदेलखंड के उन बुंदेलों की है जो कभी लहलहाते खेतो के बीच खुशी की हर रोज होली और दीवाली मानते थे पर शायद कुदरत बुंदेलों से रूठ गई और त्यौहारों के फीके होने के साथ ही फांकाकशी की इबारत बदहाली की स्याही से अन्नदाताओं के माथे पर लिख गई सूखे के बाद अब अकाल की दस्तक से जिले के हजारों अन्नदाता सहमे है मनरेगा के जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया लेकिन यहाँ के लोगो को इससे भी कोई लाभ नही मिल सका और इसके साथ ही मुफलिसी के खेतों में मौत की फसल उगती देख कर किसान मातृभूमि छोड़कर पलायन को मजबूर जो गया अपने खून पसीने से खेतों को साल भर सींच कर आम जनता का पेट भरने वाला किसान आज आपदा के भावरजल में फंसकर खुद दो वक्त की रोटी को मोहताज है शायद यही वजह है कि लोक लाज का भय और कर्ज के दबाव में अन्नदाता पराई दुनिया की डगर जाने को मजबूर है हालात यही रहे तो वह दिन दूर नही जब बुंदेलखंड के महोबा जिले में पुनः मौत की खेती शुरू हो जाएगी कुदरत के रूठने बुंदेले मारे मारे घूम रहे है सरकारी सहायता और प्रशासनिक इमदाद अन्नदाताओं के जख्मो पर मरहम नही लगा पा रही है।


Body:बुंदेलखंड में लगातार हो रहे पलायन को रोकने की सारी कवायदे सरकारी कागजो तक सिमट कर रह गई है मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी बुंदेलखंड से पलायन को नही रोक सकी यही वजह है कि आज रोजी रोटी की तलाश में हजारों ग्रामीण बुंदेलखंड के गांवों से महानगरों की तरफ पलायन कर जाते है महोबा मुख्यालय की सीमा से सटा हुआ यह सिजहरी एक ऐसा गांव है इस गांव की जनसँख्या लगभग 12 हजार के आसपास है और इस गांव से बडी तादात के ग्रामीणों ने पलायन कर लिया है वैसे तो ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही है लेकिन रोजगार सही से न मिल पाने के कारण बुंदेले महानगरों के लिए पलायन कर जाते है और गांव में रह जाते है तो कुछ बुजुर्ग जो अपने दरवाजों में बैठे नजर आते है साल दर साल पड़ रहे सूखे ने बुंदेलखंड के महोबा जिले के किसानों को बदहाल कर दिया है जिसके चलते बुंदेले दो वक्त की रोटी के लिए मजबूरन पलायन करने को मजबूर है।

बाइट- नरोत्तम सैनी (ग्रामीण)
बाइट- विजय सिंह राजपूत (ग्रामीण)

वही गांव में ही रहने वाले ग्रामीण बताते है कि गांव में रोजगार मुहैया नही है साथ ही बारिस न होने के कारण खेती भी जबाब दे रही है इसलिए मजबूरन गांव छोड़कर जाना पड़ता है और गांव में रह जाते है तो सिर्फ कुछ बुजुर्ग जिले में बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है सरकार द्वारा मनरेगा रोजगार योजना तो चलाई जा रही है लेकिन प्रतिदिन काम नही मिलता है और भुगतान भी महीनों में होता है ऐसे में मजदूर दो वक्त की रोटी के लिए पलायन करने को मजबूर है सरकार आई गई वादे हजारों किये हर हाथ को काम मिलेगा लेकिन महोबा के किसानों का भला आज भी भगवान के भरोसे है।
बाइट- जमुनारानी (वृद्ध महिला)
बाइट- भवन्ति (ग्रामीण महिला)




Conclusion:जहाँ एक ओर बुंदेले बड़ी संख्या में दो वक्त की रोजी रोटी के लिए पलायन कर रहे है तो वही जिलाधिकारी अजय कुमार तिवारी ने अपना बचाओ करते बताया कि जिले में पलायन जैसी कोई समस्या नही है जब कि गांव के घरों में लगे ताले जिलाधिकारी के बयान को मुँह चिड़ा रहे है।
बाइट- अजय कुमार तिवारी (जिलाधिकारी)

तेज प्रताप सिंह
महोबा यूपी
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