लखनऊ : सब्जियों की बढ़ती महंगाई (rising prices of vegetables) ने आम जनता की जेब ढीली कर रखी है. सब्जियों की बढ़ती कीमतें मुश्किलें बढ़ाती जा रही हैं. इसके चलते थाली से हरी सब्जियां गायब (Green vegetables missing from the plate) होती जा रही हैं. रोजाना की जरूरत के सामानों के साथ सब्जियों के भाव भी आसमान छू रहे हैं. सब्जियों की कीमत में हुई बढ़ोतरी का सिलसिला लगातार जारी है, जो थमने का नाम नहीं ले रहा है. फिलहाल आम आदमी की थाली (common man's plate) से हरी सब्जियां अभी दूर ही रहेंगी.
व्यापरियों का कहना (merchants say) है कि ज्यादा बारिश होने के कारण सब्जियों की फसल बर्बाद (vegetable crop wasted) हुई है. इसलिए सब्जियों की पैदावार (production of vegetables) कम हो गया है. यही कारण है कि प्रदेश में सब्जियों के दाम बढ़े हुए हैं. वहीं प्रदेश के बाहर से सब्जियां आयात करने (importing vegetables from outside the state) पर काफी लागत आ रही है. यही कारण है कि सब्जियों के दाम बढ़े हुए हैं.
बृहस्पतिवार (10 नवंबर) को यूपी में (State Mandis) में पुराना आलू रु 20 किलो, नया आलू रु 50 किग्रा, प्याज रु 25 किलो, टमाटर रु 60 किलो, नीबू रु80 किलो, कद्दू रु25 किलो, लौकी रु35 किलो, पालक रु40 किलो, भिंडी रु40 किलो, मिर्च रु80 किलो, गोभी 35 रु/पीस, तरोई रु40 किलो, लहसुन रु60 किलो, करेला रु50 किलो, गाजर रु80 किलो, परवल रु80 किलो, सेम रु 100 किलो, शिमला मिर्च रु 60 किलो, धनिया रु 120 किलो बिका. व्यापारियों का कहना है कि पिछले दिनों हुई बारिश के चलते सब्जियां खेतों में ही खराब हो गई थीं. फिलहाल अभी सब्जियों के दाम में कोई गिरावट नहीं होने वाली है.
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