लखनऊ. समाजवादी पार्टी ने भाजपा से अंदरूनी समझौते के तहत अपने कुछ विधान परिषद प्रत्याशियों से नाम वापस करवा लिए ताकि सदन में भाजपा को अल्पसंख्यकों के खिलाफ क़ानून बनाने में कोई दिक़्क़त न हो. ये बातें रविवार को अल्पसंख्यक कांग्रेस की तरफ से स्पीक अप कैंपेन की 39वीं कड़ी में कांग्रेस नेताओं ने कहीं.
अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सपा ने विधान परिषद चुनाव में अपनी जाति के लोगों को ही ज़्यादा टिकट दिए जबकि मुसलमानों के बल पर ही सपा विधानसभा चुनाव लड़ी थी. सपा यादव बहुल सीटों पर भी बुरी तरह हारी जिसका मतलब है कि जातीय वोटरों ने भी सपा को वोट नहीं दिया. बावजूद इसके अखिलेश यादव ने विधान परिषद चुनाव में मुसलमानों को सिर्फ़ तीन टिकट दिए है.
अखिलेश अपनी जाति के ज़्यादा लोगों को विधान परिषद भेजकर जबरन अपनी जाति का नेता होने का भ्रम बनाए रखना चाहते हैं. भाजपा से अंदरूनी समझौते के बाद सपा के अधिकतर प्रत्याशियों ने अपने नाम वापस ले लिए जिससे विधान परिषद में भाजपा को मुस्लिम विरोधी क़ानून बनाने के वक्त औपचारिक विरोध का सामना भी न करना पड़े.
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शाहनवाज़ आलम ने कहा कि भाजपा को आगामी विधानपरिषद चुनावों में लाभ पहुंचाने के लिए भी जरूरी था कि सपा के कुछ प्रत्याशी अपने नाम वापस ले लें ताकि विधानपरिषद में भाजपा की संख्या बढ़ने में कोई दिक्कत न हो. सपा ने इसी साज़िश के तहत अपने कुछ प्रत्याशियों के नाम वापस ले लिए.
इसके अलावा राज्यसभा में भी इनकी मिलीभगत चल रही है. इसी के तहत संविधान की प्रस्तावना में से इंदिरा गांधी सरकार द्वारा जोड़े गए सेकुलर और समाजवादी शब्दों को हटाने में भी मदद की जाएगी ताकि भाजपा को कोई दिक्कत न हो. सपा को औपचारिक विरोध तक न करना पड़े. इसके लिए तीन दिसंबर 2021 को राज्यसभा में भाजपा सांसद केजे अल्फोंस ने निजी मेम्बर बिल पेश किया हुआ है.
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