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लखनऊ के दो इंजीनियर बने 'डिजिटल' कबाड़ी, ऐसे बढ़ा रहे कारोबार

लॉकडाउन ने बड़ी संख्या में लोगों को बेरोजगार किया है. वहीं बेरोजगार हुए लखनऊ निवासी दो इंजीनियर दोस्त ओमप्रकाश और मुकेश डिजिटल कबाड़ी कारोबार के जरिए रोजगार कमा रहे हैं.

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दो इंजीनियर दोस्तों ने कबाड़ को बनाया रोजगार.
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Published : Aug 1, 2020, 10:32 AM IST

लखनऊ: कोरोना वायरस से बचाव के लिए लागू किए गए लॉकडाउन में बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं. लंबे समय तक जारी रहे लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूर, किसान और व्यापारी सभी बेहद परेशान रहे. वहीं गैर सरकारी संस्थाओं में काम करने वाले लोगों को भी अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा. इनमें से कई युवा ऐसे हैं, जिन्होंने आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश की है.

दो इंजीनियर दोस्तों ने कबाड़ को बनाया रोजगार.

दरअसल, बेरोजगार हुए लोगों की फेहरिस्त में शामिल लखनऊ के दो इंजीनियरों ने मिलकर कबाड़ी वाले का काम शुरू किया है. इनमें से ओमप्रकाशबनारस में साइट इंजीनियर थे और मुकेश चंडीगढ़ में काम कर रहे थे. उनका कहना है कि लॉकडाउन में साइट का काम बंद हो गया, काम दोबारा कब शुरू होगा मालूम नहीं था. लिहाजा उन्होंने लखनऊ लौटने का फैसला किया.

ऐसे में खाली बैठना मंजूर नहीं था. इसलिए कबाड़ीवाला बनना उचित लगा. कबाड़ीवाला नाम लेते ही हमारे दिमाग में एक तराजू और ठेला लेकर कबाड़ ले लो.. कबाड़ ले लो... चिल्लाते हुए एक शख्स की तस्वीर बन जाती है. आपको बता दें कि मुकेश और ओमप्रकाश इस तरह के कबाड़ीवाले नहीं हैं, यह दोनों डिजिटल कबाड़ी वाले हैं.

लखनऊ कबाड़ीवाला डाटकाम सर्विस शुरू की
ओम प्रकाश बताते हैं कि बनारस में काम बंद हुआ तो हम लखनऊ चले आए. उन्होंने इंजीनियरिंग के अनुभव का लाभ लेते हुए हमने कबाड़ीवाला बनने का फैसला किया और कबाड़ीवाला डाटकाम सर्विस शुरू कर दी. उनेक इस काम में दोस्त मुकेश हाथ बटा रहे हैं. उन्होंने पांच लोगों की टीम बनाकर काम शुरू कर दिया.

बाइट ओम प्रकाश ने बताया कि हमने लखनऊ कबाड़ीवाला डॉटकॉम एक वेबसाइट की शुरुआत की है, जिसमें ऑनलाइन कबाड़ी के लिए कोई भी व्यक्ति जिसको कबाड़ बेचना होता है. वह अपना डिटेल और फोन नंबर सहित जानकारी ऑनलाइन भर कर भेजता है. इसकी जानकारी मुझे मिल जाती है. इस जानकारी के माध्यम से उनसे मिलते हैं और टाइम फिक्स करते हैं. उसके बाद कबाड़ी को कबाड़ लेने के लिए भेजा जाता है.

घर वाले इंजीनियरों का नहीं बनने देना चाहते थे कबाड़ीवाला
आगे हम लोग ई वेस्ट पर काम करने की प्लानिंग बना रहे हैं. ई वेस्ट का मतलब होता है इलेक्ट्रॉनिक चीज जो पूरी तरह बर्बाद हो गई हो, उसको फिर से मरम्मत कर नई रूपरेखा तैयार कर बाजार में उतार कर बिक्री करना है. हालांकि दोनों इंजीनियर दोस्तों का कहना है कि पहले तो हमारे घर वाले कबाड़ी के काम से बहुत खुश नहीं थे, लेकिन धीरे-धीरे घर वालों को हमारा काम समझ में आने लगा है. अब तक उनके करीब 250 लोग हमारे कस्टमर बन चुके हैं. इतना ही नहीं पांच लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं.

लखनऊ: कोरोना वायरस से बचाव के लिए लागू किए गए लॉकडाउन में बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं. लंबे समय तक जारी रहे लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूर, किसान और व्यापारी सभी बेहद परेशान रहे. वहीं गैर सरकारी संस्थाओं में काम करने वाले लोगों को भी अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा. इनमें से कई युवा ऐसे हैं, जिन्होंने आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश की है.

दो इंजीनियर दोस्तों ने कबाड़ को बनाया रोजगार.

दरअसल, बेरोजगार हुए लोगों की फेहरिस्त में शामिल लखनऊ के दो इंजीनियरों ने मिलकर कबाड़ी वाले का काम शुरू किया है. इनमें से ओमप्रकाशबनारस में साइट इंजीनियर थे और मुकेश चंडीगढ़ में काम कर रहे थे. उनका कहना है कि लॉकडाउन में साइट का काम बंद हो गया, काम दोबारा कब शुरू होगा मालूम नहीं था. लिहाजा उन्होंने लखनऊ लौटने का फैसला किया.

ऐसे में खाली बैठना मंजूर नहीं था. इसलिए कबाड़ीवाला बनना उचित लगा. कबाड़ीवाला नाम लेते ही हमारे दिमाग में एक तराजू और ठेला लेकर कबाड़ ले लो.. कबाड़ ले लो... चिल्लाते हुए एक शख्स की तस्वीर बन जाती है. आपको बता दें कि मुकेश और ओमप्रकाश इस तरह के कबाड़ीवाले नहीं हैं, यह दोनों डिजिटल कबाड़ी वाले हैं.

लखनऊ कबाड़ीवाला डाटकाम सर्विस शुरू की
ओम प्रकाश बताते हैं कि बनारस में काम बंद हुआ तो हम लखनऊ चले आए. उन्होंने इंजीनियरिंग के अनुभव का लाभ लेते हुए हमने कबाड़ीवाला बनने का फैसला किया और कबाड़ीवाला डाटकाम सर्विस शुरू कर दी. उनेक इस काम में दोस्त मुकेश हाथ बटा रहे हैं. उन्होंने पांच लोगों की टीम बनाकर काम शुरू कर दिया.

बाइट ओम प्रकाश ने बताया कि हमने लखनऊ कबाड़ीवाला डॉटकॉम एक वेबसाइट की शुरुआत की है, जिसमें ऑनलाइन कबाड़ी के लिए कोई भी व्यक्ति जिसको कबाड़ बेचना होता है. वह अपना डिटेल और फोन नंबर सहित जानकारी ऑनलाइन भर कर भेजता है. इसकी जानकारी मुझे मिल जाती है. इस जानकारी के माध्यम से उनसे मिलते हैं और टाइम फिक्स करते हैं. उसके बाद कबाड़ी को कबाड़ लेने के लिए भेजा जाता है.

घर वाले इंजीनियरों का नहीं बनने देना चाहते थे कबाड़ीवाला
आगे हम लोग ई वेस्ट पर काम करने की प्लानिंग बना रहे हैं. ई वेस्ट का मतलब होता है इलेक्ट्रॉनिक चीज जो पूरी तरह बर्बाद हो गई हो, उसको फिर से मरम्मत कर नई रूपरेखा तैयार कर बाजार में उतार कर बिक्री करना है. हालांकि दोनों इंजीनियर दोस्तों का कहना है कि पहले तो हमारे घर वाले कबाड़ी के काम से बहुत खुश नहीं थे, लेकिन धीरे-धीरे घर वालों को हमारा काम समझ में आने लगा है. अब तक उनके करीब 250 लोग हमारे कस्टमर बन चुके हैं. इतना ही नहीं पांच लोगों को रोजगार भी दे चुके हैं.

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