लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ अपने नवाबी दौर में बनी इमारतों के लिए दुनियाभर में अलग पहचान रखती है. देश-विदेश से पर्यटक यहां ऐतिहासिक धरोहरों को निहारने बड़े पैमाने पर आते हैं. राजधानी का दिल कहे जाने वाले हजरतगंज में स्तिथ 'शाहनजफ इमामबाड़ा' अवध के पहले बादशाह गाजीउद्दीन हैदर ने हजरत अली के रोजे (कब्र) की शक्ल में सन 1814 में बनवाया था. गाजीउद्दीन के निधन के बाद उनको इसी इमामबाड़े में दफन किया गया था. बेहतरीन नक्काशी और गुम्बद वाला यह इमामबाड़ा अब बदहाली का शिकार हो रहा है, जिससे यहां आने वाले पर्यटक और नवाबीन-ए-अवध मायूस हैं.
गोमती तट पर स्तिथ है 'शाहनजफ इमामबाड़ा'
राजधानी लखनऊ में नवाबी दौर में कई इमामबाड़े बने. हजरतगंज में बने शाहनजफ इमामबाड़े को बादशाह गाजीउद्दीन हैदर ने इराक के नजफ स्तिथ हजरत अली के रोजे (कब्र) के हुबहू रूप में बनवाया था. सन 1814 में बने शाहनजफ इमामबाड़े को गोमती नदी के तट पर बनाया गया था. इसका मुख्य द्वार किसी जमाने में नदी की ओर हुआ करता था. हालांकि अब इसका मुख्य द्वार सड़क की ओर कर दिया गया है. इस भव्य इमारत में बीचों-बीच सफेद गुम्बद है, जो चारों ओर से एक दीवार से घिरा हुआ है.
200 वर्षों पुराने झूमर आज भी हैं मौजूद
लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहर 'शाहनजफ इमामबाड़ा' शहर के दिल कहे जाने वाले हजरतगंज में स्तिथ है. शाहनजफ इमामबाड़े में 200 वर्षों से पुराने झाड़फानूस और कण्डलिस आज भी मौजूद हैं, जिनकी खूबसूरती इस इमारत को शाम को और भी रोशन करती है. शाहनजफ इमामबाड़ा पर्यटन स्थल के साथ ही धार्मिक स्थल भी है, जहां शिया मुसलमान जियारत करने आते हैं.
दीवारों का टूट रहा प्लास्टर, फर्श भी उखड़ने लगा
शाहनजफ इमामबाड़ा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की संरक्षित इमारत है. वहीं हुसैनाबाद ट्रस्ट को इसकी देख-रेख का जिम्मा मिला है, लेकिन शाहनजफ इमामबाड़े के मुख्य द्वार से लेकर गुम्बद और दीवारों से प्लास्टर तक अब टूट कर गिर रहे हैं, जिसको कोई पूछने वाला नहीं है. इमामबाड़े के फर्श में लगा मार्बल भी जगह-जगह से चिटक गया है और टूटने लगा है. यहां आने वाले पर्यटकों ने इस ऐतिहासिक इमारत की बदहाली पर चिंता व्यक्त की और जिम्मेदारों से इस ओर ध्यान देने की अपील की.
शादी की बुकिंग के लिए दिया जा रहा इमामबाड़े का लॉन
शाहनजफ इमामबाड़े में स्तिथ लॉन शादी समारोह के लिए बुक कर हुसैनाबाद ट्रस्ट मोटी कमाई कर रहा है और यह ऐतिहासिक धरोहर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. शाहनजफ इमामबाड़े के रखरखाव का अभाव है. कोरोना काल से पहले शुरू हुई मुख्य गुम्बद की मरम्मत का काम महीनों गुजर जाने के बाद आज भी बंद पड़ा है. इस ऐतिहासिक इमारत की मरम्मत तो दूर रंगाई और पुताई का भी काम नहीं हो रहा है. जानकारों की मानें तो एक शादी की बुकिंग के लिए ट्रस्ट 50 हजार रुपये तक लेता है, लेकिन जर्जर होती इमारत की ओर किसी का ध्यान नहीं है.