नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने जेलों से दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर उत्तर प्रदेश सरकार को कई दिशा निर्देश दिए. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सोमवार को यूपी को जेलों से दोषियों की समय से पहले रिहाई के लिए निर्धारित नीतिगत प्रावधानों का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए हैं. इसके साथ ही अदालत ने ये भी आदेश दिया है कि समय से पहले रिहाई के पात्र कैदियों के सभी मामलों को तीन महीने के भीतर निपटा लिया जाए. बता दें कि कैदियों की समय से पहले रिहाई से संबंधित एक मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ भी कर रही थी.
आज सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि 2228 कैदी समय से पूर्व रिहाई के हकदार हैं. इन कैदियों ने वास्तविक कारावास के 14 साल पूरे कर लिए हैं. पिछले 5 साल में 3700 कैदियों को रिहा किया गया है और सालाना कैदियों को विशेष अवसरों पर रिहा किया जाता है. यूपी में 1,16,000 कैदी हैं और 88000 विचाराधीन हैं.
एडवोकेट ऋषि मल्होत्रा ने सोमवार को सुनवाई के दौरान आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश कैदियों की समय से पहले रिहाई के लिए नीतियों पर काम नहीं किया जा रहा है. पिक एंड चूज पॉलिसी का पालन करने के लिए उसके खिलाफ अवमानना दर्ज करने की जरूरत है. इसके साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि कैदियों की समय से पहले रिहाई की निगरानी के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को नियुक्त किया जाना चाहिए. या फिर यूपी में कैदियों की रिहाई पर एक मासिक रिपोर्ट आनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनवाई के दौरान माना कि यूपी ने समय से पहले रिहाई के मामलों को तय करने के लिए जो नीति बनाई है वह मनमानी है. कहा कि जब कैदियों की समय से पहले रिहाई के मानदंड बने हैं तो राज्य को मनमाना मानदंड नहीं अपनाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि प्रावधानों को कुशलतापूर्वक लागू किया जाना चाहिए. साथ ही उन्हीं प्रावधानों के अनुसार ही कैदियों का चयन होना चाहिए. नीति के तहत कैदियों का चयन नहीं होने के कारण ही ऐसे मामले बार-बार कोर्ट में आ रहे हैं.
यूपी में कैदियों की समय से पूर्व रिहाई की प्रक्रिया को लेकर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कई दिशा-निर्देश भी पारित किए. कोर्ट ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के अध्यक्ष को जिला और राज्य की जेलों से समय से पहले रिहाई के मानदंड के अनुसार पात्र कैदियों के बारे में जानकारी जमा करने के निर्देश दिए हैं.
इसके साथ ही डीएलएसए के सचिव को सभी जेल अधीक्षकों को जानकारी उपलब्ध कराने के लिए कहा है, ताकि रिहाई की प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से लागू किया जा सके. डीएलएसए सचिव जानकारी एकत्र करके मई, अगस्त और अक्टूबर की पहली तारीख को इसे एसएलएसए को भेजेंगे.
इसके बाद डीएलएसए की रिपोर्ट का आकलन करने के लिए राज्य निकाय के अध्यक्ष एक बैठक बुलाएंगे, जिसमें गृह विभाग के सचिव और डीजी जेल भी उपस्थित होंगे. आदेश में यह भी कहा गया है कि डीजी जेल एसएलएसए अध्यक्ष के साथ परामर्श करेंगे और समय से पहले रिहाई के लिए पात्र कैदियों का डाटा ऑनलाइन करेंगे. ऑनलाइन डाटा में ये भी बताया जाएगा कि कैदी का मामला कितने दिन से विचाराधीन चल रहा है. सुनवाई के दौरान कोर्ट में यूपी को ओर से कहा गया कि कैदियों की समय से पहले रिहाई में उन व्यावहारिक पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है, जो राज्यपाल की ओर से इंगित किए जाते हैं.