लखनऊ : आबादी क्षेत्र में तेंदुए के आने से तमाम लोग प्रभावित हुए और कुछ लोग घायल हुए. वन विभाग के अधिकारी लगातार रेस्क्यू करने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन तेंदुआ हाथ नहीं लगा. वन विभाग की तरफ से दावा किया गया है कि तेंदुआ अब शहर के आबादी क्षेत्र में नहीं है. वह कुकरेल वन क्षेत्र या बाराबंकी वन क्षेत्र की तरफ जा चुका है.
ईटीवी भारत ने जंगलों से भटक कर आबादी के अंदर तेंदुआ या कभी कभार बाघ के घुसने को लेकर उत्तर प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) पवन कुमार से खास बातचीत की. उनसे समझने की कोशिश की कि आखिर किन परिस्थितियों में वन्य क्षेत्रों से तेंदुआ आबादी के क्षेत्रों में आते हैं. कहते हैं कि तेंदुआ वन क्षेत्रों में तो पहुंच ही जाते हैं. इसके अलावा वह अपने तमाम अन्य आशियाने बना लेते हैं. काफी लंबे समय से ह्यूमन डोमिनेटेड लैंड के आसपास भी तेंदुए अपना प्राकृतिक वास बना लेते हैं. जहां पर इनकी संख्या अच्छी हो जाती है. साथ ही नदी के कछार वाले क्षेत्र और अन्य बड़ी घास वाले स्थानों पर तेंदुए के प्राकृतिक वास होते हैं.
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) पवन कुमार कहते हैं कि कई बार ऐसा होता है कि प्राकृतिक वास के साथ छेड़छाड़ या परिवर्तन होने पर तेंदुए आबादी वाले ग्रामीण क्षेत्र या शहरी क्षेत्रों के अंदर भटक कर प्रवेश कर जाते हैं. ऐसी स्थिति में लोगों को जागरूक होते हुए वन विभाग को सूचना देना चाहिए. वन विभाग पूरी तरह से वन्यजीवों को रेस्क्यू करने के लिए सक्रियता से काम करता है. इसको लेकर वन विभाग रैपिड रेस्क्यू रिस्पांस टीम भी गठित की है.
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प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव) पवन कुमार कहते हैं कि मुख्य रूप से वन क्षेत्र से जो तेंदुए या बाघ आबादी वाले क्षेत्रों में आते हैं. उसके पीछे का बड़ा कारण वन क्षेत्रों के बड़ी घास वाले वन क्षेत्रों का कम होना है. जहां पर तेंदुए अपना प्राकृतिक वास बना लेते हैं. इसके साथ ही वन क्षेत्रों में बड़ी घास वाली जगहों में कमी आने के कारण तमाम वन क्षेत्रों के नजदीक खेती योग्य जमीन जहां पर गन्ना की फसल होती है, उसे भी तेंदुआ अपना प्राकृतिक वास बना लेते हैं.
मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) पवन कुमार कहते हैं कि ठंड के समय खासकर नवंबर और दिसंबर के महीने में गन्ने की फसल की कटाई होती है. ऐसे में तेंदुए का जो प्राकृतिक वास है, वह प्रभावित होता है और फिर तेंदुए प्राकृतिक वास वाले वन्य क्षेत्र यानी गन्ने के खेतों से निकलकर आबादी वाले ग्रामीण इलाके या फिर शहरी इलाकों में भटकते हुए प्रवेश कर जाते हैं.
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) पवन कुमार कहते हैं कि तेंदुए आदि वन्य जीवो को रेस्क्यू करने के लिए विभाग के पास पूरी व्यवस्थाएं हैं. वह कहते हैं कि पिछले करीब 36 घंटे से राजधानी लखनऊ में तेंदुआ के नहीं होने की सूचना है. वन अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार तेंदुआ आबादी वाले क्षेत्र में अब नहीं है और वह कुकरेल वन क्षेत्र तथा बाराबंकी वन क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है. इसके बावजूद लगातार कांबिंग कराई जा रही है, जिससे उसे रेस्क्यू किया जा सके.