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लखनऊ: दैनिक मजदूरों पर दिख रहा मंदी का असर, महीनें में मिल रहा 5-10 दिन काम - देश में बेरोजगारी

यूपी की राजधानी लखनऊ में मजदूरों पर भी मंदी का असर दिखने लगा है. यहां दूरदराज से मजदूरी की तलाश में आने वाले लोगों को भी महीने में 5-10 दिन का ही रोजगार मिल पा रहा है.

मजदूरों का सरकार पर अनदेखी का आरोप
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Published : Sep 22, 2019, 1:30 PM IST

लखनऊ: देश में जहां एक तरफ मानव विकास, श्रमिक विकास और रोजगार की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं. वहीं राजधानी लखनऊ के दैनिक दिहाड़ी वाले मजदूरों का बुरा हाल है. इन दिहाड़ी मजदूरों में 70 साल के वृद्ध और युवा भी शामिल हैं. देश में बढ़ रही बेरोजगारी को लेकर शायद सरकार चिंतित नहीं है.

लखनऊ में मजदूरी की तलाश में आने वाले मजदूर परेशान.

लखनऊ में मजदूरों पर मंदी का असर
राजधानी लखनऊ में दूरदराज के गांव से लोग मजदूरी के लिए शहर आते हैं और मजदूरी पाने के बाद शाम को अपने घर का चूल्हा जलाते हैं. एक तरफ जहां सरकारी पैसे से सजे मंच से नेता बड़ी-बड़ी बात बोलते हैं, बेरोजगारी की समस्या पर रोजगार देने के तमाम दावे करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत तो कुछ और ही नजर आती है. फिलहाल दैनिक मजदूरों की स्थिति यह है कि महीने में 30 दिन लगातार लखनऊ आने के बाद भी 10 दिन का ही रोजगार मिल पाता है. इससे मजदूर वर्ग का बड़ा तबका परेशान है.

मजदूरों को काम न मिलने के कारण कभी-कभी भूखा भी सोना पड़ता है. अब ऐसे में आखिर ये जाएं तो कहां जाएं और अपनी शिकायत किससे करें. वैसे तो श्रम विभाग कई योजनाओं की बात करता है, लेकिन उन योजनाओं का लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचता नहीं दिख रहा है. लोगों का कहना है कि श्रम विभाग मजदूरों के हित के लिए कभी खड़ा नहीं होता और न ही उनको योजनाओं का लाभ मिलता है.

इसे भी पढ़ें:- कहीं आप भी तो नहीं भूल रहें छोटी-छोटी चीजें, ऐसा है तो देखिए ये खास रिपोर्ट

देश में बेरोजगारी सबसे बड़ी बीमारी बन चुकी है और बड़ी बीमारी होने के साथ ही यह लाइलाज भी हो चुकी है, क्योंकि इस विषय पर तो कोई बात ही नहीं करना चाहता, जब चुनाव होता है तब बेरोजगारी सिर्फ एक चुनावी मुद्दा बन कर रह जाती है. राजधानी लखनऊ में दैनिक मजदूरी के लिए तकरीबन 20 ऐसे अड्डे हैं, जहां लोग मजदूरी की तलाश में आते हैं. इन अड्डों पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में आने वाले मजदूरों में कुछ ही को मजदूरी मिल पाती है, बाकी खाली हाथ अपने घर वापस लौट जाते हैं, जिसकी वजह से इनको कभी-कभी भूखा भी सोना पड़ता है.

लखनऊ: देश में जहां एक तरफ मानव विकास, श्रमिक विकास और रोजगार की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं. वहीं राजधानी लखनऊ के दैनिक दिहाड़ी वाले मजदूरों का बुरा हाल है. इन दिहाड़ी मजदूरों में 70 साल के वृद्ध और युवा भी शामिल हैं. देश में बढ़ रही बेरोजगारी को लेकर शायद सरकार चिंतित नहीं है.

लखनऊ में मजदूरी की तलाश में आने वाले मजदूर परेशान.

लखनऊ में मजदूरों पर मंदी का असर
राजधानी लखनऊ में दूरदराज के गांव से लोग मजदूरी के लिए शहर आते हैं और मजदूरी पाने के बाद शाम को अपने घर का चूल्हा जलाते हैं. एक तरफ जहां सरकारी पैसे से सजे मंच से नेता बड़ी-बड़ी बात बोलते हैं, बेरोजगारी की समस्या पर रोजगार देने के तमाम दावे करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत तो कुछ और ही नजर आती है. फिलहाल दैनिक मजदूरों की स्थिति यह है कि महीने में 30 दिन लगातार लखनऊ आने के बाद भी 10 दिन का ही रोजगार मिल पाता है. इससे मजदूर वर्ग का बड़ा तबका परेशान है.

मजदूरों को काम न मिलने के कारण कभी-कभी भूखा भी सोना पड़ता है. अब ऐसे में आखिर ये जाएं तो कहां जाएं और अपनी शिकायत किससे करें. वैसे तो श्रम विभाग कई योजनाओं की बात करता है, लेकिन उन योजनाओं का लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचता नहीं दिख रहा है. लोगों का कहना है कि श्रम विभाग मजदूरों के हित के लिए कभी खड़ा नहीं होता और न ही उनको योजनाओं का लाभ मिलता है.

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देश में बेरोजगारी सबसे बड़ी बीमारी बन चुकी है और बड़ी बीमारी होने के साथ ही यह लाइलाज भी हो चुकी है, क्योंकि इस विषय पर तो कोई बात ही नहीं करना चाहता, जब चुनाव होता है तब बेरोजगारी सिर्फ एक चुनावी मुद्दा बन कर रह जाती है. राजधानी लखनऊ में दैनिक मजदूरी के लिए तकरीबन 20 ऐसे अड्डे हैं, जहां लोग मजदूरी की तलाश में आते हैं. इन अड्डों पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में आने वाले मजदूरों में कुछ ही को मजदूरी मिल पाती है, बाकी खाली हाथ अपने घर वापस लौट जाते हैं, जिसकी वजह से इनको कभी-कभी भूखा भी सोना पड़ता है.

Intro: जहां देश में एक तरफ मानव विकास श्रमिक विकास और रोजगार की बड़ी-बड़ी बातें होती हैं वही राजधानी लखनऊ के दैनिक दिहाड़ी वाले मजदूरों का बुरा हाल है जब ईटीवी भारत ने लखनऊ के दैनिक मजदूरों की समस्या सुनी तो दंग रह गए इन दिहाड़ी मजदूरों में 70 साल के व्रद्ध और 16 साल के बच्चे भी शामिल हैं देश में बढ़ रही बेरोजगारी को लेकर शायद सरकार चिंतित नहीं है राजधानी लखनऊ में दूरदराज के गांव से मजदूरी के लिए शहर आते हैं और मजदूरी पाने के बाद शाम को अपने घर का चूल्हा जलाते हैं कभी-कभी इन लोगों को मजदूरी ना मिलने के कारण खाना भी मुश्किल से मिलता है


Body: जहां एक तरफ सरकारी पैसे से सजे मंच से नेता बड़बोले बोल बोलते हैं और बेरोजगारी की समस्या पर रोजगार देने के तमाम दावे करते हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है अभी भी लोग बेरोजगारी की वजह से परेशान है फिलहाल दैनिक मजदूरों की स्थिति यह है के महीने में 30 दिन लगातार आने के बावजूद भी 10 दिन ही रोजगार मिल पाता है ऐसे में मजदूर वर्ग का बड़ा तबका परेशान है सरकार इन लोगों की समस्या को देखकर शायद चिंतित नहीं है मजदूरों को काम ना मिलने के कारण कभी-कभी भूखा भी सोना पड़ता है अब ऐसे में आखिर यह लोग कहां जाएं और अपनी शिकायत किससे करें वैसे तो श्रम विभाग कई योजनाओं की बात करता है लेकिन उन योजनाओं का लाभ जमीनी स्तर तक नहीं पहुंच पाता लोगों का कहना है श्रम विभाग मजदूरों के हित के लिए कभी भी खड़ा नहीं होता और ना ही उनको योजनाओं का लाभ मिलता है


Conclusion: देश में बेरोजगारी सबसे बड़ी बीमारी है बड़ी बीमारी होने के कारण लाइलाज भी है क्योंकि इस विषय पर कोई बात करना ही नहीं चाहता जब चुनाव होता है तब बेरोजगारी सिर्फ और सिर्फ चुनावी मुद्दा बन कर रह जाती है राजधानी लखनऊ में दैनिक मजदूरी के लिए तकरीबन 20 ऐसे अड्डे हैं जहां लोग मजदूरी की तलास में आते हैं इन अड्डों पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में मजदूर आते हैं जिसमें से कुछ ही लोग मजदूरी पाते हैं बाकी खाली हाथ अपने घर बापस लौट जाते हैं जिसकी बजह इन लोगो को कभी कभी भूखा भी सोना पड़ता है संवाददाता सत्येंद्र शर्मा 81 93 86 40 12 बाइट 1 रामस्वरुप 2 पंकज 3 विनोद 4 राशिद 4 अनवर 5 घनस्याम
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