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करगिल शहीद के मां-बाप महोबा में खा रहे दर-दर की ठोकरें

उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के शहीद जगदीश यादव का नाम करगिल युद्ध में शहीद जांबाज जवानों में से एक है. जगदीश ने देश सेवा के लिए अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए प्राणों की आहुति दे दी. अमर शहीद जगदीश की शहादत के बाद उनके माता-पिता आज दर-दर भटने को मजबूर हैं.

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Published : Jul 25, 2019, 12:58 PM IST

Updated : Jul 25, 2019, 11:51 PM IST

कारगिल युद्ध में शहीद थे जगदीश यादव.

महोबा: करगिल युद्ध में शहीद जांबाज जवानों में से एक पचपहरा गांव के शहीद जगदीश यादव, जिन्होंने देश सेवा के लिए अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति 2 जुलाई 1999 में करगिल युद्ध में दे दी. शहीद जगदीश आज भी अपने गांव वासियों के लिए एक मिसाल तौर पर जान जाते हैं.

कारगिल युद्ध में शहीद थे जगदीश यादव.

'मां शायद मैं अब न आऊं'

  • शहीद जगदीश यादव के माता-पिता ने किसानी कर उन्हें पढ़ाया.
  • इस लायक बनाया कि 21 वर्ष की उम्र में ही उनका चयन मराठा रेजीमेंट में हो गया.
  • जगदीश अपनी मां से हमेशा यही बोलते थे कि मां मुझे मातृभूमि के नमक का कर्ज अदा करना है.
  • करगिल युद्ध पर जाते वक्त भी अपनी मां से बोला कि मां शायद मैं अब न आऊं.
  • और वही हुआ, जगदीश ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी.

सरकार की तरफ से माता-पिता को कुछ नहीं मिला

  • जगदीश के शहीद होने पर जो कुछ भी सरकार द्वारा दिया गया वह सब शहीद जगदीश की पत्नी को मिला.
  • शहीद जगदीश यादव के माता-पिता को सरकार से कुछ नहीं मिला.
  • शहीद की पत्नी अपने पति की शहादत के बाद से घर छोड़कर चली गई.
  • बेटे की शहादत के बाद बूढ़े मां-बाप अब दर-दर भटकने को मजबूर हैं.

जगदीश आज भी गांव के लोगों के दिलों में बसते हैं. स्वभाव से सहज और सरल शहीद जगदीश को याद कर आज भी लोगों की आंखें भर आती हैं.
-तेज प्रताप सिंह यादव, शहीद के पड़ोसी

महोबा: करगिल युद्ध में शहीद जांबाज जवानों में से एक पचपहरा गांव के शहीद जगदीश यादव, जिन्होंने देश सेवा के लिए अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति 2 जुलाई 1999 में करगिल युद्ध में दे दी. शहीद जगदीश आज भी अपने गांव वासियों के लिए एक मिसाल तौर पर जान जाते हैं.

कारगिल युद्ध में शहीद थे जगदीश यादव.

'मां शायद मैं अब न आऊं'

  • शहीद जगदीश यादव के माता-पिता ने किसानी कर उन्हें पढ़ाया.
  • इस लायक बनाया कि 21 वर्ष की उम्र में ही उनका चयन मराठा रेजीमेंट में हो गया.
  • जगदीश अपनी मां से हमेशा यही बोलते थे कि मां मुझे मातृभूमि के नमक का कर्ज अदा करना है.
  • करगिल युद्ध पर जाते वक्त भी अपनी मां से बोला कि मां शायद मैं अब न आऊं.
  • और वही हुआ, जगदीश ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी.

सरकार की तरफ से माता-पिता को कुछ नहीं मिला

  • जगदीश के शहीद होने पर जो कुछ भी सरकार द्वारा दिया गया वह सब शहीद जगदीश की पत्नी को मिला.
  • शहीद जगदीश यादव के माता-पिता को सरकार से कुछ नहीं मिला.
  • शहीद की पत्नी अपने पति की शहादत के बाद से घर छोड़कर चली गई.
  • बेटे की शहादत के बाद बूढ़े मां-बाप अब दर-दर भटकने को मजबूर हैं.

जगदीश आज भी गांव के लोगों के दिलों में बसते हैं. स्वभाव से सहज और सरल शहीद जगदीश को याद कर आज भी लोगों की आंखें भर आती हैं.
-तेज प्रताप सिंह यादव, शहीद के पड़ोसी

Intro:एंकर- कारगिल युद्ध के 20 वर्ष होने जा रहे हैं और कारगिल युद्ध में शहीद जांबाज जवानों में से एक महोबा जनपद के पचपहरा गांव के 29 वर्षीय शहीद जगदीश यादव हैं जिनका जन्म 25 फरवरी 1970 में हुआ था जिन्होंने देश सेवा के लिए अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति 2 जुलाई 1999 में कारगिल कारगिल युद्ध में दे दी आज महोबा जनपद में शहीद जगदीश यादव का नाम बड़े फक्र से लिया जाता है शहीद जगदीश आज भी अपने गांव वासियों के लिए एक मिसाल तौर पर जान जाते हैं।


Body: महोबा जनपद के इस छोटे से गांव में जन्मे शहीद जगदीश यादव का जन्म बेहद ही सामान्य परिवार में हुआ था शहीद के माता पिता ने खेती किसानी कर जगदीश को पढ़ाया और उसे इस लायक बनाया कि 21 वर्ष की उम्र में ही उसका चयन मराठा रेजीमेंट में हुआ जन्म से ही देश भक्ति का सपना अपनी आंखों में संजोय जगदीश ने 21 वर्ष की उम्र में ही आर्मी ज्वॉइन कर मातृभूमि की सेवा के लिए निकल पड़े जब कभी छुट्टियों में अपने गांव आते तो अपनी मां हमेशा यही बोलते थे कि मां मुझे मातृभूमि के नमक का कर्ज अदा करना है इसी तरह शहीद जगदीश यादव ने कारगिल युद्ध पर जाते वक्त भी अपनी मां से बोला कि माँ शायद में अब न आऊं और हुआ भी वही उन्होंने अपने आप को मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
बाइट- तुलसारानी (शहीद की माँ)


Conclusion: वही सहित के भाई ने बताया कि जगदीश में देश सेवा का जज्बा कूट-कूट कर भरा था 21 वर्ष में ही उसका मराठा रेजीमेंट में चयन हो गया था इसके बाद ब्लैक कैट कमांडो के तौर पर भी शहीद ने अपनी सेवाएं दी है और 2 जुलाई 1999 को जगदीश शहीद हो गए शहीद होने पर जो कुछ भी सरकार द्वारा दिया गया वह सब शहीद जगदीश की पत्नी को दिया गया शहीद की पत्नी अपने पति की शहादत के बाद से घर छोड़कर चली गई और बूढ़े माँ बाप को दर दर भटकने को मजबूर कर गई साथ ही शहीद के पड़ोसियों ने बताया को जगदीश आज भी गांव के लोगो के दिलो में बसते है स्वभाव से सहज सरल शहीद जगदीश को याद कर आज भी लोगो की आँखे भर आती है।

बाइट- गया शंकर यादव (शहीद ला भाई)
बाइट- तेज प्रताप सिंह यादव (शहीद का पड़ोसी)

तेज प्रताप सिंह
महोबा यूपी
09889466159
06306038548
Last Updated : Jul 25, 2019, 11:51 PM IST
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