लखनऊ: आपकी स्माइल को बरकरार रखने के लिए केजीएमयू के दंत संकाय( dental faculty) में कंपोजिट विनियर तकनीक की शुरुआत होने जा रही है. पांच से छह महीने में केजीएमयू में दांतों से पीलापन हटाने के लिए कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट शुरू हो जाएगा. कमपोजिट विनियर तकनीक से दांतो का पीलापन दूर किया जाएगा. इस तकनीक को कराने में मरीज को कोई परेशानी नहीं होगी. इसके लिए मरिज को अस्पताल में बार बार आने की जरुरत नहीं पड़ेगी. डॉक्टरों के मुताबिक मरीज को इस ट्रीटमेंट के लिए सिर्फ एक बार ही अस्पताल आना पड़ेगा.
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के दन्त संकाय के कंजरवेटिव डेन्टिस्ट्री एवं एन्डोडॉन्ट्रिक्स विभाग में कम्पोजिट विनीर और दांतों को नेचुरल रंग और आकृति में बनाने की तकनीक पर एक दिन की कार्यशाला आयोजित हुई. इस तकनीक की कार्यशाला के लिए विशेषज्ञ बैंगलोर के डॉ. दीपक मेहता को आमन्त्रित किया गया. इस कार्यशाला का उद्घाटन किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति माननीय लेफ्टिनेन्ट जनरल डॉ. बिपिन पुरी और विभागाध्यक्ष प्रो. एपी टिक्कू और संकाय के डीन प्रो. आरके सिंह ने किया.
कंजरवेटिव डेन्टिस्ट्री एवं एन्ड्रोडॉन्टिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एपी टिक्कू ने बताया कि, इस प्रक्रिया से दांतों में हुए नुक्सान को दांत के रंग और आकार में दोबारा स्थापित किया जा सकता है. जो कि स्माइल डिजाइन के लिए बेहद अहम है. विभाग का प्रयास है कि यह तकनीक जो कि पहले उच्च वर्ग और सिनेमा से जुड़े व्यक्तियों तक सीमित थी अब इसको आम जनमानस तक बेहद सस्ती दरों पर उपलब्ध किया जा सकेगा. इस दिशा में जल्दी ही विभाग में ऐस्थेटिक डेन्टिस्ट्री एवं स्माइल डिजाइन की एक विशेष क्लीनिक शुरू की जाएगी. ताकि जनमानस को भी यह सभी सुविधाएं केजीएमयू परिसर में उपलब्ध हो सके.
उन्होंने बताया कि, यूपी के लिए जिले से एक लड़की जिसकी शादी होने वाली थी, वह केजीएमयू में हमारे पास आई. उसके पिता प्राइमरी स्कूल के अध्यापक हैं. इस समय हमारे यहां पर इस्माइल ट्रीटमेंट नहीं हो रहा है. ऐसे में वह लड़की दांत के पीलेपन से बहुत परेशान थी. फिलहाल हम उसका ब्लीचिंग ट्रीटमेंट कर रहे हैं. लड़की के दांत का पीलापन दूर कर दिया गया है. इसी तरह कई लोग हैं जो अपनी स्माइल को ठीक करवाना चाहते हैं. लेकिन यह इलाज इतना महंगा है कि, वह कहीं भी प्राइवेट जगह पर नहीं करा सकते. इस्माइल ट्रीटमेंट केजीएमयू में शुरू होने जा रहे हैं.
प्रोफेसर रमेश भारती ने बताया कि, यह तकनीक बहुत महंगी है. जो कि अन्य प्राइवेट संस्थानों में करीब तीन से पांच लाख की लागत में होता है. वहीं, इसकी जो मशीन है वह एक करोड़ की है. ऐसे में इसका ट्रीटमेंट महंगा है. लेकिन हम चाहते हैं कि, यह ट्रीटमेंट आम पब्लिक तक भी पहुंचे. क्योंकि उन्हें भी इस ट्रीटमेंट की जरूरत है. ऐसे में कम दरों में अगर यह ट्रीटमेंट अस्पताल में मुहैया होगा तो यह ट्रीटमेंट आम पब्लिक भी करवा पाएगी.
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