लखनऊ : प्रदेश की भाजपा सरकार में राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने गृहमंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखकर सरकार और संगठन में खलबली पैदा कर दी है. राज्यमंत्री दिनेश खटीक के पत्र का सार देखा जाए, तो तीन प्रमुख बातें हैं. तबादलों में भ्रष्टाचार, अफसरों की मनमानी और उपेक्षा. तबादलों को लेकर नाराजगी का यह पहला मामला नहीं है. उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद भी पहले अपनी नाराजगी जता चुके हैं. ब्रजेश पाठक का तो पत्र भी मीडिया में वायरल हुआ था. अब धीरे-धीरे अन्य मंत्रियों और विधायकों की नाराजगी की बातें भी सामने आने लगी हैं. इन घटनाओं ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या योगी सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है? कहीं असंतोष की यह चिंगारी शोला तो नहीं बन जाएगी?
इस ताजा विवाद के बाद कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं. मसलन, राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने गृहमंत्री अमित शाह को ही पत्र क्यों लिखा? क्या उन्होंने अपने कैबिनेट मंत्री और पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को विश्वास में लेकर अपनी बात रखना जरूरी नहीं समझा? यदि जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने उनकी बात नहीं सुनी तो उन्हें मुख्यमंत्री के पास जाना चाहिए था. तो क्या वह मुख्यमंत्री के पास गए? यदि नहीं गए तो क्यों? दरअसल दिनेश खटीक का सीधे पूर्व भाजपा अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखने का मतलब ही है कि वह राज्य के नेतृत्व, अपने कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री से भी असंतुष्ट हैं और कहीं न कहीं उस स्तर पर भी उनकी सुनवाई नहीं हुई. स्वाभाविक है कि इसके बाद ही उन्होंने गृहमंत्री को पत्र लिखने का निर्णय किया होगा.
राज्यमंत्री ने जो आरोप अधिकारियों पर लगाए हैं कि वह अनसुनी करते हैं, तो यह कोई नहीं बात नहीं है. योगी 1.0 में ऐसे आरोप कई विधायकों ने लगाए थे. शासन तंत्र में कई अधिकारियों पर आरोप लगते रहे हैं कि वह सिर्फ कहीं और से ही गाइड होते हैं. यही कारण है कि उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को अपने ही विभाग के अधिकारी को लेकर पत्र लिखना पड़ा. दिनेश खटीक ने अपने पत्र में लिखा है कि जल शक्ति विभाग की किसी बैठक की सूचना उन्हें नहीं दी जाती. उनके किसी आदेश पर कार्रवाई भी नहीं की जाती. अधिकारी किसी तरह से कोई सहयोग नहीं करते. उन्हें अब तक विभाग से कोई अधिकारी नहीं दिया गया. मंत्री की यह शिकायतें वाजिब ही लगती हैं. यदि विभाग के अधिकारी ही मंत्री की बात नहीं सुनेंगे, तो बाकी काम कैसे होगा. मंत्री ने प्रमुख सचिव सिंचाई, अनिल गर्ग पर पूरी बात सुने बिना फोन काटने की बात भी पत्र में लिखी है. यदि ऐसा है, तो यह वाकई अपमानजनक है. मुख्यमंत्री और सरकार को यह छवि बदलनी होगी कि नौकरशाह ही सरकार को चला रहे हैं. इससे बहुत गलत संदेश जाता है.
मंत्री दिनेश खटीक ने पत्र में लिखा है कि 'जल शक्ति विभाग में तबादलों में 'बहुत बड़ा' भ्रष्टाचार हुआ है, लेकिन अधिकारियों ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया. विभाग में स्थानांतरण के नाम पर गलत तरीके से धन की वसूली की गई. नमामि गंगे योजना में भी बहुत बड़ा भ्रष्टाचार किया गया है.' उन्होंने भ्रष्टाचार की जांच किसी एजेंसी से कराए जाने के लिए भी लिखा है. योगी सरकार को इन आरोपों की तह तक जाना होगा, क्योंकि 'सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन' देने का वादा करने वाली भाजपा सरकार के अपने ही मंत्री द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप सरकार को कठघरे में खड़ा करते हैं. सरकार को इन आरोपों की जांच करा उचित कार्रवाई कर यह संदेश देना चाहिए कि सिद्धांत बदले नहीं हैं और वह भ्रष्टाचार के मामले में किसी को भी बख्शने वाली नहीं है. दिनेश खटीक ने अपने पत्र में बार-बार अपने अपमान को पूरे दलित समाज से जोड़ा है और दलित समाज की दुहाई दी गई है. उन्होंने यह कहकर खुद को दलितों का नेता बताने की कोशिश भी की है कि उनकी उपेक्षा और अपमान से पूरा दलित समाज दुखी है.
कहा जा रहा है कि राज्यमंत्री दिनेश खटीक कल ही गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर अपना पक्ष रख चुके हैं. आज लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद भी गृहमंत्री से मिल रहे हैं. ऐसे राज्य सरकार का मामला केंद्रीय संगठन तक जा पहुंचा है. स्वाभाविक है कि इससे कहीं न कहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी दबाव बढ़ेगा कि वह पूरी टीम को लेकर चलें और अपने स्तर से भी मतभेद दूर करें. उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी दिल्ली में हैं और दूसरे उप मुख्यमंत्री पहले भी तबादलों पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. ऐसे में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को मिल-बैठकर स्थिति संभालनी होगी. अधिकारियों द्वारा बात न सुने जाने की शिकायतें मंत्रियों तक ही नहीं हैं. दबी जुबान से यह बातें तमाम विधायक कहते हैं. ऐसे में योगी सरकार को अपने फैसलों से कुछ ऐसा संदेश देना होगा कि नेताओं की नाराजगी दूर हो. जो भी हो, यह विवाद अभी यहां खत्म हो जाएगा, ऐसा दिखा नहीं देता. देखना है कि पार्टी नेतृत्व इसे कैसे लेता है और मामले को कैसे सुलझाता है.
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योगी सरकार की मुसीबत बने बेलगाम अफसर, मंत्री भी दरकिनार
जल शक्ति विभाग के राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भेजे पत्र में जल शक्ति विभाग में तबादलों के नाम पर हुए भ्रष्टाचार की भी पोल खोलने का काम किया है. उनकी चिट्ठी ने योगी सरकार की बड़ी मुसीबत को सामने ला दिया है. पेश है ईटीवी भारत के यूपी ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी की यह खास रिपोर्ट.
लखनऊ : प्रदेश की भाजपा सरकार में राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने गृहमंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखकर सरकार और संगठन में खलबली पैदा कर दी है. राज्यमंत्री दिनेश खटीक के पत्र का सार देखा जाए, तो तीन प्रमुख बातें हैं. तबादलों में भ्रष्टाचार, अफसरों की मनमानी और उपेक्षा. तबादलों को लेकर नाराजगी का यह पहला मामला नहीं है. उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक और कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद भी पहले अपनी नाराजगी जता चुके हैं. ब्रजेश पाठक का तो पत्र भी मीडिया में वायरल हुआ था. अब धीरे-धीरे अन्य मंत्रियों और विधायकों की नाराजगी की बातें भी सामने आने लगी हैं. इन घटनाओं ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या योगी सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है? कहीं असंतोष की यह चिंगारी शोला तो नहीं बन जाएगी?
इस ताजा विवाद के बाद कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं. मसलन, राज्यमंत्री दिनेश खटीक ने गृहमंत्री अमित शाह को ही पत्र क्यों लिखा? क्या उन्होंने अपने कैबिनेट मंत्री और पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को विश्वास में लेकर अपनी बात रखना जरूरी नहीं समझा? यदि जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने उनकी बात नहीं सुनी तो उन्हें मुख्यमंत्री के पास जाना चाहिए था. तो क्या वह मुख्यमंत्री के पास गए? यदि नहीं गए तो क्यों? दरअसल दिनेश खटीक का सीधे पूर्व भाजपा अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखने का मतलब ही है कि वह राज्य के नेतृत्व, अपने कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री से भी असंतुष्ट हैं और कहीं न कहीं उस स्तर पर भी उनकी सुनवाई नहीं हुई. स्वाभाविक है कि इसके बाद ही उन्होंने गृहमंत्री को पत्र लिखने का निर्णय किया होगा.
राज्यमंत्री ने जो आरोप अधिकारियों पर लगाए हैं कि वह अनसुनी करते हैं, तो यह कोई नहीं बात नहीं है. योगी 1.0 में ऐसे आरोप कई विधायकों ने लगाए थे. शासन तंत्र में कई अधिकारियों पर आरोप लगते रहे हैं कि वह सिर्फ कहीं और से ही गाइड होते हैं. यही कारण है कि उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को अपने ही विभाग के अधिकारी को लेकर पत्र लिखना पड़ा. दिनेश खटीक ने अपने पत्र में लिखा है कि जल शक्ति विभाग की किसी बैठक की सूचना उन्हें नहीं दी जाती. उनके किसी आदेश पर कार्रवाई भी नहीं की जाती. अधिकारी किसी तरह से कोई सहयोग नहीं करते. उन्हें अब तक विभाग से कोई अधिकारी नहीं दिया गया. मंत्री की यह शिकायतें वाजिब ही लगती हैं. यदि विभाग के अधिकारी ही मंत्री की बात नहीं सुनेंगे, तो बाकी काम कैसे होगा. मंत्री ने प्रमुख सचिव सिंचाई, अनिल गर्ग पर पूरी बात सुने बिना फोन काटने की बात भी पत्र में लिखी है. यदि ऐसा है, तो यह वाकई अपमानजनक है. मुख्यमंत्री और सरकार को यह छवि बदलनी होगी कि नौकरशाह ही सरकार को चला रहे हैं. इससे बहुत गलत संदेश जाता है.
मंत्री दिनेश खटीक ने पत्र में लिखा है कि 'जल शक्ति विभाग में तबादलों में 'बहुत बड़ा' भ्रष्टाचार हुआ है, लेकिन अधिकारियों ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया. विभाग में स्थानांतरण के नाम पर गलत तरीके से धन की वसूली की गई. नमामि गंगे योजना में भी बहुत बड़ा भ्रष्टाचार किया गया है.' उन्होंने भ्रष्टाचार की जांच किसी एजेंसी से कराए जाने के लिए भी लिखा है. योगी सरकार को इन आरोपों की तह तक जाना होगा, क्योंकि 'सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन' देने का वादा करने वाली भाजपा सरकार के अपने ही मंत्री द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप सरकार को कठघरे में खड़ा करते हैं. सरकार को इन आरोपों की जांच करा उचित कार्रवाई कर यह संदेश देना चाहिए कि सिद्धांत बदले नहीं हैं और वह भ्रष्टाचार के मामले में किसी को भी बख्शने वाली नहीं है. दिनेश खटीक ने अपने पत्र में बार-बार अपने अपमान को पूरे दलित समाज से जोड़ा है और दलित समाज की दुहाई दी गई है. उन्होंने यह कहकर खुद को दलितों का नेता बताने की कोशिश भी की है कि उनकी उपेक्षा और अपमान से पूरा दलित समाज दुखी है.
कहा जा रहा है कि राज्यमंत्री दिनेश खटीक कल ही गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर अपना पक्ष रख चुके हैं. आज लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद भी गृहमंत्री से मिल रहे हैं. ऐसे राज्य सरकार का मामला केंद्रीय संगठन तक जा पहुंचा है. स्वाभाविक है कि इससे कहीं न कहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी दबाव बढ़ेगा कि वह पूरी टीम को लेकर चलें और अपने स्तर से भी मतभेद दूर करें. उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी दिल्ली में हैं और दूसरे उप मुख्यमंत्री पहले भी तबादलों पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. ऐसे में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को मिल-बैठकर स्थिति संभालनी होगी. अधिकारियों द्वारा बात न सुने जाने की शिकायतें मंत्रियों तक ही नहीं हैं. दबी जुबान से यह बातें तमाम विधायक कहते हैं. ऐसे में योगी सरकार को अपने फैसलों से कुछ ऐसा संदेश देना होगा कि नेताओं की नाराजगी दूर हो. जो भी हो, यह विवाद अभी यहां खत्म हो जाएगा, ऐसा दिखा नहीं देता. देखना है कि पार्टी नेतृत्व इसे कैसे लेता है और मामले को कैसे सुलझाता है.
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