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यूपी की चुनावी समर में सियासी पार्टियों की चुनौतियां और बनते बिगड़ते समीकरण

बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच अबकी यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022 ) की तैयारियों में जुटी सियासी पार्टियों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है. वहीं, चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही प्रचार पर आयोग की बंदिशों के कारण क्षेत्रीय पार्टियों की चुनौतियां और अधिक बढ़ गई हैं. खैर, आज हम इस रिपोर्ट में सूबे में बनते बिगड़ते सियासी समीकरणों के साथ ही दलगत घेराबंदी और आयोग की बंदिशों के बीच डिजिटलाइज पॉलिटिक्स पर जारी पार्टियों की माहौल मार्केटिंग से आपको अवगत कराएंगे.

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Published : Jan 19, 2022, 8:24 AM IST

Updated : Jan 19, 2022, 8:33 AM IST

हैदराबाद: बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच अबकी यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022 ) की तैयारियों में जुटी सियासी पार्टियों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है. वहीं, चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही प्रचार पर आयोग की बंदिशों के कारण क्षेत्रीय पार्टियों की चुनौतियां और अधिक बढ़ गई हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव आयोग ने संक्रमण के प्रसार के बीच चुनावी प्रचार को डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर करने के निर्देश दिए हैं. हालांकि, आयोग ने क्षेत्रवार जनसंपर्क के लिए निर्धारित कोरोना प्रोटोकॉल के पालन को अनिवार्य करते हुए निगरानी को जिलेवार टीमें लगा रखी हैं. लेकिन इन सब के बीच क्षेत्रीय पार्टियों को ढेरों परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है, क्योंकि उनकी डिजिटलाइज पॉलिटिकल सक्रियता सत्तारूढ़ भाजपा की तुलना में कम है. वहीं, इस रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से बेहतर स्थिति में नजर आ रही है.

वहीं, साल 2022 में कई सियासी पार्टियों का राजनीतिक भविष्य तय होने जा रहा है. एक ओर जहां भाजपा के सामने सत्ता में दोबारा काबिज होने की चुनौती है तो दूसरी ओर विपक्ष भी सत्ता पाने को बेचैन दिख रहा है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की कूटनीतिक सियासी चतुराई के चाल को भाजपा बखूबी समझ रही है. लेकिन जिस तरीके से अखिलेश यादव ने छोटी व जातिगत पार्टियों के साथ गठजोड़ कर विधानसभावार भाजपा को घेरने की कोशिश की है, उसे देखते हुए यह तो स्पष्ट हो गया है कि अबकी मुख्य रूप से मुकाबला भाजपा बनाम सपा के बीच ही होना है. लेकिन सूबे में कांग्रेस की प्रियंका स्ट्रैटजी "लड़की हूं लड़ सकती हूं" का असर भी देखने को मिल रहा है, जिसे एकदम से इग्नोर भी नहीं किया जा सकता.

सियासी पार्टियों की चुनौतियां
सियासी पार्टियों की चुनौतियां

इधर, सूबे की सियासी माहौल व आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व खासा गंभीर है. इसे लेकर भाजपा ने प्रदेश में प्रभारियों की जिम्मेदारियां बढ़ा दी हैं, ताकि विपक्ष की हर मोर्चे पर किलाबंदी की जा सके. हालांकि, चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्व से पश्चिम तक सभाएं करने के साथ शिलान्यास और लोकार्पणों की झड़ी लगा थी. इसके बाद भाजपा ने सूबे की सभी 403 विधानसभाओं में रथ यात्रा निकाल कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की भी कोशिश की.

इसे भी पढ़ें - कांग्रेस पर तौकीर रजा ने साधा निशाना, कहा- बाटला हाउस में मरने वालों को मिले शहीद का दर्जा

उत्तर प्रदेश विधानसभा
उत्तर प्रदेश विधानसभा

इसके अलावा प्रवासी कार्यकर्ता हर जिले में अलग-अलग नियुक्त किए गए हैं. साथ ही जिले में सांगठनिक बैठकें कर कार्यकर्ताओं को जनसंपर्क के जरूरी टिप्स भी दिए जा रहे हैं. भाजपा के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह यूपी के लिए खासतौर पर चुनावी विशेषज्ञ माने जाते हैं. 2014 का लोकसभा चुनाव हो या 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव, यूपी फतह करने में उनकी भूमिका खास रही है.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी की तैयारी

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव 2022 में कुर्सी पाने को जातिगत समीकरण में फिट बैठने वाली छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर चुके हैं. इसके अलावा अपने चाचा शिवपाल यादव को भी अपने पाले में ले आए हैं. शिवपाल यादव ने भी उन्हें अपना नेता मान लिया है. इधर, पश्चिम उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के साथ गठबंधन उनके लिए लाभदायक साबित हो सकता है, क्योंकि तीन कृषि कानूनों को भले ही केंद्र की मोदी सरकार ने वापस ले लिया हो, पर अब भी यहां के किसान भाजपा सरकार से नाराज हैं. वहीं, सपा को सूबे की सत्ता में लाने के लिए उनकी पार्टी के हर छोटे-बड़े नेता पूरी सक्रियता से मैदान में डटे हैं. इसके अलावा अखिलेश की विजय रथ यात्रा और उसमें उमड़ी समर्थकों की भीड़ भाजपा को चुनौती पेश करते नजर आई. साथ ही योगी कैबिनेट के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और अन्य कई विधायकों के दल-बदल का भी असर पड़ सकता है.

बसपा सुप्रीमो मायावती
बसपा सुप्रीमो मायावती

बसपा की चुनौतियां

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के सामने मिशन 2022 जीतना बड़ी चुनौती है, क्योंकि जातीय नेताओं के अभाव में पार्टी लगातार कमजोर हुई है. यही कारण है कि मायावती ने पार्टी की बागडोर सतीश चंद्र मिश्रा के कंधों पर सौंप रखी है. ऐसे में उनका पूरा परिवार पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए मेहनत कर रहा है. ब्राह्मण को आकर्षित करने के साथ ही बसपा प्रबुद्ध वर्ग और महिलाओं पर फोकस किए हुए हैं. इसके अलावा पार्टी ने सुरक्षित सीटों पर सेंधमारी के लिए मंडल कमेटी के पदाधिकारियों का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है. खैर, उन्हें कितनी सफलता मिलेगी यह तो भविष्य बताएगा.

प्रदेश कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा
प्रदेश कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा

इसे भी पढ़ें - सपा से मिले धोखे से उबर नहीं पा रहे इमरान मसूद, बसपा में भी नहीं बन पा रही बात

खोई जमीन पाने को संघर्ष कर रही कांग्रेस

प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस भी सत्ता में आने को संघर्षरत है और पार्टी की ओर से सरकार बनाने का लगातार दावा भी किया जा रहा है. महिलाओं को 40 फीसद उम्मीदवारी के साथ ही कई अन्य घोषणाएं भी की गई हैं, जो माहौल बनाने में कुछ हद तक कामयाब रही हैं. इसके अलावा कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मैदान में उतारकर बाजी पलटने की कोशिश की जा रही है पर इसका कुछ खास असर होता नहीं दिख रहा है. खैर, प्रियंका की सियासी स्ट्रैटजी यूपी में कितना कामयाब होगी यह तो अब समय ही बताएगा.

यूपी में AIMIM और मुस्लिम मतदाता

आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी भी यूपी के सियासी समर में मुस्लिम कार्ड के जरिए विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों के लिए चुनौती बने हुए हैं. हालांकि, सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो ओवैसी महज कुछ सीटों को झटकने को हांथ-पांव मार रहे हैं. ऐसे तो चुनाव में सभी पार्टियों के सामने चुनौतियां हैं. भाजपा अपनी कुर्सी बचाने को दमदख के साथ जुटी है तो सत्ता की राह में सपा, भाजपा को हर मोर्चे पर चुनौती दे रही है.

भाजपा के प्रचार में शुमार ये बड़े काम

यूपी में चुनाव प्रचार के लिए भाजपा विकास, राष्ट्रवाद और अघोषित अपने हिंदुत्व के मार्ग पर अग्रसर है. वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत पार्टी के सभी नेताओं के जुबान पर पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, लखनऊ में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, बलरामपुर में सरयू नहर नेशनल प्रोजेक्ट, प्रदेश में कानून-व्यवस्था के मुद्दे के साथ मथुरा के बहाने ध्रुवीकरण की सियासत को हवा देने की कोशिश की जा रही है. लेकिन पश्चिम यूपी में अबकी किसान भाजता के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं.

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सपा के प्रचार के अहम बिन्दु

अबकी सूबे की सत्ता से भाजपा को हटाने के लिए सपा ने शिक्षा, स्वास्थ्य, लचर कानून-व्यवस्था के साथ ही बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाया है. वहीं, सपा लगातार योगी सरकार पर उनके कार्यों को अपना बताने का आरोप लगा रही है. इसके अलावा किसान, दलित और मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों को उठाकर समाजवादी पार्टी ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने का काम किया है.

यूपी में कांग्रेस की पॉलिसी के केंद्र में किसान और महिलाएं

ऐसे तो सूबे के किसान सभी सियासी पार्टियों को खूब भा रहे हैं. लेकिन पार्टी की प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही कांग्रेस अब सूबे में अपनी खोई जमीन पाने को किसान और महिलाओं के भरोसे मैदान मारने के फिराक में है. यही कारण है कि पार्टी ने 40 फीसद महिला उम्मीदवारी पर जोर दिया है, लेकिन टिकट बंटवारे में खासा दिक्कतें पेश आ रही हैं.

बसपा की नीति में बदलाव के मायने

वर्तमान में बसपा नेताओं के अभाव में खामोश खेमे में तब्दील नजर आ रही है, क्योंकि के पार्टी हार्ड कोर वोटर माने जाने वाले दलित और मुस्लिम अब मायावती से किनारा किए हुए हैं. वहीं, पिछले विधानसभा चुनाव में दलितों का एक अच्छा खासा वोट भाजपा को गया था. इसके अलावा मायावती के सियासी रूख में बदलाव और ब्राह्मणों की ओर झुकाव के कारण भी उन्हें आगे मुश्किलें पेश आ सकती हैं. साथ ही चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के कारण उन्हें पश्चिम व मध्य यूपी में भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. खैर, अबकी बसपा सामाजिक न्याय और सूबे में कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाकर मैदान में डटी है.

चुनाव परिणाम - 2017

यूपी की 17वीं विधानसभा के लिए 11 फरवरी से 8 मार्च 2017 तक सात चरणों में मतदान हुए थे और इस चुनाव में कुल 61 फीसद मतदान हुआ था. जिसमें भाजपा ने 312 सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया था, जबकि तब की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी गठबंधन को महज 54 सीटें और बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों से संतोष करना पड़ा था. वहीं, कांग्रेस की झोली में केवल 7 सीटें ही आई थी.

पार्टीवार मतदान फीसद (2017)

पार्टी वोट (%)
भाजपा 39.67%
अपना दल (सोनेलाल)0.98%
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 0.7%
समाजवादी पार्टी 21.82%
कांग्रेस6.25%
बसपा22.23%
रालोद1.78%
निषाद पार्टी 0.62%
निर्दलीय 2.57%

सूबे में कुल मतदाताओं की संख्या

  • पुरुष मतदाताओं की कुल संख्या करीब 7.7 करोड़
  • महिला मतदाताओं की कुल संख्या करीब 6.3 करोड़
  • ट्रांसजेंडर मतदाताओं की कुल संख्या करीब 6,983
  • कुल मतदाताओं की संख्या करीब 14.05 करोड़ के आसपास है.

सूबे की जातिगत संरचना व आबादी

जाति आबादी
मुस्लिम 18-20%
दलित25%
ब्राह्मण8%
यादव 13%
कुर्मी 12%
ठाकुर 5%
अन्य19%

2022 यूपी विधानसभा चुनाव

  • 7 चरणों में होंगे विधानसभा चुनाव
  • 403 विधानसभा सीटों वाले यूपी में 10 फरवरी को पहले चरण का मतदान.
  • 10 मार्च को मतगणना.

पहला चरणः 10 फरवरी 2022 मतदान

यूपी में पहले चरण में 15 जिलों की 73 सीटों पर चुनाव होंगे. अधिसूचना तारीख निकल गई है, जो 14 जनवरी निर्धारित थी तो वहीं, नामांकन की आखिरी तारीख 21 जनवरी और नामांकन की जांच की तारीख 24 जनवरी निर्धारित है. इसके साथ ही नाम वापसी आगामी 27 जनवरी तक हो सकती है और मतदान 10 फरवरी को होगा. पहले चरण में मेरठ, शामली, बागपत, मेरठ, हापुड़, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, गौतमबुद्ध नगर और आगरा में वोटिंग होगी.

दूसरा चरणः 14 फरवरी 2022 मतदान

दूसरे चरण में 11 जिलों के 67 विधानसभा क्षेत्रों में वोट डाले जाएंगे. अधिसूचना - 21 जनवरी, नामांकन की आखिरी तारीख - 28 जनवरी, नामांकन की जांच - 29 जनवरी, नाम वापसी - 31 जनवरी, मतदान - 14 फरवरी. दूसरे चरण में अमरोहा, संभल, सहारनपुर, बिजनौर, रामपुर, शाहजहांपुर, बरेली, बदायूं, मुरादाबाद में वोटिंग होगी.

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तीसरा चरणः 20 फरवरी 2022 मतदान

12 जिलों के 69 विधानसभा क्षेत्रों में तीसरे चरण के दौरान चुनाव होंगे. अधिसूचना- 25 जनवरी, नामांकन की आखिरी तारीख- 1 फरवरी, नामांकन की जांच- 2 फरवरी, नाम वापसी- 4 फरवरी, मतदान- 20 फरवरी. तीसरे चरण में हाथरस, कासगंज, फर्रुखाबाद, कन्नौज, फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, इटावा, औरैया, जालौन, हमीरपुर, महोबा, झाँसी, ललितपुर, कानपुर देहात, कानपुर नगर में वोटिंग होगी.

चौथा चरणः 23 फरवरी 2022 मतदान

12 जिलों के 53 विधानसभा क्षेत्रों में चौथे चरण के दौरान चुनाव होंगे. अधिसूचना- 27 जनवरी, नामांकन की आखिरी तारीख- 3 फरवरी, नामांकन की जांच- 4 फरवरी, नाम वापसी - 7 फरवरी, मतदान- 23 फरवरी. चौथे चरण में सीतापुर, हरदोई, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, फतेहपुर, उन्नाव, रायबरेली, बांदा में वोटिंग होगी.

पांचवां चरणः 27 फरवरी 2022 मतदान

52 विधानसभा क्षेत्रों में पांचवें चरण के दौरान 11 जिलों में चुनाव होंगे. अधिसूचना- 1 फरवरी, नामांकन की आखिरी तारीख- 8 फरवरी, नामांकन की जांच- 9 फरवरी, नाम वापसी - 11 फरवरी, मतदान- 27 फरवरी. पांचवें चरण में गोंडा, अयोध्या, श्रावस्ती, बहराइच, बाराबंकी, अमेठी, कौशांबी, चित्रकूट, प्रयागराज, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ में वोटिंग होगी.

छठा चरणः 03 मार्च 2022 मतदान

सात जिलों की 49 विधानसभा क्षेत्रों में पांचवे चरण के दौरान मतदान संपन्न होंगे. अधिसूचना- 4 फरवरी, नामांकन की आखिरी तारीख- 11 फरवरी, नामांकन की जांच - 14 फरवरी, नाम वापसी - 16 फरवरी, मतदान- 3 मार्च. छठवें चरण में महाराजगंज, कुशीनगर, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, आंबेडकर नगर, गोरखपुर, बलिया, देवरिया और संत कबीर नगर में वोटिंग होगी.

सातवां और आखिरी चरणः 07 मार्च 2022 मतदान

7 जिलों की 40 विधानसभा क्षेत्रों में सातवें चरण में चुनाव होंगे. अधिसूचना - 10 फरवरी, नामांकन की आखिरी तारीख - 17 फरवरी, नामांकन की जांच - 18 फरवरी, नाम वापसी - 21 फरवरी, मतदान - 7 मार्च. सातवें चरण में जौनपुर, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, संत रविदास नगर, गाजीपुर, सोनभद्र, चंदौली में वोटिंग होगी.

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हैदराबाद: बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच अबकी यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022 ) की तैयारियों में जुटी सियासी पार्टियों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है. वहीं, चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही प्रचार पर आयोग की बंदिशों के कारण क्षेत्रीय पार्टियों की चुनौतियां और अधिक बढ़ गई हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव आयोग ने संक्रमण के प्रसार के बीच चुनावी प्रचार को डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर करने के निर्देश दिए हैं. हालांकि, आयोग ने क्षेत्रवार जनसंपर्क के लिए निर्धारित कोरोना प्रोटोकॉल के पालन को अनिवार्य करते हुए निगरानी को जिलेवार टीमें लगा रखी हैं. लेकिन इन सब के बीच क्षेत्रीय पार्टियों को ढेरों परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है, क्योंकि उनकी डिजिटलाइज पॉलिटिकल सक्रियता सत्तारूढ़ भाजपा की तुलना में कम है. वहीं, इस रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से बेहतर स्थिति में नजर आ रही है.

वहीं, साल 2022 में कई सियासी पार्टियों का राजनीतिक भविष्य तय होने जा रहा है. एक ओर जहां भाजपा के सामने सत्ता में दोबारा काबिज होने की चुनौती है तो दूसरी ओर विपक्ष भी सत्ता पाने को बेचैन दिख रहा है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की कूटनीतिक सियासी चतुराई के चाल को भाजपा बखूबी समझ रही है. लेकिन जिस तरीके से अखिलेश यादव ने छोटी व जातिगत पार्टियों के साथ गठजोड़ कर विधानसभावार भाजपा को घेरने की कोशिश की है, उसे देखते हुए यह तो स्पष्ट हो गया है कि अबकी मुख्य रूप से मुकाबला भाजपा बनाम सपा के बीच ही होना है. लेकिन सूबे में कांग्रेस की प्रियंका स्ट्रैटजी "लड़की हूं लड़ सकती हूं" का असर भी देखने को मिल रहा है, जिसे एकदम से इग्नोर भी नहीं किया जा सकता.

सियासी पार्टियों की चुनौतियां
सियासी पार्टियों की चुनौतियां

इधर, सूबे की सियासी माहौल व आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व खासा गंभीर है. इसे लेकर भाजपा ने प्रदेश में प्रभारियों की जिम्मेदारियां बढ़ा दी हैं, ताकि विपक्ष की हर मोर्चे पर किलाबंदी की जा सके. हालांकि, चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्व से पश्चिम तक सभाएं करने के साथ शिलान्यास और लोकार्पणों की झड़ी लगा थी. इसके बाद भाजपा ने सूबे की सभी 403 विधानसभाओं में रथ यात्रा निकाल कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की भी कोशिश की.

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उत्तर प्रदेश विधानसभा
उत्तर प्रदेश विधानसभा

इसके अलावा प्रवासी कार्यकर्ता हर जिले में अलग-अलग नियुक्त किए गए हैं. साथ ही जिले में सांगठनिक बैठकें कर कार्यकर्ताओं को जनसंपर्क के जरूरी टिप्स भी दिए जा रहे हैं. भाजपा के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह यूपी के लिए खासतौर पर चुनावी विशेषज्ञ माने जाते हैं. 2014 का लोकसभा चुनाव हो या 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव, यूपी फतह करने में उनकी भूमिका खास रही है.

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी की तैयारी

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव 2022 में कुर्सी पाने को जातिगत समीकरण में फिट बैठने वाली छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर चुके हैं. इसके अलावा अपने चाचा शिवपाल यादव को भी अपने पाले में ले आए हैं. शिवपाल यादव ने भी उन्हें अपना नेता मान लिया है. इधर, पश्चिम उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के साथ गठबंधन उनके लिए लाभदायक साबित हो सकता है, क्योंकि तीन कृषि कानूनों को भले ही केंद्र की मोदी सरकार ने वापस ले लिया हो, पर अब भी यहां के किसान भाजपा सरकार से नाराज हैं. वहीं, सपा को सूबे की सत्ता में लाने के लिए उनकी पार्टी के हर छोटे-बड़े नेता पूरी सक्रियता से मैदान में डटे हैं. इसके अलावा अखिलेश की विजय रथ यात्रा और उसमें उमड़ी समर्थकों की भीड़ भाजपा को चुनौती पेश करते नजर आई. साथ ही योगी कैबिनेट के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य और अन्य कई विधायकों के दल-बदल का भी असर पड़ सकता है.

बसपा सुप्रीमो मायावती
बसपा सुप्रीमो मायावती

बसपा की चुनौतियां

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के सामने मिशन 2022 जीतना बड़ी चुनौती है, क्योंकि जातीय नेताओं के अभाव में पार्टी लगातार कमजोर हुई है. यही कारण है कि मायावती ने पार्टी की बागडोर सतीश चंद्र मिश्रा के कंधों पर सौंप रखी है. ऐसे में उनका पूरा परिवार पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए मेहनत कर रहा है. ब्राह्मण को आकर्षित करने के साथ ही बसपा प्रबुद्ध वर्ग और महिलाओं पर फोकस किए हुए हैं. इसके अलावा पार्टी ने सुरक्षित सीटों पर सेंधमारी के लिए मंडल कमेटी के पदाधिकारियों का लक्ष्य निर्धारित कर दिया है. खैर, उन्हें कितनी सफलता मिलेगी यह तो भविष्य बताएगा.

प्रदेश कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा
प्रदेश कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा

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खोई जमीन पाने को संघर्ष कर रही कांग्रेस

प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस भी सत्ता में आने को संघर्षरत है और पार्टी की ओर से सरकार बनाने का लगातार दावा भी किया जा रहा है. महिलाओं को 40 फीसद उम्मीदवारी के साथ ही कई अन्य घोषणाएं भी की गई हैं, जो माहौल बनाने में कुछ हद तक कामयाब रही हैं. इसके अलावा कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मैदान में उतारकर बाजी पलटने की कोशिश की जा रही है पर इसका कुछ खास असर होता नहीं दिख रहा है. खैर, प्रियंका की सियासी स्ट्रैटजी यूपी में कितना कामयाब होगी यह तो अब समय ही बताएगा.

यूपी में AIMIM और मुस्लिम मतदाता

आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी भी यूपी के सियासी समर में मुस्लिम कार्ड के जरिए विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों के लिए चुनौती बने हुए हैं. हालांकि, सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो ओवैसी महज कुछ सीटों को झटकने को हांथ-पांव मार रहे हैं. ऐसे तो चुनाव में सभी पार्टियों के सामने चुनौतियां हैं. भाजपा अपनी कुर्सी बचाने को दमदख के साथ जुटी है तो सत्ता की राह में सपा, भाजपा को हर मोर्चे पर चुनौती दे रही है.

भाजपा के प्रचार में शुमार ये बड़े काम

यूपी में चुनाव प्रचार के लिए भाजपा विकास, राष्ट्रवाद और अघोषित अपने हिंदुत्व के मार्ग पर अग्रसर है. वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत पार्टी के सभी नेताओं के जुबान पर पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, लखनऊ में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री, बलरामपुर में सरयू नहर नेशनल प्रोजेक्ट, प्रदेश में कानून-व्यवस्था के मुद्दे के साथ मथुरा के बहाने ध्रुवीकरण की सियासत को हवा देने की कोशिश की जा रही है. लेकिन पश्चिम यूपी में अबकी किसान भाजता के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं.

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सपा के प्रचार के अहम बिन्दु

अबकी सूबे की सत्ता से भाजपा को हटाने के लिए सपा ने शिक्षा, स्वास्थ्य, लचर कानून-व्यवस्था के साथ ही बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाया है. वहीं, सपा लगातार योगी सरकार पर उनके कार्यों को अपना बताने का आरोप लगा रही है. इसके अलावा किसान, दलित और मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों को उठाकर समाजवादी पार्टी ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने का काम किया है.

यूपी में कांग्रेस की पॉलिसी के केंद्र में किसान और महिलाएं

ऐसे तो सूबे के किसान सभी सियासी पार्टियों को खूब भा रहे हैं. लेकिन पार्टी की प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही कांग्रेस अब सूबे में अपनी खोई जमीन पाने को किसान और महिलाओं के भरोसे मैदान मारने के फिराक में है. यही कारण है कि पार्टी ने 40 फीसद महिला उम्मीदवारी पर जोर दिया है, लेकिन टिकट बंटवारे में खासा दिक्कतें पेश आ रही हैं.

बसपा की नीति में बदलाव के मायने

वर्तमान में बसपा नेताओं के अभाव में खामोश खेमे में तब्दील नजर आ रही है, क्योंकि के पार्टी हार्ड कोर वोटर माने जाने वाले दलित और मुस्लिम अब मायावती से किनारा किए हुए हैं. वहीं, पिछले विधानसभा चुनाव में दलितों का एक अच्छा खासा वोट भाजपा को गया था. इसके अलावा मायावती के सियासी रूख में बदलाव और ब्राह्मणों की ओर झुकाव के कारण भी उन्हें आगे मुश्किलें पेश आ सकती हैं. साथ ही चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के कारण उन्हें पश्चिम व मध्य यूपी में भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. खैर, अबकी बसपा सामाजिक न्याय और सूबे में कानून-व्यवस्था को मुद्दा बनाकर मैदान में डटी है.

चुनाव परिणाम - 2017

यूपी की 17वीं विधानसभा के लिए 11 फरवरी से 8 मार्च 2017 तक सात चरणों में मतदान हुए थे और इस चुनाव में कुल 61 फीसद मतदान हुआ था. जिसमें भाजपा ने 312 सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया था, जबकि तब की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी गठबंधन को महज 54 सीटें और बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों से संतोष करना पड़ा था. वहीं, कांग्रेस की झोली में केवल 7 सीटें ही आई थी.

पार्टीवार मतदान फीसद (2017)

पार्टी वोट (%)
भाजपा 39.67%
अपना दल (सोनेलाल)0.98%
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 0.7%
समाजवादी पार्टी 21.82%
कांग्रेस6.25%
बसपा22.23%
रालोद1.78%
निषाद पार्टी 0.62%
निर्दलीय 2.57%

सूबे में कुल मतदाताओं की संख्या

  • पुरुष मतदाताओं की कुल संख्या करीब 7.7 करोड़
  • महिला मतदाताओं की कुल संख्या करीब 6.3 करोड़
  • ट्रांसजेंडर मतदाताओं की कुल संख्या करीब 6,983
  • कुल मतदाताओं की संख्या करीब 14.05 करोड़ के आसपास है.

सूबे की जातिगत संरचना व आबादी

जाति आबादी
मुस्लिम 18-20%
दलित25%
ब्राह्मण8%
यादव 13%
कुर्मी 12%
ठाकुर 5%
अन्य19%

2022 यूपी विधानसभा चुनाव

  • 7 चरणों में होंगे विधानसभा चुनाव
  • 403 विधानसभा सीटों वाले यूपी में 10 फरवरी को पहले चरण का मतदान.
  • 10 मार्च को मतगणना.

पहला चरणः 10 फरवरी 2022 मतदान

यूपी में पहले चरण में 15 जिलों की 73 सीटों पर चुनाव होंगे. अधिसूचना तारीख निकल गई है, जो 14 जनवरी निर्धारित थी तो वहीं, नामांकन की आखिरी तारीख 21 जनवरी और नामांकन की जांच की तारीख 24 जनवरी निर्धारित है. इसके साथ ही नाम वापसी आगामी 27 जनवरी तक हो सकती है और मतदान 10 फरवरी को होगा. पहले चरण में मेरठ, शामली, बागपत, मेरठ, हापुड़, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, गौतमबुद्ध नगर और आगरा में वोटिंग होगी.

दूसरा चरणः 14 फरवरी 2022 मतदान

दूसरे चरण में 11 जिलों के 67 विधानसभा क्षेत्रों में वोट डाले जाएंगे. अधिसूचना - 21 जनवरी, नामांकन की आखिरी तारीख - 28 जनवरी, नामांकन की जांच - 29 जनवरी, नाम वापसी - 31 जनवरी, मतदान - 14 फरवरी. दूसरे चरण में अमरोहा, संभल, सहारनपुर, बिजनौर, रामपुर, शाहजहांपुर, बरेली, बदायूं, मुरादाबाद में वोटिंग होगी.

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तीसरा चरणः 20 फरवरी 2022 मतदान

12 जिलों के 69 विधानसभा क्षेत्रों में तीसरे चरण के दौरान चुनाव होंगे. अधिसूचना- 25 जनवरी, नामांकन की आखिरी तारीख- 1 फरवरी, नामांकन की जांच- 2 फरवरी, नाम वापसी- 4 फरवरी, मतदान- 20 फरवरी. तीसरे चरण में हाथरस, कासगंज, फर्रुखाबाद, कन्नौज, फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, इटावा, औरैया, जालौन, हमीरपुर, महोबा, झाँसी, ललितपुर, कानपुर देहात, कानपुर नगर में वोटिंग होगी.

चौथा चरणः 23 फरवरी 2022 मतदान

12 जिलों के 53 विधानसभा क्षेत्रों में चौथे चरण के दौरान चुनाव होंगे. अधिसूचना- 27 जनवरी, नामांकन की आखिरी तारीख- 3 फरवरी, नामांकन की जांच- 4 फरवरी, नाम वापसी - 7 फरवरी, मतदान- 23 फरवरी. चौथे चरण में सीतापुर, हरदोई, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, लखनऊ, फतेहपुर, उन्नाव, रायबरेली, बांदा में वोटिंग होगी.

पांचवां चरणः 27 फरवरी 2022 मतदान

52 विधानसभा क्षेत्रों में पांचवें चरण के दौरान 11 जिलों में चुनाव होंगे. अधिसूचना- 1 फरवरी, नामांकन की आखिरी तारीख- 8 फरवरी, नामांकन की जांच- 9 फरवरी, नाम वापसी - 11 फरवरी, मतदान- 27 फरवरी. पांचवें चरण में गोंडा, अयोध्या, श्रावस्ती, बहराइच, बाराबंकी, अमेठी, कौशांबी, चित्रकूट, प्रयागराज, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ में वोटिंग होगी.

छठा चरणः 03 मार्च 2022 मतदान

सात जिलों की 49 विधानसभा क्षेत्रों में पांचवे चरण के दौरान मतदान संपन्न होंगे. अधिसूचना- 4 फरवरी, नामांकन की आखिरी तारीख- 11 फरवरी, नामांकन की जांच - 14 फरवरी, नाम वापसी - 16 फरवरी, मतदान- 3 मार्च. छठवें चरण में महाराजगंज, कुशीनगर, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, आंबेडकर नगर, गोरखपुर, बलिया, देवरिया और संत कबीर नगर में वोटिंग होगी.

सातवां और आखिरी चरणः 07 मार्च 2022 मतदान

7 जिलों की 40 विधानसभा क्षेत्रों में सातवें चरण में चुनाव होंगे. अधिसूचना - 10 फरवरी, नामांकन की आखिरी तारीख - 17 फरवरी, नामांकन की जांच - 18 फरवरी, नाम वापसी - 21 फरवरी, मतदान - 7 मार्च. सातवें चरण में जौनपुर, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर, संत रविदास नगर, गाजीपुर, सोनभद्र, चंदौली में वोटिंग होगी.

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Last Updated : Jan 19, 2022, 8:33 AM IST
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