महोबा: करगिल युद्ध में शहीद जांबाज जवानों में से एक पचपहरा गांव के शहीद जगदीश यादव, जिन्होंने देश सेवा के लिए अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति 2 जुलाई 1999 में करगिल युद्ध में दे दी. शहीद जगदीश आज भी अपने गांव वासियों के लिए एक मिसाल तौर पर जान जाते हैं.
'मां शायद मैं अब न आऊं'
- शहीद जगदीश यादव के माता-पिता ने किसानी कर उन्हें पढ़ाया.
- इस लायक बनाया कि 21 वर्ष की उम्र में ही उनका चयन मराठा रेजीमेंट में हो गया.
- जगदीश अपनी मां से हमेशा यही बोलते थे कि मां मुझे मातृभूमि के नमक का कर्ज अदा करना है.
- करगिल युद्ध पर जाते वक्त भी अपनी मां से बोला कि मां शायद मैं अब न आऊं.
- और वही हुआ, जगदीश ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी.
सरकार की तरफ से माता-पिता को कुछ नहीं मिला
- जगदीश के शहीद होने पर जो कुछ भी सरकार द्वारा दिया गया वह सब शहीद जगदीश की पत्नी को मिला.
- शहीद जगदीश यादव के माता-पिता को सरकार से कुछ नहीं मिला.
- शहीद की पत्नी अपने पति की शहादत के बाद से घर छोड़कर चली गई.
- बेटे की शहादत के बाद बूढ़े मां-बाप अब दर-दर भटकने को मजबूर हैं.
जगदीश आज भी गांव के लोगों के दिलों में बसते हैं. स्वभाव से सहज और सरल शहीद जगदीश को याद कर आज भी लोगों की आंखें भर आती हैं.
-तेज प्रताप सिंह यादव, शहीद के पड़ोसी