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यूपी के सात करोड़ बच्चों के अधिकारों का कैसे हो संरक्षण?

उत्तर प्रदेश के सात करोड़ बच्चों के अधिकारों के संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाने वाला उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग खुद समस्या से जूझ रहा है. आखिर यह समस्या क्या है और इससे आयोग के कामकाज पर क्या असर पड़ रहा है? चलिए जानते हैं.

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आयोग की डग्गामार स्थिति: कैसे हो 7 करोड़ बच्चों के अधिकारों का संरक्षण
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Published : Aug 18, 2022, 3:05 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 7 करोड़ बच्चों के अधिकार दिलाने वाला आयोग खुद के अधिकारों से वंचित है. बाल श्रम कर रहे बच्चों को रेस्क्यू करना हो या फिर भीख मांग रहे बच्चों को उनका अधिकार दिलाना. बच्चों के साथ हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ एक्शन लेना हो या फिर नाबालिग बच्चों के अधिकारों का हनन करने वालों पर कार्रवाई करना हो, उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग सक्रिय भूमिका निभाता है. ताज्जुब की बात है कि इन सब कार्यों के लिए आयोग के पास पर्याप्त साधन ही नहीं है. ऐसे में आयोग के सदस्यों को सक्रिय भूमिका निभाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन साल 20 नवंबर 2013 में सपा सरकार में हुआ था. आयोग के गठन का उद्देश्य बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा दिलाने, बाल श्रम को रोकने, बाल अधिकारों के हनन को रोकने, आतंकवाद, साम्प्रदायिक दंगों, वैश्यावृत्ति व पोर्नोग्राफी से बचाने जैसे कई अहम मुद्दे थे. इसके लिए आयोग में 1 अध्यक्ष व 6 सदस्यों को नामित किया गया था. गठन के समय आयोग में 2 सलाहकार भी नियुक्त किए गए थे. ये बाल अधिकार से जुड़े मामलों में छापेमारी, नोटिस देने व अधिकारों को कैसे कानून के तहत संरक्षित किया जाए आदि को लेकर मदद करते थे. अब आयोग में बीते एक साल से सलाहकारों की नियुक्ति न होने पर सदस्यों को उनके कार्यों को करने में समस्या आ रही है.

आयोग की सदस्य ने बताया कि आयोग में जून 2021 तक विधि व तकनीकी सलाहकार नियुक्त थे. ये सलाहकार सदस्यों को कैसे बाल के अधिकारों को बचाया जा सके, बाल अधिकार के क्षेत्र में शोध कार्य को बढ़ावा देने के साथ साथ गलत कार्य में लगे बच्चों के रेस्क्यू के दौरान किन-किन कानूनों के तहत कार्रवाई की जा सकती है, ऐसे तमाम मुद्दों पर उनकी मदद करते थे. इससे बाल अधिकारों के लिए पर्याप्त कार्रवाई की जा सकती थी. अब ऐसा नही है. सदस्य बताते हैं कि मौजूदा समय में 6 सदस्यों में 5 ऐसे हैं जो पहली बार नामित हुए है, अधिकारियों को बाल अधिकारों का हनन न हो इसके लिए संबंधित अधिकारियों नोटिस देने से लेकर रेस्क्यू प्रोग्राम चलाने तक सदस्यों को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है. इसके लिए कभी-कभी कुछ एनजीओ की मदद तो ली जाती है लेकिन गोपनीय पत्र के लिए सलाहकार की आवश्यकता होती है. पत्र में कानूनी दांवपेंच होते है, नियमों का हवाला देना होता है. इन सब चीजों की कमी के चलते अधिकारी व आरोपी बच जाते है.

एक अन्य सदस्य बतातीं है कि आयोग करीब एक दर्जन बिंदुओं पर कार्य करता है. इसके लिए सिर्फ कार्यालय में बैठ कर ही कार्य करना मुश्किल है. बच्चों को बाल श्रम, वैश्यावृत्ति से बचाने, तस्करी की जाने वाले बच्चियों को रेस्क्यू करवाने जैसे कई कार्यों के लिए लखनऊ के अलावा अन्य जिलों में अचानक जाना पड़ता है. आयोग के सदस्यों के पास खुद के वाहन न होने के कारण वो नही जा पाते है. ऐसे में उन बच्चों को जिन्हें आयोग की जरूरत है वो पूरी नही हो पाती है. सदस्य बताती हैं कि उन्हें महीने में एक बार जिले का निरीक्षण करने के लिए किराये पर टैक्सी मिलती है. उसके लिए भी एक लंबी प्रक्रिया होती है.



आयोग की जिम्मेदारियां

  • समय-समय पर केन्द्र सरकार का बाल अधिकार के संरक्षण संबंधी उपायों पर प्रगति आख्या भेजना.
  • बाल अधिकारों के हनन की जांच करना व मामलों में कार्यवाही की अनुशंसा करना. बाल्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारण जैसे आतंकवाद, साम्प्रदायिक हिंसा, दंगे, प्राकृतिक आपदा, घरेलू हिंसा, बाल व्यापार, दुर्व्यवहार, प्रताड़ना, शोषण, पोनोग्राफी और वैश्यावृत्ति मामलों की जांच कर समाधान के लिए उपायोग की अनुशंसा करना.
  • विशेष आवश्यकता वाले बच्चों से संबंधित मामलों में संरक्षण के साथ ही अवसाद ग्रस्त बच्चे उपेक्षित व शोषित बच्चों, बाल अपराधी, परिवार विहीन बच्चे, और कैदियों के बच्चों के लिए उचित चिकित्सा सम्बन्धी व अन्य उपायों की अनुशंसा करना.
  • विभिन्न सन्धियों एवं अनुाराष्ट्रीय अभिकरणों का अध्ययन करना एवं समय- समय पर वर्तमान नीतियों की समीक्षा करना, विभिन्न कार्यक्रमों एवं बाल अधिकारों से सम्बन्धित गतिविधियों की समीक्षा करना व बाल हित में उनके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु अनुशंसा करना.
  • बाल अधिकारों के क्षेत्र में शोध कार्यों को प्रोत्साहन करना.
  • केन्द्र सरकार और राज्य सरकार या फिर किसी एनजीओ द्वारा संचालित बाल संप्रेक्षण गृहों, बाल सुधार गृहों व बच्चों से सम्बन्धित अन्य संस्थानों, जहां पर बच्चों को इलाज सुधार और संरक्षण हेतु रखा गया है, उनका निरीक्षण करना. ऐसे मामलों में शिकायतों की जांच करना और नोटिस जारी करना.
  • बच्चों के कठोर शारीरिक दण्डों के निवारण के लिए बनायी गयी नीति निर्देशिका या ऐसा निर्देश जिनका उद्देश्य बच्चों का कल्याण व लाभ पहुंचाना है, उसका भलीभांति क्रियान्वयन न होना, ऐसे मामलों में सक्षम प्राधिकारी के साथ समाधान निकलाने समेत कई जिम्मेदारियां है.


    आयोग के अध्यक्ष बोले
    आयोग के अध्यक्ष डॉ. देवेंद्र शर्मा के मुताबिक आयोग अपनी सभी जिम्मेदारियां बखूबी निभा रहा है. सलाहकार की नियुक्तियों पर आयोग के अध्यक्ष ने बताया कि प्रक्रिया चल रही है. जल्द ही नियुक्ति कर दी जाएगी.


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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में 7 करोड़ बच्चों के अधिकार दिलाने वाला आयोग खुद के अधिकारों से वंचित है. बाल श्रम कर रहे बच्चों को रेस्क्यू करना हो या फिर भीख मांग रहे बच्चों को उनका अधिकार दिलाना. बच्चों के साथ हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ एक्शन लेना हो या फिर नाबालिग बच्चों के अधिकारों का हनन करने वालों पर कार्रवाई करना हो, उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग सक्रिय भूमिका निभाता है. ताज्जुब की बात है कि इन सब कार्यों के लिए आयोग के पास पर्याप्त साधन ही नहीं है. ऐसे में आयोग के सदस्यों को सक्रिय भूमिका निभाने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन साल 20 नवंबर 2013 में सपा सरकार में हुआ था. आयोग के गठन का उद्देश्य बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा दिलाने, बाल श्रम को रोकने, बाल अधिकारों के हनन को रोकने, आतंकवाद, साम्प्रदायिक दंगों, वैश्यावृत्ति व पोर्नोग्राफी से बचाने जैसे कई अहम मुद्दे थे. इसके लिए आयोग में 1 अध्यक्ष व 6 सदस्यों को नामित किया गया था. गठन के समय आयोग में 2 सलाहकार भी नियुक्त किए गए थे. ये बाल अधिकार से जुड़े मामलों में छापेमारी, नोटिस देने व अधिकारों को कैसे कानून के तहत संरक्षित किया जाए आदि को लेकर मदद करते थे. अब आयोग में बीते एक साल से सलाहकारों की नियुक्ति न होने पर सदस्यों को उनके कार्यों को करने में समस्या आ रही है.

आयोग की सदस्य ने बताया कि आयोग में जून 2021 तक विधि व तकनीकी सलाहकार नियुक्त थे. ये सलाहकार सदस्यों को कैसे बाल के अधिकारों को बचाया जा सके, बाल अधिकार के क्षेत्र में शोध कार्य को बढ़ावा देने के साथ साथ गलत कार्य में लगे बच्चों के रेस्क्यू के दौरान किन-किन कानूनों के तहत कार्रवाई की जा सकती है, ऐसे तमाम मुद्दों पर उनकी मदद करते थे. इससे बाल अधिकारों के लिए पर्याप्त कार्रवाई की जा सकती थी. अब ऐसा नही है. सदस्य बताते हैं कि मौजूदा समय में 6 सदस्यों में 5 ऐसे हैं जो पहली बार नामित हुए है, अधिकारियों को बाल अधिकारों का हनन न हो इसके लिए संबंधित अधिकारियों नोटिस देने से लेकर रेस्क्यू प्रोग्राम चलाने तक सदस्यों को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है. इसके लिए कभी-कभी कुछ एनजीओ की मदद तो ली जाती है लेकिन गोपनीय पत्र के लिए सलाहकार की आवश्यकता होती है. पत्र में कानूनी दांवपेंच होते है, नियमों का हवाला देना होता है. इन सब चीजों की कमी के चलते अधिकारी व आरोपी बच जाते है.

एक अन्य सदस्य बतातीं है कि आयोग करीब एक दर्जन बिंदुओं पर कार्य करता है. इसके लिए सिर्फ कार्यालय में बैठ कर ही कार्य करना मुश्किल है. बच्चों को बाल श्रम, वैश्यावृत्ति से बचाने, तस्करी की जाने वाले बच्चियों को रेस्क्यू करवाने जैसे कई कार्यों के लिए लखनऊ के अलावा अन्य जिलों में अचानक जाना पड़ता है. आयोग के सदस्यों के पास खुद के वाहन न होने के कारण वो नही जा पाते है. ऐसे में उन बच्चों को जिन्हें आयोग की जरूरत है वो पूरी नही हो पाती है. सदस्य बताती हैं कि उन्हें महीने में एक बार जिले का निरीक्षण करने के लिए किराये पर टैक्सी मिलती है. उसके लिए भी एक लंबी प्रक्रिया होती है.



आयोग की जिम्मेदारियां

  • समय-समय पर केन्द्र सरकार का बाल अधिकार के संरक्षण संबंधी उपायों पर प्रगति आख्या भेजना.
  • बाल अधिकारों के हनन की जांच करना व मामलों में कार्यवाही की अनुशंसा करना. बाल्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारण जैसे आतंकवाद, साम्प्रदायिक हिंसा, दंगे, प्राकृतिक आपदा, घरेलू हिंसा, बाल व्यापार, दुर्व्यवहार, प्रताड़ना, शोषण, पोनोग्राफी और वैश्यावृत्ति मामलों की जांच कर समाधान के लिए उपायोग की अनुशंसा करना.
  • विशेष आवश्यकता वाले बच्चों से संबंधित मामलों में संरक्षण के साथ ही अवसाद ग्रस्त बच्चे उपेक्षित व शोषित बच्चों, बाल अपराधी, परिवार विहीन बच्चे, और कैदियों के बच्चों के लिए उचित चिकित्सा सम्बन्धी व अन्य उपायों की अनुशंसा करना.
  • विभिन्न सन्धियों एवं अनुाराष्ट्रीय अभिकरणों का अध्ययन करना एवं समय- समय पर वर्तमान नीतियों की समीक्षा करना, विभिन्न कार्यक्रमों एवं बाल अधिकारों से सम्बन्धित गतिविधियों की समीक्षा करना व बाल हित में उनके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु अनुशंसा करना.
  • बाल अधिकारों के क्षेत्र में शोध कार्यों को प्रोत्साहन करना.
  • केन्द्र सरकार और राज्य सरकार या फिर किसी एनजीओ द्वारा संचालित बाल संप्रेक्षण गृहों, बाल सुधार गृहों व बच्चों से सम्बन्धित अन्य संस्थानों, जहां पर बच्चों को इलाज सुधार और संरक्षण हेतु रखा गया है, उनका निरीक्षण करना. ऐसे मामलों में शिकायतों की जांच करना और नोटिस जारी करना.
  • बच्चों के कठोर शारीरिक दण्डों के निवारण के लिए बनायी गयी नीति निर्देशिका या ऐसा निर्देश जिनका उद्देश्य बच्चों का कल्याण व लाभ पहुंचाना है, उसका भलीभांति क्रियान्वयन न होना, ऐसे मामलों में सक्षम प्राधिकारी के साथ समाधान निकलाने समेत कई जिम्मेदारियां है.


    आयोग के अध्यक्ष बोले
    आयोग के अध्यक्ष डॉ. देवेंद्र शर्मा के मुताबिक आयोग अपनी सभी जिम्मेदारियां बखूबी निभा रहा है. सलाहकार की नियुक्तियों पर आयोग के अध्यक्ष ने बताया कि प्रक्रिया चल रही है. जल्द ही नियुक्ति कर दी जाएगी.


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