लखनऊः उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मकान मालिक और किरायेदारों के बीच विवाद समाप्त करने के लिए बनाए गए 'किराएदारी' कानून को लागू कर दिया गया है. यह कानून 12 जनवरी से पूरे उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से प्रभावी हो गया है. योगी आदित्यनाथ सरकार ने पिछले दिनों कैबिनेट बाई सर्कुलेशन से उत्तर प्रदेश नगरीय परिसर किराएदार विनियमन अध्यादेश 2021 पेश किया था. राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की मंजूरी मिलने के बाद मंगलवार से 'किराएदारी' कानून पूरी तरह से प्रभावी हो गया है.
बिना अअनुबंध के नहीं दिये जा सकेंगे किराये पर मकान
'किराएदारी' कानून के लागू होने से उत्तर प्रदेश में कोई भी मकान मालिक लिखित करार यानी अनुबंध के बिना अपने भवन को किराए पर नहीं दे सकेगा. यह रेजिडेंशियल के साथ-साथ कमर्शियल बिल्डिंग में भी लागू होगा. इसके साथ ही अनुबंध के लिए मकान मालिक और किराएदार को अपने बारे में संपूर्ण जानकारी देने के साथ ही बिल्डिंग का विस्तृत ब्यौरा निर्धारित प्रोफार्मा पर देना होगा. इसमें दोनों लोगों की जिम्मेदारियों का भी उल्लेख किया जाएगा. नए कानून के तहत मकान मालिक बिना अनुबंध के अपना मकान किराए पर नहीं दे सकेंगे. इसके साथ ही 11 महीने की आवासीय किराएदारी के मामलों में सरकार ने मकान मालिक और किराएदार को राहत देते हुए उन्हें किराएदार की सूचना किराया प्राधिकरण को देने से छूट देने का फैसला किया है.
5 से सात फीसद ही बढ़ा सकेंगे किराया
यही नहीं ज्यादातर मामलों में 11 महीने के लिए ही किराएदार का अनुबंध होता है. किराए का अनुबंध होने के बाद आवासीय मामले में पांच फीसद जबकि गैर आवासीय मामले में 7 फीसद वार्षिक दर से ही किराए को बढ़ाया जा सकेगा. आवासीय मामले में 2 माह और अन्य मामलों में 6 माह के किराए के बराबर सिक्योरिटी राशि ली जा सकेगी. किराएदारी अनुबंध की तिथि से 2 माह में भवन स्वामी व किराएदार को संयुक्त रूप से उसकी सूचना किराया प्राधिकारी को देनी होगी. सूचना देने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म की भी व्यवस्था नए कानून के अंतर्गत सुनिश्चित की गई है. हालांकि 12 महीने से कम अवधि के रेजिडेंशियल किराएदारी के मामलों में किराया प्राधिकारी को सूचना देने की अनिवार्यता नहीं रखी गई है.
किरायेदारी विवाद रेंट अथॉरिटी में होंगे निस्तारित
अब किराएदारी से संबंधित होने वाले विवाद को निस्तारित करने के लिए रेंट अथॉरिटी एवं रेंट ट्रिब्यूनल की व्यवस्था भी इस नए कानून के अंतर्गत बनाई गई है. एडीएम स्तर के अधिकारी किराया प्राधिकारी होंगे. वहीं जिला न्यायाधीश या अपर जिला न्यायाधीश किराया अभिकरण की अध्यक्षता करेंगे. किराएदारी के 1 मामले को अधिकतम 60 दिनों में निस्तारित करने की समय सीमा भी निर्धारित की गई है.