महराजगंज: जिले में जर्जर तटबंधों को लेकर जहां बंधे के किनारे बसे लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ है. वहीं कार्यदायी संस्थाओं के द्वारा नदी की बलुई मिट्टी से तटबंध पर कराए गए मरम्मत की पोल बारिश होते ही खुलती नजर आ रही है.
वर्ष 2002 में रोहिन नदी में आई बाढ़ से जर्दी डोमरा तटबंध के किनारे बसे गांव उजड़ गए थे और बहुत से लोग बेघर हो गए थे. वहीं, 2007 में रोहिन नदी अपने उफान से तबाही मचाई तो बाढ़ से निकलते समय हरखपुरा गांव के पास नाव पलटने से 27 लोगों की मौत हो गई थी. इस तबाही का मंजर देख चुके लोग आज भी उस घटना को याद कर सहम उठते हैं.
बारिश होते ही खुली तटबंधों के मरम्मत की खुली पोल
महराजगंज जिले के तटबंध के किनारे बसे ग्रामीणों का कहना है कि सिंचाई विभाग के द्वारा हर साल तटबंध का मरम्मत कराया जाता है. कार्यदायी संस्था द्वारा नदी की बलुई मिट्टी से तटबंध का मरम्मत का कार्य किया जाता है. जिसके कारण हल्की बारिश होने पर भी तटबंध कटना शुरू हो जाता है. हालांकि सिंचाई विभाग के द्वारा हर साल तटबंध की मरम्मत के नाम पर अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं. इसके बावजूद तटबंध के किनारे बसे लोग डरे और सहमे रहते हैं.
बांधों के किनारे बसे लोगों में दहशत का माहौल
रेन कट और रैट होल से जर्जर हुए बांधों के किनारे बसे लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ है. बांधों के किनारे बसे लोगों का कहना है कि बंधे की मरम्मत के नाम पर यहां कागजी खानापूर्ति कर बाढ़ समाप्त होते ही उनके कार्यदायी संस्थाओं के द्वारा बिना काम कराए ही भुगतान कराया जाता है. जहां काम नहीं हुआ रहता है उस स्थान के नाम पर भी जिम्मेदारकर्मियों की मिलीभगत से भुगतान कर दिया जाता है.
अधिशासी अभियंता राजीव कपिल ने बताया की बाढ़ से पहले और बाढ़ के दौरान तटबंध का मरम्मत कार्य को लेकर सिंचाई विभाग अलर्ट पर रहता है. रेनकट होते ही तटबंध का मरम्मत करा दिया जाता है. यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है.
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