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ओपी राजभर का नया दोस्त कौन? अब किसका दरवाजा खटखटाएंगे?

सपा से तलाक के बाद ओपी राजभर का नया राजनीतिक दोस्त कौन होगा?, वह अब किसका दरवाजा खटखटाएंगे? चलिए जानते हैं.

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ओपी राजभर का नया दोस्त कौन? किसका दरवाजा खटखटाएंगे?
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Published : Jul 23, 2022, 7:52 PM IST

हैदराबादः सपा से तलाक के बाद सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर अब किस पार्टी का दामन थामेंगे? यह सवाल यूपी के सत्ता के गलियारों में उठने लगा है. ओपी राजभर ने इसके संकेत दिए हैं. उनके पास वैसे तो सीएम योगी और मायावती के रूप में दो विकल्प हैं. अगर प्राथमिकता की बात की जाए तो उनकी पहली पसंद बसपा नजर आ रही है. इसकी झलक उनके बयानों में मिली है.

सपा से अलगाव के बाद सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि 'मैंने दलितों-पिछड़ों की हिस्सेदारी मांगी लेकिन उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया. मैंने आजमगढ़ के लिए कई नाम सुझाए लेकिन उनको सिर्फ यादव और मुसलमान उम्मीदवार ही चाहिए था. हमने दलितों और पिछड़ों की आवाज उठाई तो हमें किनारे कर दिया गया. अब हम बसपा के साथ बातचीत को आगे बढ़ाएंगे.'

राजभर के इस बयान ने साफ कर दिया है कि छह विधायकों वाली सुभासपा नए दोस्त की तलाश में निकल चुकी है. उसकी पहली पसंद बसपा है. बीते दिनों मायावती के साथ राजभर के जाने की चर्चाएं तेज हुईं थीं. अब चूंकि सुभासपा पूरी तरह से गठबंधन से स्वतंत्र हो चुकी है तो ओपी राजभर खुलकर दलितों और पिछड़ों के मुद्दे उठाते हुए सपा को दलित विरोधी बताने में जुट गए हैं. उनको मालूम है कि अखिलेश की सबसे बड़ी राजनीतिक शत्रु बसपा है. ऐसे में वह बसपा को प्राथमिकता दे रहे हैं.

इससे पहले भी उन्होंने कई मौकों पर बसपा को लेकर बयान दिए थे. कुछ दिनों पूर्व सुभासपा अध्यक्ष ओपी राजभर ने कहा था कि 'अखिलेश जिस दिन कह देंगे कि आप जाओ तो उसी दिन मायावती का दरवाजा खटखटाने पहुंच जाऊंगा.'

मायावती के साथ जाने की वजह यह तो नहीं...
सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर को मालूम है कि बसपा यूपी में अपनी जड़े जमाने में फिर से जुट रही है. मायावती संगठन को बड़ा रूप देने के लिए दलितों के साथ मुस्लिमों को भी ला रहीं हैं. बसपा के पास मायावती को छोड़कर ऐसा कोई कद्दावर नेता नहीं बचा है जो बड़ा चेहरा हो. अगर सुभासपा बसपा से गठबंधन करती है तो इससे उसकी दलित और मुस्लिम समुदाय में पैठ मजबूत होगी. इससे सुभासपा का वोट बैंक भी मजबूत होगा. इसके साथ ही ओपी राजभर का राजनीतिक कद भी बढ़ेगा. साथ ही यह भी कहा जा रहा कि बसपा की नजदीकी जिस तरह से बीजेपी के साथ है. उससे आने वाले लोकसभा चुनाव के समीकरण काफी हद तक सुभासपा के लिए फाय़देमंद साबित हो सकते हैं. कुल मिलाकर बसपा सुभासपा के लिए मौजूदा राजनीतिक समीकरण में नए दोस्त के रूप में फिट बैठ रही है.

वाई सिक्योरिटी 'गिफ्ट' देने वाली बीजेपी विकल्प नंबर दो
यूपी सरकार ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) प्रमुख ओम प्रकाश राजभर को वाई श्रेणी की सुरक्षा दे दी है. यह सुरक्षा राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने के बदले तोहफे के रूप में मानी जा रही है. इसे लेकर भी राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं हो रहीं हैं. यह भी कहा जा रहा है कि अगर ओपी राजभर की बसपा से बात नहीं बनी तो वह बीजेपी का दामन थाम लेंगे. फिलहाल बीजेपी को उनके नए दोस्त के दूसरे विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.

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हैदराबादः सपा से तलाक के बाद सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर अब किस पार्टी का दामन थामेंगे? यह सवाल यूपी के सत्ता के गलियारों में उठने लगा है. ओपी राजभर ने इसके संकेत दिए हैं. उनके पास वैसे तो सीएम योगी और मायावती के रूप में दो विकल्प हैं. अगर प्राथमिकता की बात की जाए तो उनकी पहली पसंद बसपा नजर आ रही है. इसकी झलक उनके बयानों में मिली है.

सपा से अलगाव के बाद सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि 'मैंने दलितों-पिछड़ों की हिस्सेदारी मांगी लेकिन उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया. मैंने आजमगढ़ के लिए कई नाम सुझाए लेकिन उनको सिर्फ यादव और मुसलमान उम्मीदवार ही चाहिए था. हमने दलितों और पिछड़ों की आवाज उठाई तो हमें किनारे कर दिया गया. अब हम बसपा के साथ बातचीत को आगे बढ़ाएंगे.'

राजभर के इस बयान ने साफ कर दिया है कि छह विधायकों वाली सुभासपा नए दोस्त की तलाश में निकल चुकी है. उसकी पहली पसंद बसपा है. बीते दिनों मायावती के साथ राजभर के जाने की चर्चाएं तेज हुईं थीं. अब चूंकि सुभासपा पूरी तरह से गठबंधन से स्वतंत्र हो चुकी है तो ओपी राजभर खुलकर दलितों और पिछड़ों के मुद्दे उठाते हुए सपा को दलित विरोधी बताने में जुट गए हैं. उनको मालूम है कि अखिलेश की सबसे बड़ी राजनीतिक शत्रु बसपा है. ऐसे में वह बसपा को प्राथमिकता दे रहे हैं.

इससे पहले भी उन्होंने कई मौकों पर बसपा को लेकर बयान दिए थे. कुछ दिनों पूर्व सुभासपा अध्यक्ष ओपी राजभर ने कहा था कि 'अखिलेश जिस दिन कह देंगे कि आप जाओ तो उसी दिन मायावती का दरवाजा खटखटाने पहुंच जाऊंगा.'

मायावती के साथ जाने की वजह यह तो नहीं...
सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर को मालूम है कि बसपा यूपी में अपनी जड़े जमाने में फिर से जुट रही है. मायावती संगठन को बड़ा रूप देने के लिए दलितों के साथ मुस्लिमों को भी ला रहीं हैं. बसपा के पास मायावती को छोड़कर ऐसा कोई कद्दावर नेता नहीं बचा है जो बड़ा चेहरा हो. अगर सुभासपा बसपा से गठबंधन करती है तो इससे उसकी दलित और मुस्लिम समुदाय में पैठ मजबूत होगी. इससे सुभासपा का वोट बैंक भी मजबूत होगा. इसके साथ ही ओपी राजभर का राजनीतिक कद भी बढ़ेगा. साथ ही यह भी कहा जा रहा कि बसपा की नजदीकी जिस तरह से बीजेपी के साथ है. उससे आने वाले लोकसभा चुनाव के समीकरण काफी हद तक सुभासपा के लिए फाय़देमंद साबित हो सकते हैं. कुल मिलाकर बसपा सुभासपा के लिए मौजूदा राजनीतिक समीकरण में नए दोस्त के रूप में फिट बैठ रही है.

वाई सिक्योरिटी 'गिफ्ट' देने वाली बीजेपी विकल्प नंबर दो
यूपी सरकार ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) प्रमुख ओम प्रकाश राजभर को वाई श्रेणी की सुरक्षा दे दी है. यह सुरक्षा राष्ट्रपति चुनाव में वोट डालने के बदले तोहफे के रूप में मानी जा रही है. इसे लेकर भी राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं हो रहीं हैं. यह भी कहा जा रहा है कि अगर ओपी राजभर की बसपा से बात नहीं बनी तो वह बीजेपी का दामन थाम लेंगे. फिलहाल बीजेपी को उनके नए दोस्त के दूसरे विकल्प के रूप में देखा जा रहा है.

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