हैदराबाद: यूपी में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) को अब बामुश्किल कुछ माह शेष हैं. वहीं, सियासी पार्टियां पूरी तरह से कमर कस मैदान में उतर चुकी हैं. आलम यह है कि तैयारियों के बीच आरोप-प्रत्यारोपों के दौर शुरू हो गए हैं. सत्तारूढ़ भाजपा जहां विकास के नाम पर वोट मांग रही है तो वहीं, विपक्षी पार्टियां विकास को छलावा करार दे रही हैं. खैर, इन सब के बीच सियासी टोटके भी शुरू हो गए हैं. वहीं, सूबे में कुछ ऐसी सीटें हैं, जहां जिस पार्टी का विधायक जीता है प्रदेश में उसकी सरकार बनती है.
चलिए अब आपको प्रदेश के एनसीआर क्षेत्र से लगे नोएडा जनपद से जुड़े एक रहस्यमयी टोटके के बारे में बताते हैं. दरअसल, नोएडा के बारे में कहा जाता है कि इस शहर का दौरा करने वाला शख्स दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठता.
खैर, यह आज से नहीं, बल्कि साल 1985 से जब वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तभी से ये दाग नोएडा के सिर पर लगा हुआ है. राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव ने तो कभी नोएडा की तरफ रुख ही नहीं किया. दोनों ने नोएडा से शुरू होने वाली योजनाओं का शिलान्यास या तो दिल्ली से किया या लखनऊ से ही कर दिया. लेकिन अबकी पता चल जाएगा कि सच में इस टोटके की असल हकीकत क्या है?
इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में किस पार्टी की जीत होगी और किसे मात मिलेगी, इसे लेकर भी कयासों के बाजार गर्म हैं. इधर, सियासी जनसभाओं में उमड़ने वाली भीड़ को देख यह चर्चा तुरंत आम हो रही है कि किस पार्टी का जलवा कायम है. वहीं, इन दिनों सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी भी चर्चाएं जोर शोर से चल रही हैं, जिसमें ये बताया जा रहा है कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी. साथ ही बातों को रखने के लिए मजबूत तर्क भी दिए जा रहे हैं. इसे तर्क भी दिए जा रहे हैं.
यह टोटका उत्तर प्रदेश की कई विधानसभा सीटों से जुड़ा हुआ है. इन सीटों के बारे में कहा जाता है कि जिस भी पार्टी का विधायक जीतता है, सूबे में उसी की सरकार बनती है. और तो और एक टोटका यह भी चल रहा है कि यूपी की एक ऐसी भी सीट है, जहां दूसरे नंबर पर जिस पार्टी का विधायक जीतता है, प्रदेश में उसकी सरकार बनती है. इस सीट से हार होने पर प्रदेश में सरकार बनने का टोटका जुड़ा हुआ है.
बलिया की बेल्थरा रोड विधानसभा सीट, मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा सीट, कासगंज विधानसभा सीट, इटावा की भरथना विधानसभा सीट और लखनऊ के बख्शी का तालाब विधानसभा सीट के साथ यह टोटका जुड़ा है कि इन सीटों पर जिस पार्टी का विधायक जीता है प्रदेश में उसकी सरकार बनती है.
बता दें कि बलिया जनपद की बेल्थरा रोड विधानसभा सीट पर 2012 में सपा को जीत मिली तो वहीं, 2017 में भाजपा ने इस सीट पर कब्जा कर लिया. लखनऊ की बख्शी का तालाब सीट भी 2012 में अस्तित्व में आई, जहां पहला चुनाव सपा ने जीता और 2017 में भाजपा ने इस सीट पर कब्जा कर लिया. इसी तरह कासगंज सीट के लिए यह टोटका बहुत कम का नजर आता है. वैसे तो कासगंज की सीट बहुत पुरानी है.
लेकिन पिछले चार चुनाव के नतीजे इस टोटके को बल दे रहे हैं. 2002 में यहां से सपा, 2007 में बसपा , 2012 में सपा और 2017 में भाजपा ने जीत दर्ज की. ऐसे में अगर देखे तो फिर इन्हीं सालों में इन्हीं पार्टियों की सरकारें प्रदेश में बनी. वहीं, मेरठ के हस्तिनापुर सीट का भी अपना अलग इतिहास रहा है. ऐसे में अगर पिछले चार चुनाव के नतीजों को देखे तो पाएंगे कि टोटके की बात में दम है.
इस जिले में दौरे से कतराते रहे हैं कई सीएम!
यह टोटका नोएडा जनपद से जुड़ा है. नोएडा के बारे में कहा जाता है कि इस शहर का दौरा करने वाला शख्स दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठता. खैर, यह आज से नहीं, बल्कि 1985 से वीर बहादुर सिंह जब यूपी के मुख्यमंत्री थे तब से यह दाग नोएडा के सिर पर लगा है.
राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव ने तो कभी नोएडा की तरफ रुख ही नहीं किया. दोनों ने नोएडा से शुरू होने वाली योजनाओं का शिलान्यास या तो दिल्ली से किया या फिर लखनऊ से किए. हालांकि, जो भी हो अब अगले तीन माह में सारी चीजें स्पष्ट हो जाएगी. साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि ये टोटके बरकरार रहते हैं या फिर कोई नया इतिहास गढ़ा जा रहा है.