महराजगंज: एक श्रवण, जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन शुरू हुआ, जिन्होंने अहिंसा के मार्ग पर लोगों को चलना सिखाया. उन्हीं भगवान बुद्ध के ननिहाल देवदह को आज भी अपने पहचान का इंतजार है.
सत्य की खोज में निकले गौतम बुद्ध का ननिहाल महराजगंज के देवदह में है. यूं तो जिले का कण-कण भगवान के चरण पड़ने से गौरवान्वित है, लेकिन ठूठीबारी से उज्जैनी तक का क्षेत्र बौद्ध कालीन इतिहास के लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण है. यहां देवदह, रामग्राम, कुंवरवर्ती स्तूप, पिप्पलिवन हैं, लेकिन इन्हें अभी तक चिह्नित नहीं किया गया. सरकार की तरफ से इन्हें उपेक्षा के सिवाए कुछ नहीं मिल रहा है.
वहीं इतिहासकार इस बात से एकमत हैं कि ये सभी स्थल महराजगंज में ही हैं, जिसमें देवदह भगवान बुद्ध का ननिहाल है. 1978 में पुरातत्व विभाग ने यहां 88.8 एकड़ भूमि संरक्षित कर किसी भी प्रकार के निर्माण और खनन पर रोक लगा दी थी, लेकिन बाद के समय संरक्षित भूमि में 20 किसानों के नाम पट्टा और चक नंबर जारी कर दिया गया. ऐसे में अब टिले के नाम पर मात्र 1.04 एकड़ जमीन बची है.
सरकार की तरफ से यह अनदेखापन महाराजगंज के गौतम बुद्ध से जुड़े तारों को अलग करता सा नजर आ रहा है. गौतम बुद्ध के इतिहास का गवाह बने इस जिले को आज भी अपने अस्तिव को बचाने के लिए काफी प्रयास करना पड़ रहा है. आए दिन जमीन कब्जे को लेकर यह टीला अपने में सिमटता सा जा रहा है. यह जगह बौध धर्म से जुड़े होने के बाद भी अपनी पहचान के लिए मोहताज है. यहां तक की बौद्ध परिपथ में भी इसे शामिल करने की जरूरत नहीं समझी गई.