नई दिल्ली: 33 साल के मोहम्मद मुशर्रफ और मोनू अग्रवाल बचपन के दोस्त थे. मुशर्रफ उसी फैक्ट्री में काम करते थे जहां रविवार सुबह आग लगी. आग में घिर जाने और बचने का कोई रास्ता न पाकर मुशर्रफ को जब अपना अंतिम समय दिखने लगा, तो उन्हें सबसे पहले याद आए अपने बचपन के दोस्त मोनू अग्रवाल.
ईटीवी भारत से बातचीत में मोनू अग्रवाल ने अपनी डबडबाई आंखों से दोस्ती की खत्म हुई कहानी की जो दास्तान बयां की, वो बेहद मार्मिक है.
मोनू अग्रवाल ने बताया कि सुबह 5 बजे के करीब उनके दोस्त मोहम्मद मुशर्रफ का फोन आया. उसने कहा कि अब अंत आ गया है. करीब 7 मिनट दोनों की फोन पर बात हुई थी और उसके बाद सिर्फ फोन ही नहीं कटा, दोस्ती की डोर भी हमेशा के लिए टूट गई.
इस दोस्ती की कहानी तो खत्म हो गई, लेकिन धार्मिक उन्माद वाली कहानियों के दौर में यह एक बड़ा उदाहरण भी है कि किस तरह दोस्ती धर्म या रूहानी रिश्तों की मोहताज नहीं होती. एलएनजेपी अस्पताल में मोनू अग्रवाल के साथ आए थे मोहम्मद मुशर्रफ के भाई, जिन्हें खुद अपने भाई की मौत का पता भाई के दोस्त से चला.