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योगी से मोर्चा या लोकसभा में सपा की मजबूती, अखिलेश यादव किसे देंगे तरजीह

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों ने राज्य में इतिहास बनाते हुए बीजेपी को लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज कराया है. समाजवादी पार्टी एक बार फिर अगले 5 साल सत्ता से बाहर रहेगी. ऐसे में समाजवादी पार्टी ये कश्मकश में है कि वो अपने नेता को सांसद रखें या फिर विधायक.

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अखिलेश यादव किसे देंगे तरजीह
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Published : Mar 12, 2022, 6:14 PM IST

Updated : Mar 13, 2022, 9:42 AM IST

लखनऊः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों ने राज्य में इतिहास बनाते हुए बीजेपी को लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज कराया है. समाजवादी पार्टी एक बार फिर अगले 5 साल सत्ता से बाहर रहेगी. ऐसे में अब जहां बीजेपी शपथ समारोह की तारीख तय करने में लगी है, तो सपा इस कश्मकश में है कि वो अपने नेता को सांसद रखें या फिर विधायक. ये सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी मंथन कर रहे हैं कि उन्हें अगले पांच साल योगी आदित्यनाथ के सामने विधानसभा में बैठेंगे या 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए लोकसभा में मोदी सरकार को घेरेंगे.

अखिलेश यादव ने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और यादव परिवार के गढ़ मैनपुरी जिले की करहल सीट से जीत दर्ज की. अखिलेश यादव मौजूदा समय में आजमगढ़ से सांसद भी हैं. ऐसे में अब ये सवाल उठ रहा है कि आखिरकार अखिलेश यादव करहल से मिली विपरीत परिस्थितियों में जीत का सम्मान रखेंगे या लोकसभा में ही अपनी राजनीति आगे बढ़ाएंगे. वैसे तो ये तय खुद अखिलेश यादव को करना है, लेकिन कयास ये लगाए जा रहे हैं कि वो सासंद रहना पसंद करेंगे.

ऐसा इसलिए क्यों कि जब वे 2012 से 2017 के मध्य सपा सरकार के दौरान वो एमएलसी थे, तब तक तो सबकुछ ठीक रहा. लेकिन सत्ता से बाहर होते ही कार्यकाल एक साल बचे रहने के बावजूद विधान परिषद में उनकी उपस्थिति न के बराबर ही रही है. वजह साफ थे कि अखिलेश यादव को सदन में विपक्ष में बैठना मंजूर नहीं था. हालांकि आजमगढ़ में सांसद बनने पर लोकसभा में मोदी सरकार को घेरने के लिए हमेशा मौजूद रहे. इसके साथ ही लोकसभा में सपा के महज 5 सांसद होने के चलते वहां पार्टी को कमजोर नहीं होने देना चाहेंगे.

क्या कहते है राजनीतिक विश्लेषक

राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का मानना है कि वैसे तो अखिलेश यादव को बैठना विधानसभा में चाहिए, लेकिन वो जाएंगे लोकसभा ही. क्यों कि उन्हें फाइटर नहीं कहा जा सकता है. विधानसभा में उनका दल पिछली बार से क्षमता से ज्यादा है. ऐसे में अखिलेश नहीं चाहेंगे कि उन्हें वहां बैठ कर सत्ता से लड़ना पड़े.

वहीं शरत प्रधान कहते हैं कि अगर अखिलेश यादव के राजनीतिक पृष्ठभूमि पर नजर डालें, तो उसके अनुसार तो वो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनना नहीं चाहेंगे. लेकिन अगर उन्हें राज्य की लड़ाई की तैयारी करनी है तो अपने लोगों में जोश बनाये रखना है. उन्हें सदन में बैठकर रोजाना सरकार की नाक में दम करना होगा. वहीं आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी वो यूपी में रहकर अच्छे से तैयारी कर सकेंगे. इससे ये भी लाभ होगा कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ना नहीं पड़ेगा, क्यों कि वे खुद विधायक रहेंगे और दूसरा पार्टी के लिए अच्छे से तैयारी कर सकेंगे.

इसे भी पढ़ें- अखिलेश यादव ने चाचा पर जताया भरोसा, बना सकते हैं विरोधी दल के नेता

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान रामपुर सदर से इस बार विधायक चुने गये हैं. आजम रामपुर सीट से लोकसभा सांसद भी हैं. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश यादव की ही तरह आजम खान भी विधायक पद से इस्तीफा दे कर लोकसभा सदस्यता को बनाये रखेंगे. इसके पीछे की वजह लोकसभा में समाजवादी पार्टी की मजबूती बनाये रखना ही है. वहीं पार्टी को उम्मीद है कि रामपुर के उपचुनाव में वो एक बार फिर आजम के परिवार से या अन्य किसी को लड़ा जीत दर्ज करा सकते हैं.

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लखनऊः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों ने राज्य में इतिहास बनाते हुए बीजेपी को लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज कराया है. समाजवादी पार्टी एक बार फिर अगले 5 साल सत्ता से बाहर रहेगी. ऐसे में अब जहां बीजेपी शपथ समारोह की तारीख तय करने में लगी है, तो सपा इस कश्मकश में है कि वो अपने नेता को सांसद रखें या फिर विधायक. ये सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव भी मंथन कर रहे हैं कि उन्हें अगले पांच साल योगी आदित्यनाथ के सामने विधानसभा में बैठेंगे या 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए लोकसभा में मोदी सरकार को घेरेंगे.

अखिलेश यादव ने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और यादव परिवार के गढ़ मैनपुरी जिले की करहल सीट से जीत दर्ज की. अखिलेश यादव मौजूदा समय में आजमगढ़ से सांसद भी हैं. ऐसे में अब ये सवाल उठ रहा है कि आखिरकार अखिलेश यादव करहल से मिली विपरीत परिस्थितियों में जीत का सम्मान रखेंगे या लोकसभा में ही अपनी राजनीति आगे बढ़ाएंगे. वैसे तो ये तय खुद अखिलेश यादव को करना है, लेकिन कयास ये लगाए जा रहे हैं कि वो सासंद रहना पसंद करेंगे.

ऐसा इसलिए क्यों कि जब वे 2012 से 2017 के मध्य सपा सरकार के दौरान वो एमएलसी थे, तब तक तो सबकुछ ठीक रहा. लेकिन सत्ता से बाहर होते ही कार्यकाल एक साल बचे रहने के बावजूद विधान परिषद में उनकी उपस्थिति न के बराबर ही रही है. वजह साफ थे कि अखिलेश यादव को सदन में विपक्ष में बैठना मंजूर नहीं था. हालांकि आजमगढ़ में सांसद बनने पर लोकसभा में मोदी सरकार को घेरने के लिए हमेशा मौजूद रहे. इसके साथ ही लोकसभा में सपा के महज 5 सांसद होने के चलते वहां पार्टी को कमजोर नहीं होने देना चाहेंगे.

क्या कहते है राजनीतिक विश्लेषक

राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा का मानना है कि वैसे तो अखिलेश यादव को बैठना विधानसभा में चाहिए, लेकिन वो जाएंगे लोकसभा ही. क्यों कि उन्हें फाइटर नहीं कहा जा सकता है. विधानसभा में उनका दल पिछली बार से क्षमता से ज्यादा है. ऐसे में अखिलेश नहीं चाहेंगे कि उन्हें वहां बैठ कर सत्ता से लड़ना पड़े.

वहीं शरत प्रधान कहते हैं कि अगर अखिलेश यादव के राजनीतिक पृष्ठभूमि पर नजर डालें, तो उसके अनुसार तो वो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनना नहीं चाहेंगे. लेकिन अगर उन्हें राज्य की लड़ाई की तैयारी करनी है तो अपने लोगों में जोश बनाये रखना है. उन्हें सदन में बैठकर रोजाना सरकार की नाक में दम करना होगा. वहीं आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी वो यूपी में रहकर अच्छे से तैयारी कर सकेंगे. इससे ये भी लाभ होगा कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ना नहीं पड़ेगा, क्यों कि वे खुद विधायक रहेंगे और दूसरा पार्टी के लिए अच्छे से तैयारी कर सकेंगे.

इसे भी पढ़ें- अखिलेश यादव ने चाचा पर जताया भरोसा, बना सकते हैं विरोधी दल के नेता

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान रामपुर सदर से इस बार विधायक चुने गये हैं. आजम रामपुर सीट से लोकसभा सांसद भी हैं. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश यादव की ही तरह आजम खान भी विधायक पद से इस्तीफा दे कर लोकसभा सदस्यता को बनाये रखेंगे. इसके पीछे की वजह लोकसभा में समाजवादी पार्टी की मजबूती बनाये रखना ही है. वहीं पार्टी को उम्मीद है कि रामपुर के उपचुनाव में वो एक बार फिर आजम के परिवार से या अन्य किसी को लड़ा जीत दर्ज करा सकते हैं.

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Last Updated : Mar 13, 2022, 9:42 AM IST
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