लखनऊ : प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आबादी दिनों दिन बढ़ती जा रही है. बच्चों की अच्छी शिक्षा, नौकरी और अन्य रोजगार संबंधी साधनों के लिए आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में लोग पलायन कर राजधानी में या तो किराए पर रहते हैं अथवा अपना घर बना लेते हैं. इसी कवायद में लखनऊ की आबादी पचास लाख का आंकड़ा जाने कब पार कर चुकी थी. अब तक सरकारों ने इस पलायन को रोकने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए थे, हालांकि पिछले एक दशक में जिला मुख्यालयों का काफी विकास हुआ है. फिर चाहे वह शिक्षा हो, सड़कों और यातायात के साधनों की बात हो या रोजगार की. हाल ही में केंद्र सरकार ने अपने बजट में वंदे भारत मेट्रो का तोहफा देकर इस दिशा में एक और उल्लेखनीय काम किया है. यह मेट्रो ट्रेनें चल जाने के बाद आसपास 100 किलो मीटर की परिधि वाले जिलों से पलायन रुकेगा और लोग अपनी जरूरतों के लिए डेली अप डाउन कर पाएंगे.
पिछले दिनों केंद्रीय रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव ने वंदे भारत ट्रेनों की तरह 'वंवंदे भारत मेट्रो' चलाने की घोषणा की है. इनका मेट्रो ट्रेनों का संचालन महानगर से प्रमुख नगरों को इंटर सिटी ट्रेनों की तरह जोड़ने के लिए किया जाएगा. वंदे भारत मेट्रो ऐसे ही शहरों को जोड़ेगी, जिनकी दूरी सौ किलो मीटर से कम है. यह मेमू ट्रेनों की जगह लेगी. वंदे मेट्रो हाइड्रोजन ईंधन से चलेंगी, इस कारण इससे प्रदूषण भी नहीं होगा. शुरुआत में वंदे भारत ट्रेनें प्रमुख रूप से राजधानी लखनऊ से कानपुर, सीतापुर और रायबरेली के लिए चलेंगी. वंदे भारत मेट्रो चलने के बाद लखनऊ से कानपुर का सफर अधिकतम तीस से पैंतालीस मिनट के बीच तय होगा. अभी कानपुर से लखनऊ के सफर में दो से तीन घंटे तक लग जाते हैं. वंदे भारत मेट्रो की कनेक्टिविटी लखनऊ और कानपुर मेट्रो से भी कराई जाएगी, ताकि यात्रियों को स्थानीय स्तर पर आने-जाने में कोई असुविधा न हो. इस मेट्रो से लखनऊ से सीतापुर की लगभग नब्बे किलो मीटर की यात्रा पचास मिनट में तय होगी. अभी लखनऊ से सीतापुर जाने में लगभग दो घंटे का समय लगता है. दिसंबर 2023 तक वंदे भारत मेट्रो का सपना साकार होने की उम्मीद है.
माना जा रहा है कि वंदे भारत मेट्रो की शुरुआत के बाद लखनऊ को जिला मुख्यालयों से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों पर यातायात का भार कम होगा और जिन लोगों का सड़क जाम में फंसकर समय बर्बाद होता है, उन्हें भी राहत मिलेगी. एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन डेढ़ लाख से ज्यादा दैनिक यात्रियों का प्रतिदिन राजधानी आना जाना होता है. इन यात्रियों को वंदे भारत से बड़ी राहत मिलेगी और लोकल यात्रा की तरह महज घंटे भर में एक शहर से दूसरे शहर के लिए यात्रा कर पाएंगे. उच्च शिक्षा के लिए आने वाले छात्र भी अप-डाउन करके पढ़ाई कर पाएंगे. यही नहीं इससे व्यावसायिक गतिविधियों को भी लाभ मिलेगा. दूध, ताजे फल और सब्जियां भी राजधानी तक सुगम तरीके से पहुंच सकेंगी. सबसे बड़ी बात पलायन रोकने की है. जब यातायात के साधन सुगम, सस्ते और बेहतर होंगे तो कोई क्यों अपना शहर छोड़कर दूसरी जगह बसना चाहेगा. अनुमान है कि वंदे भारत मेट्रो का किराया रोडवेज बसों से काफी कम रहेगा.
इस संबंध में विश्लेषक डॉक्टर वंशीधर शुक्ल कहते हैं 'शहरी हो अथवा गांव का बाशिंदा, कोई भी व्यक्ति अकारण अपना घर नहीं छोड़ना चाहता. यदि छोटे शहरों में शिक्षा के लिए अच्छे संस्थान, रोजगार के लिए अच्छे साधन और महानगरों से कनेक्टिविटी के लिए कम कीमत वाले अच्छे साधन हों, तो कोई क्यों अपना घर छोड़ेगा.' वह कहते हैं कि 'पिछले 10-15 साल में छोटे शहरों, कस्बा और जिला मुख्यालयों का अच्छा विकास हुआ है. सड़कों का कायाकल्प हुआ है. बिजली की उपलब्धता काफी बढ़ी है और रोजगार के अवसर भी पैदा हुए हैं. यह सभी कारण पलायन रोकने में सहायक होते हैं. वंदे भारत मेट्रो ट्रेन यदि सफल रही तो इसके अभूतपूर्व परिणाम देखने को मिल सकते हैं. सरकार को यह देखना है कि यह ट्रेनें समय से चल जाए्ं, रफ्तार अच्छी हो और किराया कम हो. यदि सरकार ध्यान दे पाई, तो निसंदेह यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा.'
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