लखनऊ : राजधानी लखनऊ के निजी अस्पतालों के साथ ही सरकारी अस्पताल भी आग से सुरक्षा को लेकर तैयार नहीं हैं. घटना होने पर भयावह स्थिति हो सकती है. वहीं, निजी अस्पतालों पर कार्रवाई के नाम पर सिर्फ नोटिस देकर खानापूर्ति की जा रही है. बीते सोमवार को एसजीपीजीआई में हुए अग्निकांड के बाद एक बार फिर से अधिकारियों को मरीजों की सुरक्षा की याद आई है. चार बड़े सरकारी अस्पताल हजरतगंज स्थित श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल), महानगर स्थित भाऊराव देवरस, रानी लक्ष्मीबाई व बलरामपुर अस्पताल में फायर फाइटिंग सिस्टम का काम आधा अधूरा पड़ा हुआ है.
पिछली घटनाओं से नहीं लिया गया सबक : बता दें, जुलाई 2017 में केजीएमयू ट्रामा सेंटर में आग की बड़ी दुर्घटना हो गई थी. इस दुर्घटना में सात मरीजों की जान चली गई थी. घटना के बाद सख्त हुई सरकार ने राजधानी में सभी सरकारी अस्पतालों में आग से बचाव के पर्याप्त इंतजाम करने के निर्देश जारी किए गए. सरकार ने फायर फाइटिंग सिस्टम करीब 12 करोड़ रुपये जारी किए ताकि अस्पतालों में आग से बचाव के लिए जरूरी उपकरण लगाए जा सके. सिस्टम विकसित करने का जिम्मा लैक्पेड को दिया था. ताजा घटना होने के कारण कुछ काम तो किया गया. समय बीतने के साथ कार्य की रफ्तार धीमी हो गई. कार्य आज तक पूरा नहीं किया जा सका है.
कोरोना संकट की वजह से अटका काम : अफसरों का तर्क है कि प्रदेश में कोरोना की चपेट में आने के कारण सभी का ध्यान उधर हो गया है. आग से बचने के इंजताम करने के बजाय पूरा प्रशासन ऑक्सीजन प्लांट लगाने में जुट गया. नतीजा श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल, भाऊराव देवरस, ठाकुरगंज संयुक्त चिकित्सालय और रानी लक्ष्मीबाई चिकित्सालय में आग से बचाव के पर्याप्त इंतजाम नहीं है. ठाकुरगंज चिकित्सालय में तो रैम्प तक नहीं बनाया जा सका है. ऐसे में अगर कोई दुर्घटना होती है तो वार्ड से मरीजों को बाहर निकाल पाना मुश्किल हो जाएगा. कुछ ऐसे ही हालत अन्य अस्पतालों का भी है.
आग के मुहाने पर निजी अस्पताल : सरकारी अस्पतालों के साथ निजी अस्पतालों की स्थिति काफी खराब है. शहर में करीब पांच सौ ऐसे छोटे निजी अस्पताल हैं. जहां आग से बचाव का कोई इंतजाम नहीं है. आग से बचने के नाम पर केवल छोटे सिलेंडरों को दीवारों पर टांग दिया गया है. हरदोई रोड व कैंपवेल रोड पर स्थिति तीन दर्जन ऐसे अस्पताल हैं जो मार्केट में अगल बगल दुकानों के बीच बने हैं. कुछ तो बेसमेंट भी स्थित हैं. यही हालत सीतापुर रोड और फैजाबाद रोड की भी है. इन छोटे व मध्यम श्रेणी के अस्पतालों में अगर आग जैसी कोई घटना होती है तो मरीजों को बचा पाना बहुत मुश्किल होगा.
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