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क्यों चर्चा का विषय बना है, सीएम योगी का यह साहसिक बयान

अपनी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से दलाली से दूर रहने संबंधी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का साहसिक बयान आजकल चर्चा में है. आखिर उन्हें ऐसा बयान क्यों देना पड़ा, चलिए जानते हैं इसकी वजह. पेश है यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी की यह खास रिपोर्ट.

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Published : May 11, 2022, 9:18 PM IST

Updated : May 11, 2022, 10:31 PM IST

लखनऊ : अपनी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से दलाली से दूर रहने संबंधी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का साहसिक बयान आजकल चर्चा में है. आखिर क्यों मुख्यमंत्री को सार्वजनिक तौर पर यह कहना पड़ा कि 'पहले अपनी दलाली बंद करो, अफसरों को तो मैं सुधार दूंगा.' दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक ईमानदार, कठिन परिश्रम करने वाले और बेबाक नेता के रूप में जाना जाता है. उनकी बातों में कोई लाग-लपेट नहीं होती और वह हकीकत से वाकिफ भी हैं. ऐसे में योगी जी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह किसी का पक्ष लेंगे. इसलिए उन्होंने बेबाक टिप्पणी की.


विगत नौ मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ललितपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में पहुंचे थे. यहां भाजपा के कुछ नेताओं ने मुख्यमंत्री से अफसरों के रवैये की शिकायत की और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए. इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नाराजगी जाहिर की. उन्होंने शिकायत करने वाले भाजपा नेताओं से कहा कि 'पहले अपनी दलाली बंद करो, अफसरों को तो मैं सुधार दूंगा.' इस टिप्पणी की गूंज भारतीय जनता पार्टी के हर नेता और कार्यकर्ता तक पहुंची. तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी गैर जरूरी लगी. कुछ नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री को सार्वजनिक तौर पर ऐसी टिप्पणी से बचना चाहिए था, तो वहीं पार्टी में ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं है, जो हकीकत हो स्वीकारते हैं और मानते हैं कि कुछ नेता गलत कार्यों में पड़कर पार्टी की छवि खराब करते हैं.

यह बोले राजनीतिक विश्लेषक.
बहरहाल चर्चा तो इस बात की होनी चाहिए कि यह विषय आया ही क्यों? कौन नहीं जानता की बड़ी संख्या में लोग राजनीति में सेवा धर्म के बजाय रसूख और धन का सपना लेकर आते हैं. ऐसे नेताओं को जीवन यापन भी करना होता है. स्वाभाविक है कि जब उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता, तो वह आजीविका चलाने के लिए कुछ न कुछ तो करेंगे ही. ऐसे में कई नेता सत्ता का लाभ उठाने के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाकर ठेका-पट्टी के लिए सिफारिशें करते हैं, तो कभी अन्य कार्यों के लिए. कई मामले पुलिस में पैरवी और दलाली के भी होते हैं.
ऐसे नेताओं की यह इच्छा भी रहती है कि उन्हें अपने वरिष्ठ नेताओं का संरक्षण भी मिले, लेकिन यह हर बार संभव नहीं होता. कई अफसर अनावश्यक दबाव में नहीं आते, तो कुछ अधिकारी ईमानदारी से काम करना चाहते हैं और वह गलत काम करने से डरते हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री का यह बयान दोनों के लिए ही चेतावनी भरा है. सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कई अफसरों पर कार्रवाई कर यह संदेश देने का काम भी किया कि वह बेईमानों को बख्शने के मूड में कतई नहीं हैं. इस मामले में राजनीतिक विश्लेषक डॉ मनीष हिंदवी कहते हैं कि मुख्यमंत्री का यह बयान बड़ा साहसिक है कि वह अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं, वह दलाली बंद करें. अधिकारियों को वह संभाल लेंगे.
वैसे तो इस बयान की तारीफ हर कोई करेगा, लेकिन एक सवाल भी है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सारा का सारा तंत्र अधिकारियों के हाथ में ही चला जाएगा. वैसे आरोप लगते हैं कि सारा शासन अधिकारी ही चला रहे हैं. पार्टी के लिए लड़ने-भिड़ने और जिताने वाले कार्यकर्ताओं की कुछ उम्मीदें तो रहती ही हैं. दलाली शब्द एक अलग मायने में है, किंतु ठेका-पट्टा आदि का काम तो करते ही हैं अपनी सरकार में लोग. यह हमेशा से होता रहा है. हमें यह देखना है कि भ्रष्टाचार कम हो. यह भी देखना है कि पार्टी का आदमी यह कर रहा है या नहीं. वह कहते हैं कि मुख्यमंत्री के इस बयान का स्वागत है, किंतु सरकार जन प्रतिनिधियों के हाथ में ही रहे. अधिकारियों के हाथ में न जाए.एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ का जो जीवन है वह ईमानदारी और निष्ठा पर आधारित है. इसलिए यदि वह किसी से सुधरने के लिए कह रहे हैं, तो इसका अपने आप में बहुत महत्व है.
चाहें लोकसभा के सदस्य के रूप में हो या पांच साल मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने का, उनका पूरा जीवन बेदाग रहा है. उन्होंने अपने स्तर से भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दृढ़ संकल्प दिखाया है. इसके बावजूद कहीं न कहीं कोई कमी रह गई है. एक समय था जब भ्रष्टाचार पर एक प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम ऊपर से एक रुपया भेजते हैं, तो नीचे पंद्रह पैसे पहुंचते हैं. उनकी इस बात में कहीं न कहीं सच्चाई थी. उसी तरह योगी के बयान में भी एक सच्चाई है. प्राय: देखा जाता है कि जब किसी नेता या अफसर के यहां जब छापा पड़ता है, तो इतना धन निकलता है कि गिनने के लिए मशीनें लगानी पड़ती हैं. आज भी आम जनता का काम बिना सुविधा शुल्क दिए नहीं होता है. इसलिए बहुत बड़े बदलाव की आवश्यकता है. योगी का बयान बहुत चुनौती पूर्ण भी है, क्योंकि जो नेता अभ्यस्त हैं, वह यथास्थिति भी चाहते हैं. इसी में उनका लाभ होता है. हां, योगी के बयान में दो प्रकार की निष्ठा दिखाई दे रही है. एक संगठन के प्रति और दूसरी सरकार के प्रति. इसीलिए एक संदेश उन्होंने दिया है.

लखनऊ : अपनी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से दलाली से दूर रहने संबंधी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का साहसिक बयान आजकल चर्चा में है. आखिर क्यों मुख्यमंत्री को सार्वजनिक तौर पर यह कहना पड़ा कि 'पहले अपनी दलाली बंद करो, अफसरों को तो मैं सुधार दूंगा.' दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक ईमानदार, कठिन परिश्रम करने वाले और बेबाक नेता के रूप में जाना जाता है. उनकी बातों में कोई लाग-लपेट नहीं होती और वह हकीकत से वाकिफ भी हैं. ऐसे में योगी जी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह किसी का पक्ष लेंगे. इसलिए उन्होंने बेबाक टिप्पणी की.


विगत नौ मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ललितपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में पहुंचे थे. यहां भाजपा के कुछ नेताओं ने मुख्यमंत्री से अफसरों के रवैये की शिकायत की और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए. इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नाराजगी जाहिर की. उन्होंने शिकायत करने वाले भाजपा नेताओं से कहा कि 'पहले अपनी दलाली बंद करो, अफसरों को तो मैं सुधार दूंगा.' इस टिप्पणी की गूंज भारतीय जनता पार्टी के हर नेता और कार्यकर्ता तक पहुंची. तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी गैर जरूरी लगी. कुछ नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री को सार्वजनिक तौर पर ऐसी टिप्पणी से बचना चाहिए था, तो वहीं पार्टी में ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं है, जो हकीकत हो स्वीकारते हैं और मानते हैं कि कुछ नेता गलत कार्यों में पड़कर पार्टी की छवि खराब करते हैं.

यह बोले राजनीतिक विश्लेषक.
बहरहाल चर्चा तो इस बात की होनी चाहिए कि यह विषय आया ही क्यों? कौन नहीं जानता की बड़ी संख्या में लोग राजनीति में सेवा धर्म के बजाय रसूख और धन का सपना लेकर आते हैं. ऐसे नेताओं को जीवन यापन भी करना होता है. स्वाभाविक है कि जब उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता, तो वह आजीविका चलाने के लिए कुछ न कुछ तो करेंगे ही. ऐसे में कई नेता सत्ता का लाभ उठाने के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाकर ठेका-पट्टी के लिए सिफारिशें करते हैं, तो कभी अन्य कार्यों के लिए. कई मामले पुलिस में पैरवी और दलाली के भी होते हैं.
ऐसे नेताओं की यह इच्छा भी रहती है कि उन्हें अपने वरिष्ठ नेताओं का संरक्षण भी मिले, लेकिन यह हर बार संभव नहीं होता. कई अफसर अनावश्यक दबाव में नहीं आते, तो कुछ अधिकारी ईमानदारी से काम करना चाहते हैं और वह गलत काम करने से डरते हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री का यह बयान दोनों के लिए ही चेतावनी भरा है. सत्ता में आते ही मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कई अफसरों पर कार्रवाई कर यह संदेश देने का काम भी किया कि वह बेईमानों को बख्शने के मूड में कतई नहीं हैं. इस मामले में राजनीतिक विश्लेषक डॉ मनीष हिंदवी कहते हैं कि मुख्यमंत्री का यह बयान बड़ा साहसिक है कि वह अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं, वह दलाली बंद करें. अधिकारियों को वह संभाल लेंगे.
वैसे तो इस बयान की तारीफ हर कोई करेगा, लेकिन एक सवाल भी है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सारा का सारा तंत्र अधिकारियों के हाथ में ही चला जाएगा. वैसे आरोप लगते हैं कि सारा शासन अधिकारी ही चला रहे हैं. पार्टी के लिए लड़ने-भिड़ने और जिताने वाले कार्यकर्ताओं की कुछ उम्मीदें तो रहती ही हैं. दलाली शब्द एक अलग मायने में है, किंतु ठेका-पट्टा आदि का काम तो करते ही हैं अपनी सरकार में लोग. यह हमेशा से होता रहा है. हमें यह देखना है कि भ्रष्टाचार कम हो. यह भी देखना है कि पार्टी का आदमी यह कर रहा है या नहीं. वह कहते हैं कि मुख्यमंत्री के इस बयान का स्वागत है, किंतु सरकार जन प्रतिनिधियों के हाथ में ही रहे. अधिकारियों के हाथ में न जाए.एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ का जो जीवन है वह ईमानदारी और निष्ठा पर आधारित है. इसलिए यदि वह किसी से सुधरने के लिए कह रहे हैं, तो इसका अपने आप में बहुत महत्व है.
चाहें लोकसभा के सदस्य के रूप में हो या पांच साल मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने का, उनका पूरा जीवन बेदाग रहा है. उन्होंने अपने स्तर से भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दृढ़ संकल्प दिखाया है. इसके बावजूद कहीं न कहीं कोई कमी रह गई है. एक समय था जब भ्रष्टाचार पर एक प्रधानमंत्री ने कहा था कि हम ऊपर से एक रुपया भेजते हैं, तो नीचे पंद्रह पैसे पहुंचते हैं. उनकी इस बात में कहीं न कहीं सच्चाई थी. उसी तरह योगी के बयान में भी एक सच्चाई है. प्राय: देखा जाता है कि जब किसी नेता या अफसर के यहां जब छापा पड़ता है, तो इतना धन निकलता है कि गिनने के लिए मशीनें लगानी पड़ती हैं. आज भी आम जनता का काम बिना सुविधा शुल्क दिए नहीं होता है. इसलिए बहुत बड़े बदलाव की आवश्यकता है. योगी का बयान बहुत चुनौती पूर्ण भी है, क्योंकि जो नेता अभ्यस्त हैं, वह यथास्थिति भी चाहते हैं. इसी में उनका लाभ होता है. हां, योगी के बयान में दो प्रकार की निष्ठा दिखाई दे रही है. एक संगठन के प्रति और दूसरी सरकार के प्रति. इसीलिए एक संदेश उन्होंने दिया है.
Last Updated : May 11, 2022, 10:31 PM IST
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