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यूपी सरकार ने 3 साल से जमा नहीं की स्कूल की फीस, मैनेजमेंट ने प्रवेश के लिए रख दी ये शर्त

उत्तर प्रदेश सरकार की एक लापरवाही अब प्रदेशभर के निजी स्कूलों फ्री सीट पर पढ़ रहे बच्चों को अब शिक्षा से महरूम कर रही है. सरकार ने इन बच्चों के दाखिले निजी स्कूलों में तो करा दिए. लेकिन, इनकी फीस जमा नहीं की गई है. कई स्कूलों की फीस बीते तीन 3 सालों से अटकी हुई है.

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यूपी सरकार ने 3 साल से जमा नहीं की स्कूल की फीस
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Published : May 6, 2022, 2:29 PM IST

लखनऊ: शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में 25% सीटें गरीब और जरूरतमंद परिवार के बच्चों के लिए आरक्षित की गई हैं. इन सीटों पर बेसिक शिक्षा विभाग दाखिले करता है. कानून के तहत निजी स्कूल की जिम्मेदारी है कि वह बेसिक शिक्षा विभाग के द्वारा भेजे गए बच्चों को फ्री सीट पर दाखिला दें. इनकी शुल्क प्रतिपूर्ति के रूप में सरकार भुगतान करती है. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने बीते करीब 3 साल से यह शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं की है. इसका खामियाजा अब बच्चे उठा रहे हैं.

यूपी सरकार ने 3 साल से जमा नहीं की स्कूल की फीस

समाजसेवी आलोक सिंह ने बताया कि उनके पास करीब 100 बच्चों की सूची है. इनमें कई बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें बीते 2 सालों से ₹5000 नहीं दिए गए हैं. इसमें कई ऐसे बच्चे भी हैं, जो बीते 3 साल से इस पैसे का इंतजार कर रहे हैं. यह पैसा बच्चों को किताबे, स्टेशनरी और यूनिफॉर्म जैसे सामान खरीदने के लिए दिया गया था. उनका कहना है कि स्कूलों को भी मिलने वाला प्रति छात्र प्रतिपूर्ति बीते 2-3 साल से नहीं दी गई है.

यह है यूपी की तस्वीर

- 2020-21 में उत्तर प्रदेश सरकार को 10,908 लाख रुपए का शुल्क प्रतिपूर्ति देनी थी. जबकि सरकार की तरफ से सिर्फ 460 लाख रुपए ही जारी किए गए.

- यही तस्वीर वर्ष 2021-22 में भी देखने को मिली है. इस वर्ष में 15,978 लाख रुपए की शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए डिमांड की गई. इसके मुकाबले सिर्फ 100 लाख रुपए का अनुदान ही प्राप्त हुआ.

यह भी पढ़ें: UP Board Exam Result : जून के दूसरे हफ्ते में आ सकते हैं हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के नतीजे

स्कूल अब पीछे हटने लगे

शुल्क प्रतिपूर्ति को लेकर चल रहे विवाद का असर अब स्कूलों में होने वाले दाखिले पर पड़ने लगा है. कई निजी स्कूलों के प्रबंधन की तरफ से बच्चों के दाखिले ना लेने का फैसला लिया गया. राजधानी लखनऊ में ही दाखिले के लिए पहुंच रहे बच्चों को लौटाया जा रहा है. समाजसेवी आलोक सिंह ने बताया कि स्कूल फीस ना मिलने की दुहाई दे रहे हैं. कई स्कूल को ऐसे हैं, जिन्होंने पहले दाखिले दिए और अब आर्थिक स्थिति ना होने के कारण हाथ खड़े कर रहे हैं. उनका कहना है कि यहां सरकार को सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है वरना बच्चों को नुकसान भुगतना पड़ेगा.

बंद स्कूलों का भी कर दिया आवंटन

आरटीई के तहत जरूरतमंद परिवारों के बच्चों को निजी स्कूल आवंटन में एक बड़ी खामी सामने आई है. कई बच्चों को तो बंद हो चुके स्कूलों में सीटें आवंटित कर दी गई. बांग्ला बाजार स्थित ग्रीन विलेज स्कूल में दाखिले के लिए भरत कुमार ने अपने बच्चे का आवेदन भरा. उन्हें शिक्षा विभाग की तरफ से स्कूल अलॉट भी कर दिया गया. लेकिन, जब वह दाखिला लेने पहुंचे तो स्कूल बंद होने की जानकारी मिली .

यह भी पढ़ें: रेलवे 9 और 10 मई को भर्ती परीक्षा के लिए चलाएगा 65 विशेष ट्रेनें

इस तरह की शिकायतों की जब जांच की गई तो पता चला कि स्विफ्ट लखनऊ में 15 से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं, जो कोरोना काल में बंद हो गए. इनमें पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चों की पढ़ाई छूट गई है. जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी विजय प्रताप सिंह ने बताया कि इन स्कूलों के संचालकों की तरफ से संचालन बंद किए जाने के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गई थी. जिसके चलते यह असहज स्थिति उत्पन्न हुई है.

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लखनऊ: शिक्षा के अधिकार के तहत निजी स्कूलों में 25% सीटें गरीब और जरूरतमंद परिवार के बच्चों के लिए आरक्षित की गई हैं. इन सीटों पर बेसिक शिक्षा विभाग दाखिले करता है. कानून के तहत निजी स्कूल की जिम्मेदारी है कि वह बेसिक शिक्षा विभाग के द्वारा भेजे गए बच्चों को फ्री सीट पर दाखिला दें. इनकी शुल्क प्रतिपूर्ति के रूप में सरकार भुगतान करती है. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने बीते करीब 3 साल से यह शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं की है. इसका खामियाजा अब बच्चे उठा रहे हैं.

यूपी सरकार ने 3 साल से जमा नहीं की स्कूल की फीस

समाजसेवी आलोक सिंह ने बताया कि उनके पास करीब 100 बच्चों की सूची है. इनमें कई बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें बीते 2 सालों से ₹5000 नहीं दिए गए हैं. इसमें कई ऐसे बच्चे भी हैं, जो बीते 3 साल से इस पैसे का इंतजार कर रहे हैं. यह पैसा बच्चों को किताबे, स्टेशनरी और यूनिफॉर्म जैसे सामान खरीदने के लिए दिया गया था. उनका कहना है कि स्कूलों को भी मिलने वाला प्रति छात्र प्रतिपूर्ति बीते 2-3 साल से नहीं दी गई है.

यह है यूपी की तस्वीर

- 2020-21 में उत्तर प्रदेश सरकार को 10,908 लाख रुपए का शुल्क प्रतिपूर्ति देनी थी. जबकि सरकार की तरफ से सिर्फ 460 लाख रुपए ही जारी किए गए.

- यही तस्वीर वर्ष 2021-22 में भी देखने को मिली है. इस वर्ष में 15,978 लाख रुपए की शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए डिमांड की गई. इसके मुकाबले सिर्फ 100 लाख रुपए का अनुदान ही प्राप्त हुआ.

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स्कूल अब पीछे हटने लगे

शुल्क प्रतिपूर्ति को लेकर चल रहे विवाद का असर अब स्कूलों में होने वाले दाखिले पर पड़ने लगा है. कई निजी स्कूलों के प्रबंधन की तरफ से बच्चों के दाखिले ना लेने का फैसला लिया गया. राजधानी लखनऊ में ही दाखिले के लिए पहुंच रहे बच्चों को लौटाया जा रहा है. समाजसेवी आलोक सिंह ने बताया कि स्कूल फीस ना मिलने की दुहाई दे रहे हैं. कई स्कूल को ऐसे हैं, जिन्होंने पहले दाखिले दिए और अब आर्थिक स्थिति ना होने के कारण हाथ खड़े कर रहे हैं. उनका कहना है कि यहां सरकार को सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है वरना बच्चों को नुकसान भुगतना पड़ेगा.

बंद स्कूलों का भी कर दिया आवंटन

आरटीई के तहत जरूरतमंद परिवारों के बच्चों को निजी स्कूल आवंटन में एक बड़ी खामी सामने आई है. कई बच्चों को तो बंद हो चुके स्कूलों में सीटें आवंटित कर दी गई. बांग्ला बाजार स्थित ग्रीन विलेज स्कूल में दाखिले के लिए भरत कुमार ने अपने बच्चे का आवेदन भरा. उन्हें शिक्षा विभाग की तरफ से स्कूल अलॉट भी कर दिया गया. लेकिन, जब वह दाखिला लेने पहुंचे तो स्कूल बंद होने की जानकारी मिली .

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इस तरह की शिकायतों की जब जांच की गई तो पता चला कि स्विफ्ट लखनऊ में 15 से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं, जो कोरोना काल में बंद हो गए. इनमें पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चों की पढ़ाई छूट गई है. जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी विजय प्रताप सिंह ने बताया कि इन स्कूलों के संचालकों की तरफ से संचालन बंद किए जाने के संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गई थी. जिसके चलते यह असहज स्थिति उत्पन्न हुई है.

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