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शिवपाल और अखिलेश की करीबी बढ़ा रही प्रसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की चिंता - राजनीतिक भविष्य

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव एक हो गए हैं. डिंपल यादव दोनों के रिश्तो में आई दरार को भरने में पुल का काम कर रही हैं. चाचा भतीचे की बढ़ती नजदीकियों से प्रसपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में चिंता उभर रही है.

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Published : Nov 28, 2022, 12:17 PM IST

लखनऊ. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव (National President of Progressive Samajwadi Party Shivpal Singh Yadav) और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Samajwadi Party Chief Akhilesh Yadav) एक हो गए हैं. डिंपल यादव दोनों के रिश्तों में आई दरार को भरने में पुल का काम कर रही हैं. चाचा भतीचे की बढ़ती नजदीकियों से प्रसपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में चिंता उभर रही है.

मैनपुरी लोकसभा सीट से उप चुनाव लड़ रहीं डिंपल ने चाचा शिवपाल से सहयोग मांगा और वादा किया कि वह हमेशा हर कदम पर उनके हर फैसले में साथ देंगी. बहू के आश्वासन के बाद चाचा ने भरोसा जताते हुए अखिलेश का साथ देने का फैसला कर लिया है. शिवपाल ने बहू डिंपल से यह भी कहा कि अखिलेश को समझाना आपकी जिम्मेदारी होगी. बहू ने आश्वासन दिया तो फिर प्रसपा मुखिया ने बिना किसी देरी के समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी डिंपल यादव के लिए मैदान में उतरने का फैसला ले लिया.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि शिवपाल का यह कदम परिवार के लिए तो बेहतर हो कहा जाएगा. कई साल से रिश्तों में पड़ी दरार भर गई है, लेकिन प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के नेताओं और कार्यकर्ताओं को शिवपाल सिंह यादव के इस कदम से चिंता सताने लगी है. उन्हें अपना राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ नजर आने लगा है. उन्हें लग रहा है कि आने वाले दिनों में परिवारों के बीच संबंध और बेहतर ही होंगे. दोनों राजनीतिक दल एक भी हो सकते हैं. समाजवादी पार्टी में वापसी करने पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेताओं को कितना अहमियत मिलेगी यह संशय उभर रहा है.

पहले भी नेता छोड़ चुके हैं साथ : 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले शिवपाल सिंह यादव ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को भरोसा दिया था कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी पूरे प्रदेश में अपने प्रत्याशी उतारेगी. समाजवादी पार्टी के साथ समझौते का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता. प्रदेश भर में कार्यकर्ताओं ने खूब मेहनत की. पार्टी का संगठन खड़ा कर दिया, लेकिन आखिरी समय पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी में गठबंधन को लेकर बात चलने लगी. शिवपाल 100 सीट मांग रहे थे, लेकिन मिली उन्हें सिर्फ एक सीट. इस पर भी शिवपाल मान गए और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. शिवपाल के इस कदम से समाजवादी पार्टी छोड़कर उनके साथ प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शिवपाल के साथ प्रसपा में आए वरिष्ठ नेता भी रूठ गए और उन्होंने शिवपाल का साथ ही छोड़ दिया. इन नेताओं में पूर्व मंत्री शारदा प्रताप शुक्ला शामिल थे. उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया और सरोजिनीनगर सीट से भाजपा प्रत्याशी राजेश्वर सिंह के साथ हो लिए.

वरिष्ठ नेताओं के अलावा प्रदेश भर में तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी शिवपाल का कदम उस समय सही नहीं लगा था. उन्होंने भी प्रसपा से दूरी बना ली थी. कुछ दिन बाद शिवपाल और अखिलेश के बीच दूरियां फिर से बढ़ी और शिवपाल फिर से अपनी पार्टी को मजबूत करने लगे. अब शिवपाल पर उनकी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का विश्वास कम होता जा रहा है. ऐसे में अब एक बार फिर सपा और प्रसपा नेताओं के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं. लिहाजा प्रसपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने राजनीतिक कॅरियर की फिक्र सताने लगी है.

लखनऊ. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव (National President of Progressive Samajwadi Party Shivpal Singh Yadav) और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव (Samajwadi Party Chief Akhilesh Yadav) एक हो गए हैं. डिंपल यादव दोनों के रिश्तों में आई दरार को भरने में पुल का काम कर रही हैं. चाचा भतीचे की बढ़ती नजदीकियों से प्रसपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में चिंता उभर रही है.

मैनपुरी लोकसभा सीट से उप चुनाव लड़ रहीं डिंपल ने चाचा शिवपाल से सहयोग मांगा और वादा किया कि वह हमेशा हर कदम पर उनके हर फैसले में साथ देंगी. बहू के आश्वासन के बाद चाचा ने भरोसा जताते हुए अखिलेश का साथ देने का फैसला कर लिया है. शिवपाल ने बहू डिंपल से यह भी कहा कि अखिलेश को समझाना आपकी जिम्मेदारी होगी. बहू ने आश्वासन दिया तो फिर प्रसपा मुखिया ने बिना किसी देरी के समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी डिंपल यादव के लिए मैदान में उतरने का फैसला ले लिया.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि शिवपाल का यह कदम परिवार के लिए तो बेहतर हो कहा जाएगा. कई साल से रिश्तों में पड़ी दरार भर गई है, लेकिन प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के नेताओं और कार्यकर्ताओं को शिवपाल सिंह यादव के इस कदम से चिंता सताने लगी है. उन्हें अपना राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ नजर आने लगा है. उन्हें लग रहा है कि आने वाले दिनों में परिवारों के बीच संबंध और बेहतर ही होंगे. दोनों राजनीतिक दल एक भी हो सकते हैं. समाजवादी पार्टी में वापसी करने पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेताओं को कितना अहमियत मिलेगी यह संशय उभर रहा है.

पहले भी नेता छोड़ चुके हैं साथ : 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले शिवपाल सिंह यादव ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को भरोसा दिया था कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी पूरे प्रदेश में अपने प्रत्याशी उतारेगी. समाजवादी पार्टी के साथ समझौते का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता. प्रदेश भर में कार्यकर्ताओं ने खूब मेहनत की. पार्टी का संगठन खड़ा कर दिया, लेकिन आखिरी समय पर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी में गठबंधन को लेकर बात चलने लगी. शिवपाल 100 सीट मांग रहे थे, लेकिन मिली उन्हें सिर्फ एक सीट. इस पर भी शिवपाल मान गए और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. शिवपाल के इस कदम से समाजवादी पार्टी छोड़कर उनके साथ प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शिवपाल के साथ प्रसपा में आए वरिष्ठ नेता भी रूठ गए और उन्होंने शिवपाल का साथ ही छोड़ दिया. इन नेताओं में पूर्व मंत्री शारदा प्रताप शुक्ला शामिल थे. उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया और सरोजिनीनगर सीट से भाजपा प्रत्याशी राजेश्वर सिंह के साथ हो लिए.

वरिष्ठ नेताओं के अलावा प्रदेश भर में तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी शिवपाल का कदम उस समय सही नहीं लगा था. उन्होंने भी प्रसपा से दूरी बना ली थी. कुछ दिन बाद शिवपाल और अखिलेश के बीच दूरियां फिर से बढ़ी और शिवपाल फिर से अपनी पार्टी को मजबूत करने लगे. अब शिवपाल पर उनकी ही पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का विश्वास कम होता जा रहा है. ऐसे में अब एक बार फिर सपा और प्रसपा नेताओं के बीच नजदीकियां बढ़ी हैं. लिहाजा प्रसपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने राजनीतिक कॅरियर की फिक्र सताने लगी है.

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