लखनऊ: देश भर में तकरीबन 300 सामुदायिक रेडियो केंद्र हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी सामुदायिक रेडियो केंद्रों का चलन बढ़ रहा है. यहां पर भी धीरे-धीरे ही सही सामुदायिक रेडियो केंद्रों की स्थापना की जा रही है.अब अगर लखनऊ की बात करें तो सिटी मांटेसरी स्कूल का सामुदायिक रेडियो केंद्र पिछले 15 सालों से लोगों को जागरूक कर रहा है. यह विभिन्न तरीके के कार्यक्रम आयोजित कर लोगों की आवाज बन कर उनकी समस्याओं का समाधान कर रहा है. इसी तरह बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय ने भी अपना सामुदायिक रेडियो केंद्र खोला है. केजीएमयू भी सामुदायिक रेडियो केंद्र खोलने की तैयारी कर रहा है.
CMS के दो स्टेशनों से छात्रों के साथ समाज को भी मिल रहा लाभ
2004 में भारत सरकार सामुदायिक रेडियो केंद्र खोलने के लिए योजना लाई थी. इसका उद्देश्य था कि कमर्शियल रेडियो से हटकर सामुदायिक रेडियो की स्थापना की जाए जिससे हर तबके की आवाज को उठाया जा सके. लखनऊ में सबसे पुराने सामुदायिक रेडियो केंद्र की बात करें तो 2005 में सिटी मांटेसरी स्कूल में सामुदायिक रेडियो स्टेशन खोल दिया था. राजधानी में सिटी मांटेसरी स्कूल के दो स्टेशन संचालित हो रहे हैं. पहला स्टेशन कानपुर रोड स्थित सीएमएस तो दूसरा स्टेशन गोमती नगर स्थित सीएमस सामुदायिक रेडियो स्टेशन है. यहां से समाज को जागरूक करने के लिए विभिन्न तरीके के प्रोग्राम प्रसारित किए जाते हैं. सुबह छह बजे से रात 11 बजे तक लगातार विभिन्न तरह के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. सामुदायिक रेडियो केंद्र छात्रों, महिलाओं, किसानों और जिस वर्ग की जो भी समस्या होती है उनकी आवाज बन रहा है.
जनता के बीच जाकर बनते हैं उसकी आवाज
सामुदायिक रेडियो स्टेशनों से जो भी कार्यक्रम प्रसारित होते हैं वह सीधे तौर पर जनता की आवाज ही होते हैं.ये कार्यक्रम इस तरह से बनाए जाते हैं जिसमें जनता का सीधा इंवॉल्वमेंट होता है. किसी बीमारी को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाना हो या फिर छात्रों को लेकर पढ़ाई से संबंधित कार्यक्रम, महिलाओं की समस्याओं से लेकर चिकित्सकीय विचार-विमर्श से संबंधित कार्यक्रम मुख्य तौर पर सामुदायिक रेडियो केंद्र प्रसारित करते हैं. जनता की समस्याओं को सरकार के सामने रखकर उनके समाधान का यह बेहतर माध्यम है. बाल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने का काम भी शैक्षिक संस्थान से चलने वाले सामुदायिक रेडियो स्टेशन बखूबी अंजाम दे रहे हैं. उनकी पढ़ाई से संबंधित कार्यक्रमों को रोचक तरीके से प्रजेंट कर उनका ज्ञानवर्धन कर रहे हैं. सामुदायिक रेडियो द्वारा कुछ ऐसे मुद्दे जिससे छात्र दूर भागते हैं उन्हें इस तरह से रोचक बनाकर छात्रों के सामने पेश किया जाता है, जिससे उन्हें सामुदायिक रेडियो स्टेशन से काफी लाभ मिलता है. सिटी मांटेसरी स्कूल का सामुदायिक रेडियो स्टेशन बाल प्रतिभाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है तो समाज में व्याप्त समस्या के समाधान के लिए भी बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया है.
सामुदायिक रेडियो के लिए अनुमति लेने की ये है प्रक्रिया
अगर कोई संस्था या गैर सरकारी संगठन सामुदायिक रेडियो स्टेशन की स्थापना करना चाहते हैं तो इसके लिए बाकायदा पूरी प्रक्रिया सरकार की तरफ से बनी हुई है. इसमें दो विभाग सीधे तौर पर शामिल होते हैं. भारत सरकार का सूचना प्रसारण मंत्रालय और संचार विभाग. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की वेबसाइट मिनिस्ट्री ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट पर पहले सामुदायिक रेडियो स्टेशन के लिए फॉर्म भरकर आवेदन करना होता है. उसके बाद कारण बताना होता है कि आखिर किस लिए रेडियो स्टेशन की स्थापना करना चाहते हैं. इसके लिए बाकायदा टीम सर्वे करती है उसके बाद साक्षात्कार होता है. यह प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद मानकों पर खरा उतरने वाली संस्था को सामुदायिक रेडियो स्टेशन चलाने की अनुमति प्रदान की जाती है. सही समय पर सारी प्रक्रिया पूर्ण करने पर एक साल के अंदर ही सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित किया जा सकता है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय रेडियो स्टेशन की अनुमति प्रदान करता है तो संचार विभाग रेडियो स्टेशन की फ्रीक्वेंसी तय करता है.
एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन के साथ ही एनजीओ को भी मौका
विशेषज्ञ आरके सिंह बताते हैं कि पहले मिनिस्ट्री ऑफ इंफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट की तरफ से सिर्फ एजुकेशन इंस्टिट्यूट को ही कम्युनिटी रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति थी, लेकिन बाद में इसमें कृषि विज्ञान केंद्र और एनजीओ को भी शामिल कर लिया गया है. कम्युनिटी रेडियो स्टेशन खोलने के लिए एनजीओ को तीन साल पुराना होना चाहिए, लेकिन एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन के लिए यह बाध्यता नहीं है.
कम्यूनिटी रेडियो देता है सभी को मौका
सिटी मांटेसरी स्कूल के सामुदायिक रेडियो स्टेशन के इंचार्ज आरके सिंह बताते हैं कि सामुदायिक रेडियो एक ऐसा माध्यम है जहां आम आदमी की भी समस्याओं को सबके सामने रखा जाता है. उन्होंने बताया अगर उस गरीब व्यक्ति को कोई कहे कि रेडियो स्टेशन में जाकर अपनी समस्या उठाएं तो कोई भी कमर्शियल रेडियो स्टेशन उसे मौका नहीं देगा, लेकिन कम्युनिटी रेडियो खासकर उनके लिए भारत सरकार ने प्लेटफार्म दिया है. एक गरीब से गरीब व्यक्ति को अपनी बात रहने का अधिकार प्रदान करता है. कम्युनिटी रेडियो का यह प्रयास होता है कि वह उनकी बात को लेकर प्रशासन तक पहुंचाए और उनकी समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करे.
90.4 एफएम शहर का सामुदायिक रेडियो स्टेशन
एफएम एजुकेशनल कम्यूनिटी रेडियो डिविजन के हेड ऑफ डिपार्टमेंट वर्गीस कुरियन ने बताया कि 2005 में हमें टाइम शेयरिंग बेसिस पर दो रेडियो स्टेशन खोलने का लाइसेंस मिला था. अब दो रेडियो स्टेशन संचालित किए जा रहे हैं. एक कम्युनिटी रेडियो स्टेशन कानपुर रोड स्थित स्कूल से तो दूसरा गोमती नगर स्थित सिटी मांटेसरी स्कूल से. 8 घंटे गोमती नगर से तो 8 घंटे कानपुर रोड से एक ही फ्रीक्वेंसी 90.4 एफएम पर कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं.इसमें जो लोग गांव में रहते हैं उनको सामुदायिक रेडियो में चांस दिया जाता है. गांव के बच्चों को ट्रेंड करते हैं उन्हीं को लेकर प्रोग्राम बनाते हैं, क्योंकि उनको और कहीं मौका नहीं मिलता है, लेकिन कम्युनिटी रेडियो उन्हें यह मौका प्रदान करता है.
20 किलोमीटर से कम दूरी पर नहीं हो सकता दूसरा स्टेशन
अगर एक ही संस्था को अपने कई सामुदायिक रेडियो स्टेशन चलाने हैं तो उन्हें एक ही फ्रीक्वेंसी पर स्टेशन संचालित करने की अनुमति प्रदान की जाती है. शर्त ये भी है कि इन दोनों के बीच की दूरी 20 किलोमीटर से कम नहीं होनी चाहिए. अगर इससे दूरी कम है तो उस दायरे में एक और रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति नहीं दी जाती है. लाइसेंस के लिए तो कोई फीस नहीं होती है, लेकिन सालाना 23,100 रुपये कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन चलाने के लिए चुकाने होते हैं.
कम्युनिटी रेडियो से पूरी होती है जरूरतें
यह ऐसा रेडियो स्टेशन है जो जनता की आवाज बनता है. सबसे खास बात ये है कि किसी तरह का कोई विज्ञापन नहीं लिया जाता है. जन जागरण भी इसके जरिए किया जाता है और शिक्षा भी दी जाती है. कम्युनिटी रेडियो भी है और शिक्षात्मक भी. शिक्षा के साथ-साथ कम्युनिटी के लिए जो चीजें जरूरी है वह भी कम्युनिटी रेडियो से पूरी की जाती हैं.
लाखों लोगों की आवाज बनता है
रेडियो जॉकी सौम्या घोष ने बताया कि सामुदायिक रेडियो जिस तरह से इस,का नाम रखा गया है उसी तरह से ये समुदाय को जोड़ता है. सौम्या ने बताया यह लोगों का अपना रेडियो है. इसमें यह नहीं होता है कि हम उन्हें अपना कोई कार्यक्रम सुना देते हैं. इसमें उनकी सोच होती है उनसे बात करके उनसे पूछते हैं कि आप क्या सुनना चाहते हैं. सौम्या ने बताया इसमें हर तरह की जागरूकता फैलाई जाती है. जब कोरोना शुरू हुआ था तब से कोरोना को लेकर इसके जरिए जागरूकता फैलाई गई है.
गांव से लेकर शहर तक सामुदायिक रेडियो की धमक
वहीं रेडियो जॉकी हर्ष बाबा का कहना है कि सामुदायिक रेडियो ग्रामीण जनता से लेकर शहरों तक की आबादी को लाभ पहुंचा रहा है. सामुदायिक रेडियो का मतलब समाज का कोई भी वर्ग हो हो सकता है. स्टूडेंट भी हो सकते हैं, आम आदमी भी हो सकता है, मजदूर भी हो सकता है, वर्कर्स भी हो सकते हैं. हर्ष ने बताया कि जो हमारा ट्रांसमिशन है वह स्टूडेंट के लिए विशेष तौर पर बेस्ड होता है. हम स्टूडेंट को आज के परिवेश से जोड़ने का काम करते हैं. स्टूडेंट के माध्यम से जो लोगों को नहीं पता है वह बताने का प्रयास किया जाता है. नए-नए एक्सपेरीमेंट्स के बारे में बताया जाता है. यह समाज के लिए बेहतर विकल्प है.
सामुदायिक रेडियो स्टेशन से हर वर्ग को लाभ
वनिता गुप्ता जो रेडियो जॉकी हैं उनका कहना है कि कम्युनिटी रेडियो के कार्यक्रमों जैसे महिला सशक्तिकरण में बेटियां और महिलाएं कम्युनिटी रेडियो से जुड़ती हैं. वह चाहे रूरल ग्राउंड की हो या अर्बन बैकग्राउंड की. चाहे वह शिक्षित वर्ग हो चाहे अशिक्षित वर्ग हो. हर महिला को, हर बेटी को हम लेकर चलते हैं. बहुत सारे ऐसे कार्यक्रम उन मुद्दों पर भी किए जाते हैं, जिन पर महिलाएं चुप्पी साध लेती हैं. हम हर मुद्दे पर सामुदायिक रेडियो स्टेशन के जरिए चर्चा परिचर्चा करते हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों को शामिल करते हैं और समाज के हर वर्ग को लाभ पहुंचाने का काम करते हैं.
ऐसे कार्यक्रमों का होता है प्रसारण
सामुदायिक रेडियो का सबसे बड़ा मकसद यही है कि इसके द्वारा सूचना, शिक्षा और मनोरंजन श्रोताओं को प्रदान किया जाए. रवींद्र त्रिपाठी ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल में श्रोताओं से लाइव फोनइन कार्यक्रम के माध्यम से जुड़े. कोरोना काल के दौरान जो छात्र ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण कर रहे थे उस समय उनके लिए कार्यक्रम एनसीईआरटी का श्रंखलागत पाठ्यक्रमों पर आधारित ध्वनिशाला के माध्यम से विभिन्न विषयों को प्रसारित किया गया. उसके फीडबैक भी अच्छे मिले.