लखनऊ: उत्तर प्रदेश के कानपुर में बांग्लादेशी नागरिक डॉ. रिजवान और उसके परिवार की गिरफ्तारी के बाद यह सामने आ चुका है कि राज्य में बांग्लादेशी नागरिक फर्जी पहचान पत्र बनाकर राजनीतिक सरपरस्ती में रह रहे हैं. पुलिस का अनुमान है कि राजधानी में ही 50 हजार से अधिक बांग्लादेशी नागरिक अलग-अलग झुग्गियों में रह कर कूड़ा बीनने, कबाड़ खरीदने व बेचने का काम करते हैं. पुलिस दावा है कि ये सभी उनके रडार पर हैं.
वर्ष 2020 में यूपी पुलिस मुख्यालय द्वारा पूरे राज्य में झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले उन लोगों का सर्वे कराया था. सूत्रों के मुताबिक उस दौरान इनकी संख्या 10 लाख थी. ज्यादातर ये बांग्लादेशी लखनऊ, नोएडा, कानपुर, मेरठ व गाजियाबाद जैसे बड़े शहरों में झुग्गी-बस्ती बनाकर बसे हुए हैं और कबाड़ की खरीद-फरोख्त, कूड़ा उठाने और नींबू मसाला चाय बेचने का काम करते हैं. लखनऊ में ये बांग्लादेशी इंदिरानगर, चिनहट, गोमतीनगर, गोमतीनगर विस्तार, विभूतिखंड, गुडंबा, जानकीपुरम, पीजीआई व मड़ियांव में बस गए हैं. ये बांग्लादेशी अपनी बस्ती के आसपास की परिधि में घूमकर ये कूड़ा उठाने, कबाड़ खरीदने बेचने का काम करते हैं.
वर्ष 2019 में बांग्लादेशियों का हुआ था वेरिफिकेशन : डीजीपी मुख्यालय के निर्देश पर वर्ष 2019 से यूपी में बांग्लादेशी व रोहिंग्या नागरिकों (Bangladeshi and Rohingya citizens) के वेरिफिकेशन शुरू किया गया था. इस काम के लिए सभी थानों की पुलिस व अभिसूचना इकाई को झुग्गी झोपड़ी वाली बस्तियों में रहने वालों की जानकारी इकट्ठा करने के निर्देश दिए गए थे. हालांकि यह काम उतनी रफ्तार से नहीं शुरू किया जा सका, जितनी डीजीपी मुख्यालय की मंशा दी. बाद में राजधानी में बांग्लादेशी गैंग के द्वारा की गई कई डकैतियों की घटना के बाद काम ने तेजी पकड़ी थी. पुलिसकर्मियों ने सभी बस्तियों में जाकर उनके पहचान पत्र जांचे और उनकी डिटेल लिखी.
सिर्फ पहचान पत्र देखना ही नहीं उनके भूतकाल की भी निकालनी होगी डिटेल : पूर्व पुलिस अधिकारी ज्ञान प्रकाश चतुर्वेदी (Former police officer Gyan Prakash Chaturvedi) कहते हैं कि सिर्फ बस्तियों में जाकर उनके पहचान पत्र देख कर उनकी डिटेल लिखना नाकाफी है. पुलिस को यह मालूम होता है कि किस बस्ती में बांग्लादेशी रहते हैं. ऐसे में असल में उनके पहचान पत्र का सत्यापन इस तरह करना चाहिए कि आखिर वह कितने साल से यहां रह रहे हैं और यहां से पहले कहां रहते थे. पहचान पत्र बनवाना कितना आसान है यह आए दिन यूपी एटीएस (UP ATS) द्वारा की जाने वाली गिरफ्तारियों से पता चल जाता है. अधिकतर अपराधी इन्हीं बस्तियों में अपना आशियाना बनाए रहते हैं.
यूपी ATS की जांच में सामने आ चुका है बांग्लादेशी गैंग का फर्जीवाड़ा : म्यामांर व बांग्लादेश (Myanmar and Bangladesh) से आने वाले रोहिंगयों व बांग्लादेशियों को भारत लाकर फर्जी दस्तावेजों के आधार यूपी के अलग-अलग इलाकों में बसाया जाता है. यूपी एटीएस (UP ATS) ने बीते साल ऑपरेशन चला कर 40 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी की थी. गिरफ्तार हुए लोगों में वो लोग थे जो झट से फर्जी दस्तावेज तैयार कर म्यामार से आए रोहिंगयों व बांग्लादेशियों को भारत का नागरिक बना देते थे. गैंग पश्चिम बंगाल के रास्ते उन्हें भारत लाता है और फिर यूपी के कई शहरों में बसा देते थे. जांच में सामने आया था कि रोहिंगयों व बांग्लादेशी नागरिकों के लिए 10 हजार रुपये लेकर वोटर आईडी, पासपोर्ट, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस व आधार कार्ड बनाये जाते थे. यही नहीं अधिकतर रोहिंग्या खुद को हिन्दू बता कर दस्तावेज तैयार करवाते थे. इसके बाद ये लखनऊ समेत बड़े शहरों में बस्तियों में रह कर मजदूरी, कबाड़ या फिर कूड़े उठाने का काम करने लग जाते हैं.
मदरसों का सहारा लेकर देते हैं भारतीय संस्कृति की ट्रेंनिग : यूपी एटीएस (UP ATS) की जांच में सामने आया था कि भारत में रोहिंगयों व बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ करवाने के लिए यहां पहले से ही मौजूद इनका गैंग व्हाट्सअप के जरिए बांग्लादेश से सूची मांगता है. इसमें जिन्हें भारत आकर यहां की पहचान लेकर विदेश जाना होता उनके लिए अलग रकम और जिन्हें भारत में रह कर मजदूरी करनी होती है, वो हिन्दू नाम से पहचान पत्र बनवा लेते थे. इसके बाद ये लोग पश्चिमी यूपी के कुछ मदरसों का सहारा लेकर उन्हें हिंदी बोलना व भारतीय संस्कृति सिखाते हैं. जब पूरी तरह वे पश्चिम बंगाल में रहने वाले लगने लगते हैं तो उन्हें अलग अलग जिलों में बसा दिया जाता है.
पुलिस रखती है इन पर नजर : लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट की प्रवक्ता व डीसीपी अपर्णा रजत कौशिक (Lucknow Police Commissionerate spokesperson and DCP Aparna Rajat Kaushik) ने बताया कि हमारी पुलिस लगातार उन लोगों पर नजर रखती है, जो ऐसी बस्तियों में रहते हैं. समय समय पर यहां रहने वाले लोगों का वेरिफिकेशन भी कराया जाता है. जो संदिग्ध नजर आता है उसके खिलाफ कार्रवाई की जाती है. यह कहना गलत है कि हम उन पर नजर नहीं रखते. बीते दिनों हमने ऐसी ही एक अवैध बस्ती पर कार्रवाई की है.
चुनावी हित के लिए नेताओं ने दी शरण : वरिष्ठ पत्रकार राघवेंद्र त्रिपाठी (Senior Journalist Raghavendra Tripathi) बताते है कि ऐसी अवैध बस्तियां जहां बांग्लादेशी रहते हैं वो बिना किसी राजनीतिक सरपरस्ती के संभव नहीं है. इन बस्तियों में रहने वाले एक बड़ा वोट बैंक हैं. जिन्हें राजनेताओं ने अपने फायदे के लिए बसाया और चुनाव के वक़्त इनका फायदा लिया. अधिकतर लोगों के पहचान पत्र स्थानीय नेताओं की सिफारिश पर बनते हैं. वेरिफिकेशन सिर्फ औपचारिकता होती है. उनके मुताबिक वर्षों से इन बस्तियों में रहने वाले निवासियों की जड़ें अब इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि इन्हें उखाड़ने का साहस कोई भी सरकार उठाना नहीं चाहती है.