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लखनऊ : 16 फीट मोटी है दुनिया के सबसे बड़े इमामबाड़े की छत - यूपी न्यूज

लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा ईरानी निर्माण शैली का बेजोड़ नमूना है, जिसे देखने न सिर्फ देश बल्कि विदेश से भी पर्यटक आते हैं. इमामबाड़े की सबसे खास बात ये है कि इसके निर्माण में न तो लोहे का इस्तेमाल हुआ है और न ही लकड़ी का.

16 फीट मोटी है दुनिया के सबसे बड़े इमामबाड़े की छत
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Published : Mar 21, 2019, 12:29 PM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी की पहचान स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूनों से एक है. लखनऊ की इन शानों में बड़ा इमामबाड़ाभी है. इसे अवध के नवाब आसिफ उद दौला ने सन 1784 में अवध में अकाल पड़ने के दौरान बनवाया था. लगभग ₹10,00,000 की लागत से बनने वाले इस इमामबाड़े के निर्माण में उस समय 11 साल लगे थे.

लखनऊ : 16 फीट मोटी है दुनिया के सबसे बड़े इमामबाड़े की छत

अवध में एक कहावत मशहूर है कि 'जिसको न दे मौला, उसको दे आसिफ उद दौला' यानी जिसको ईश्वर की कृपा से धन न मिले, उसे अवध के नवाब आसिफ उद दौला के दरबार में जरूर मिल जाता था. इस कहावत का वास्ता नवाब आसिफ उद दौला के शासन के दौरान अवध में पड़े अकाल से है. अकाल के दौरान जब लोगों के सामने 2 जून की रोटी का संकट खड़ा हुआ तो नवाब ने अपने खजाने का मुंह खोल दिया और लोगों को रोजगार देने के लिए बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण कराया.

हजरत इमाम हुसैन के घर के तौर पर बने इस इमामबाड़े का विशाल गुंबद का हाल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है. हजरत इमाम हुसैन के रोजा की प्रतिकृति भी इस इमामबाड़े में रखी है. इस बिल्डिंग का निर्माण करने के दौरान जो नींव बनाई गई, उसी से दुनिया के अजूबे भूल भुलैया का निर्माण हो गया.

भारतीय उपमहाद्वीप का यह सबसे विशाल इमामबाड़ा है

ईरानी निर्माण शैली का यह बेजोड़ नमूना है. इसका गुंबद इस तरह बनाया गया है कि निर्माण सामग्री के रूप में लोहा और लकड़ी का प्रयोग तक नहीं किया गया है. यह भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे विशाल और खूबसूरत इमामबाड़ा है. इसी नाते इसे बड़ा इमामबाड़ा भी कहा जाता है. इमामबाड़े की छत तक जाने के लिए 84 सीढ़ियां हैं. ये ऐसे रास्ते से जाती हैं, जहां जाकर लोग रास्ता भूल जाते हैं. इसी वजह से इसे भूल भुलैया भी कहा जाता है.

50 मीटर दूर छोर तक साफ सुनाई देता है

इस की दीवारों को ऐसी तकनीक से बनाया गया है कि अगर उनके एक सिरे पर कुछ बोला जाए तो 50 मीटर दूर दीवार के दूसरे छोर पर कान लगाकर सब कुछ साफ-साफ सुना जा सकता है. बड़ा इमामबाड़ा के बेसमेंट यानी नींव वाले हिस्से में भी भूल भुलैया मौजूद है लेकिन अब इसे सैलानियों के लिए बंद कर दिया गया है.

वहीं बड़े इमामबाड़े के बारे में बताते हुए इमामबाड़े के प्रमुख गाइड असगर हुसैन ने कहा कि इस दर्शनीय स्थल को देखने देश से ही बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं. यहां भूल भुलैया लोगों को काफी आकर्षित करती है.बड़े इमामबाड़े के बारे में इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि दुनिया के जितने भी बेस्ट इमामबाड़े हैं, उनमें से बड़ा इमामबाड़ा एक है. इमामबाड़े की सबसे खास बात ये है कि इसके निर्माण में किसी तरह के मेटल का इस्तेमाल नहीं हुआ है. इमामबाड़े की छत की चौड़ाई 16 फीट मोटी है.

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी की पहचान स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूनों से एक है. लखनऊ की इन शानों में बड़ा इमामबाड़ाभी है. इसे अवध के नवाब आसिफ उद दौला ने सन 1784 में अवध में अकाल पड़ने के दौरान बनवाया था. लगभग ₹10,00,000 की लागत से बनने वाले इस इमामबाड़े के निर्माण में उस समय 11 साल लगे थे.

लखनऊ : 16 फीट मोटी है दुनिया के सबसे बड़े इमामबाड़े की छत

अवध में एक कहावत मशहूर है कि 'जिसको न दे मौला, उसको दे आसिफ उद दौला' यानी जिसको ईश्वर की कृपा से धन न मिले, उसे अवध के नवाब आसिफ उद दौला के दरबार में जरूर मिल जाता था. इस कहावत का वास्ता नवाब आसिफ उद दौला के शासन के दौरान अवध में पड़े अकाल से है. अकाल के दौरान जब लोगों के सामने 2 जून की रोटी का संकट खड़ा हुआ तो नवाब ने अपने खजाने का मुंह खोल दिया और लोगों को रोजगार देने के लिए बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण कराया.

हजरत इमाम हुसैन के घर के तौर पर बने इस इमामबाड़े का विशाल गुंबद का हाल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है. हजरत इमाम हुसैन के रोजा की प्रतिकृति भी इस इमामबाड़े में रखी है. इस बिल्डिंग का निर्माण करने के दौरान जो नींव बनाई गई, उसी से दुनिया के अजूबे भूल भुलैया का निर्माण हो गया.

भारतीय उपमहाद्वीप का यह सबसे विशाल इमामबाड़ा है

ईरानी निर्माण शैली का यह बेजोड़ नमूना है. इसका गुंबद इस तरह बनाया गया है कि निर्माण सामग्री के रूप में लोहा और लकड़ी का प्रयोग तक नहीं किया गया है. यह भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे विशाल और खूबसूरत इमामबाड़ा है. इसी नाते इसे बड़ा इमामबाड़ा भी कहा जाता है. इमामबाड़े की छत तक जाने के लिए 84 सीढ़ियां हैं. ये ऐसे रास्ते से जाती हैं, जहां जाकर लोग रास्ता भूल जाते हैं. इसी वजह से इसे भूल भुलैया भी कहा जाता है.

50 मीटर दूर छोर तक साफ सुनाई देता है

इस की दीवारों को ऐसी तकनीक से बनाया गया है कि अगर उनके एक सिरे पर कुछ बोला जाए तो 50 मीटर दूर दीवार के दूसरे छोर पर कान लगाकर सब कुछ साफ-साफ सुना जा सकता है. बड़ा इमामबाड़ा के बेसमेंट यानी नींव वाले हिस्से में भी भूल भुलैया मौजूद है लेकिन अब इसे सैलानियों के लिए बंद कर दिया गया है.

वहीं बड़े इमामबाड़े के बारे में बताते हुए इमामबाड़े के प्रमुख गाइड असगर हुसैन ने कहा कि इस दर्शनीय स्थल को देखने देश से ही बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं. यहां भूल भुलैया लोगों को काफी आकर्षित करती है.बड़े इमामबाड़े के बारे में इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि दुनिया के जितने भी बेस्ट इमामबाड़े हैं, उनमें से बड़ा इमामबाड़ा एक है. इमामबाड़े की सबसे खास बात ये है कि इसके निर्माण में किसी तरह के मेटल का इस्तेमाल नहीं हुआ है. इमामबाड़े की छत की चौड़ाई 16 फीट मोटी है.

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