लखनऊ : प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने परिवार मोह में एक ऐसा दांव खेल दिया है, जिससे खुद उनकी पार्टी के नेता ही आहत हैं. कई नेता दबी जुबान तो कुछ खुलेआम इसे प्रसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ धोखा करार दे रहे हैं. प्रसपा के कुछ नेताओं का मानना है कि समाजवादी पार्टी ने शिवपाल के साथ फिर धोखा किया है. उन्हें पचास सीटें देने का वादा किया गया था, किंतु अब सिर्फ एक सीट पर ही संतोष करना पड़ रहा है. शिवपाल यादव परिवार मोह में अपने और पार्टी कार्यकर्ताओं का मान-सम्मान भी नहीं बचा सके. शिवपाल के सामने सपा में जाने के अलावा भी कई विकल्प थे, किंतु वह यादव वोट बैंक में सेंध नहीं लगाना चाहते थे. ऐसा भी हो सकता है कि शिवपाल को इस बात का भरोसा ही न हो कि यादव सपा छोड़कर उनके साथ आएंगे. प्रसपा में शिवपाल के निकट सहयोगी रहे पूर्व मंत्री शारदा प्रताप शुक्ला लखनऊ की सरोजनी नगर सीट से टिकट के प्रबल दावेदार थे, लेकिन शिवपाल उन्हें भी टिकट नहीं दिला पाए. अब शिवपाल यादव के पास न साख बची है और न सम्मान.
पूर्व मंत्री और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शिवपाल यादव के निकट सहयोगी रहे शारदा प्रताप शुक्ला कहते हैं कि प्रसपा में अच्छा काम हुआ. शिवपाल यादव ने दो बार पूरे प्रदेश का दौरा किया. पार्टी का संगठन खड़ा किया. रथयात्रा की. शिवपाल को लगता था कि यदि परिवार एक हो जाए तो अच्छी बात है. समझौते के वक्त शिवपाल यादव ने अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव को 50 सीटों पर अपने दावेदारों की सूची सौंपी थी, जिसे मुलायम सिंह यादव ने खुद देखा और चालीस सीटें पर टिक लगाकर फाइनल कीं, जिसमें मेरा भी नाम था. वह कहते हैं अब प्रसपा का पूरा संगठन छिन्न-भिन्न हो गया है. पार्टी की वरिष्ठ नेता शादाब फातिमा जहूराबाद से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं. वह कहते हैं कि अब शिवपाल तो अपने घर लोट गए हैं. बाकी उनके समर्थक जंगल में घूम रहे हैं.
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष फरहत कहते हैं कि इस चुनाव में उनकी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को सपा के लोग कहीं भी नहीं पूछ रहे हैं. इसके बावजूद प्रसपा के लोगों और शिवपाल यादव ने कुर्बानी दी है. वह कहते हैं कि यदि प्रदेश की सत्ता से भाजपा हट जाए तो वह अपनी कुर्बानी को सफल मान लेंगे. आगे जो भी होगा शिवपाल यादव उस पर फैसला लेंगे. वहीं, प्रसपा के एक अन्य नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि शिवपाल यादव के साथ एक बड़ी साजिश की गई है. 2017 के अपमान का बदला 2022 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ने समाप्त करा दिया. 2017 में अपमानित होने के बाद भी शिवपाल सिंह यादव ने बड़ा दिल दिखाया और अपने भजीते अखिलेश यादव को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने व प्रदेश के विकास के लिए बिना शर्त सपा को समर्थन देने के लिए तैयार हो गए. वह कहते हैं कि पूरे प्रदेश में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेताओं को सपा के नेता पूछ नहीं रहे हैं. प्रसपा के नेताओं का भविष्य अंधकार में है. किसी को कुछ पता नहीं है कि अब उनका भविष्य क्या होगा.
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इस विषय में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि शिवपाल यादव के राजनीतिक जीवन को दो हिस्सों में बांटकर देखा जा सकता है. एक वह जब उन्होंने मुलायम सिंह यादव के भाई के रूप में उनके सहायक बने और सत्ता मिलने पर मंत्री बने. दूसरी पारी तब शुरू हुई जब वह सपा से अलग हुए और नई पार्टी बनाई. शिवपाल ने अपनी पार्टी के लिए पांच साल बड़ी मेहनत की. संगठन बनाया और चुनाव आने पर सपा से समझौता कर लिया.
ऐसा लगता है कि शिवपाल यादव ने अपनी एक सीट के लिए पूरी की पूरी पार्टी को न्यौछावर कर दिया है. यदि वह अपनी सीट जीत भी जाते हैं, तो देखना होगा कि उन्होंने इसकी कीमत क्या चुकाई है. पांच साल में संगठन खड़ा कर तमाम लोगों को अपने दल से जोड़ा और खुद ही इस पर पानी फेर दिया. राजनीति में लाभ-हानि हुआ करता है, लेकिन शिवपाल सिंह ने केवल घाटे का सौदा नहीं किया है, बल्कि यह फैसला उन्होंने अपने स्वाभिमान और सम्मान की कीमत पर किया है. वह अपने बेटे तक को टिकट देने में कामयाब नहीं हो सके हैं. आगे भी सपा में रहकर अखिलेश के नेतृत्व में उन्हें सम्मान मिलेगा, इस बात की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. अब देखना होगा कि वह इस स्थिति को कब तक के लिए स्वीकार करते हैं.
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