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ऋषि-मुनियों के तपोबल से हुआ था राम का जन्म, 'अहो अयोध्या' ने खोले कई राज

अयोध्या के रहस्यों पर आधारित पुस्तक 'अहो अयोध्या' का लोकार्पण 10 दिन पहले दिल्ली में हुआ. इस पुस्तक और अयोध्या के बारे में ईटीवी भारत ने पुस्तक के लेखक राजेंद्र पांडेय से खास बातचीत की.

अहो अयोध्या किताब के लेखक के साथ खास बातचीत.
अहो अयोध्या किताब के लेखक के साथ खास बातचीत.
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Published : Mar 11, 2020, 7:57 PM IST

लखनऊ: अयोध्या में राम मंदिर बनाने की तैयारी तेज हो गई है. ऐसे में 'अहो अयोध्या' नाम की पुस्तक चर्चा का विषय बनी हुई है. इस पुस्तक के लेखक राजेंद्र पांडेय का कहना है कि इसमें बहुत सी रहस्यमयी बातें बताई गई हैं. पुस्तक का लोकार्पण 10 दिन पहले दिल्ली में हुआ. अयोध्या की चौरासी कोस की सीमा का निर्धारण करने और धार्मिक महत्व के दर्शनीय व पर्यटन स्थलों की जानकारी देने वाली पुस्तक के लेखक राजेंद्र पांडे ने ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत की.

अहो अयोध्या किताब के लेखक के साथ खास बातचीत.

अयोध्या पर केंद्रित है शोधात्मक पुस्तक

लेखक राजेंद्र पांडेय ने बताया कि अयोध्या नगरी की सीमा मौजूदा शहर के 3 से 4 किलोमीटर के दायरे तक सीमित नहीं है. अयोध्या 144 किलोमीटर तक पूर्व-पश्चिम में और उत्तर-दक्षिण में 36 किलोमीटर तक है. उन्होंने बाताया कि मत्स्य आकार वाली अयोध्या का निर्माण भगवान राम के जन्म से बहुत पहले हुआ था. अयोध्या में भगवान राम का जन्म हो इसके लिए देवताओं और ऋषि- मुनियों ने इसकी चौरासी कोस की परिधि में सालों तक कठोर तप किया, जिसके परिणामस्वरूप भगवान विष्णु ने अवतार लिया. इस तरह के कई रहस्यों का उद्घाटन अयोध्या पर केंद्रित शोधात्मक पुस्तक' अहो अयोध्या ' में किया गया है.

राजेंद्र पांडेय ने बताया कि भगवान विष्णु के कम से कम 6 अवतार का संबंध चौरासी कोस में विस्तारित अयोध्या क्षेत्र से है. वह बताते हैं कि शोध के दौरान यह भी स्पष्ट हुआ कि मार्कंडेय पुराण में ऋषि मेधा का आश्रम भी अयोध्या क्षेत्र में ही है और इसी अयोध्या क्षेत्र से दूसरे मन्वंतर के दौरान यह घोषणा हो चुकी है कि सृष्टि का आठवां मनु कौन होगा. भगवान श्री राम, सरयू और अयोध्या तीनों का संबंध आपस में इतना गुथा हुआ है कि अकेले किसी एक की कल्पना नहीं की जा सकती.

उन्होंने बताया कि अयोध्या का आकार मत्स्य के समान है. अयोध्या को यह आकार क्यों और कैसे मिला, इस रहस्य का उद्घाटन भी इस पुस्तक में किया गया है. मानसरोवर से निकली वशिष्ठ कन्या किसे कहा गया है और अयोध्या की सांस्कृतिक चौहद्दी क्या है, ऐसे अनेक सवालों का जवाब यह पुस्तक देती है. पुस्तक यह भी बताती है कि किस तरह अयोध्या के चौरासी कोस में विस्तारित क्षेत्र के अंदर अनेक पौराणिक और धार्मिक महत्व के स्थल आज भी विद्यमान हैं और इन सब से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा ही अयोध्या को पृथ्वी लोक पर सर्वाधिक पुण्य नगरी का दर्जा प्रदान करती है.

लखनऊ: अयोध्या में राम मंदिर बनाने की तैयारी तेज हो गई है. ऐसे में 'अहो अयोध्या' नाम की पुस्तक चर्चा का विषय बनी हुई है. इस पुस्तक के लेखक राजेंद्र पांडेय का कहना है कि इसमें बहुत सी रहस्यमयी बातें बताई गई हैं. पुस्तक का लोकार्पण 10 दिन पहले दिल्ली में हुआ. अयोध्या की चौरासी कोस की सीमा का निर्धारण करने और धार्मिक महत्व के दर्शनीय व पर्यटन स्थलों की जानकारी देने वाली पुस्तक के लेखक राजेंद्र पांडे ने ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत की.

अहो अयोध्या किताब के लेखक के साथ खास बातचीत.

अयोध्या पर केंद्रित है शोधात्मक पुस्तक

लेखक राजेंद्र पांडेय ने बताया कि अयोध्या नगरी की सीमा मौजूदा शहर के 3 से 4 किलोमीटर के दायरे तक सीमित नहीं है. अयोध्या 144 किलोमीटर तक पूर्व-पश्चिम में और उत्तर-दक्षिण में 36 किलोमीटर तक है. उन्होंने बाताया कि मत्स्य आकार वाली अयोध्या का निर्माण भगवान राम के जन्म से बहुत पहले हुआ था. अयोध्या में भगवान राम का जन्म हो इसके लिए देवताओं और ऋषि- मुनियों ने इसकी चौरासी कोस की परिधि में सालों तक कठोर तप किया, जिसके परिणामस्वरूप भगवान विष्णु ने अवतार लिया. इस तरह के कई रहस्यों का उद्घाटन अयोध्या पर केंद्रित शोधात्मक पुस्तक' अहो अयोध्या ' में किया गया है.

राजेंद्र पांडेय ने बताया कि भगवान विष्णु के कम से कम 6 अवतार का संबंध चौरासी कोस में विस्तारित अयोध्या क्षेत्र से है. वह बताते हैं कि शोध के दौरान यह भी स्पष्ट हुआ कि मार्कंडेय पुराण में ऋषि मेधा का आश्रम भी अयोध्या क्षेत्र में ही है और इसी अयोध्या क्षेत्र से दूसरे मन्वंतर के दौरान यह घोषणा हो चुकी है कि सृष्टि का आठवां मनु कौन होगा. भगवान श्री राम, सरयू और अयोध्या तीनों का संबंध आपस में इतना गुथा हुआ है कि अकेले किसी एक की कल्पना नहीं की जा सकती.

उन्होंने बताया कि अयोध्या का आकार मत्स्य के समान है. अयोध्या को यह आकार क्यों और कैसे मिला, इस रहस्य का उद्घाटन भी इस पुस्तक में किया गया है. मानसरोवर से निकली वशिष्ठ कन्या किसे कहा गया है और अयोध्या की सांस्कृतिक चौहद्दी क्या है, ऐसे अनेक सवालों का जवाब यह पुस्तक देती है. पुस्तक यह भी बताती है कि किस तरह अयोध्या के चौरासी कोस में विस्तारित क्षेत्र के अंदर अनेक पौराणिक और धार्मिक महत्व के स्थल आज भी विद्यमान हैं और इन सब से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जा ही अयोध्या को पृथ्वी लोक पर सर्वाधिक पुण्य नगरी का दर्जा प्रदान करती है.

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