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उफ! ये गर्मी, आसमान से बरस रहे शोले, मार्च में क्यों बिगड़ा मौसम का मूड? - ग्लोबल वॉर्मिंग भीषण गर्मी

चिलचिलाती धूप और भीषण गर्मी से अबकी बार फरवरी महीने के अंत से ही गर्मी जैसा एहसास शुरू हो गया था. बीरबल साहनी पुनर्विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों का दावा है कि मार्च में पड़ रही मई-जून जैसी गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे अहम किरदार निभा रहा है. बीरबल साहनी संस्थान के वैज्ञानिकों का दावा Climate change के कारण भीषण गर्मी पड़ रही है.

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ये गर्मी और चिलचिलाती धूप
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Published : Mar 26, 2022, 1:27 PM IST

Updated : Mar 26, 2022, 2:50 PM IST

लखनऊ: चिलचिलाती धूप और भीषण गर्मी से अबकी बार फरवरी महीने के अंत से ही गर्मी जैसा एहसास शुरू हो गया था. भीषण गर्मी और तपन से लोगों का बुरा हाल है. बीरबल साहनी पुनर्विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों का दावा है कि मार्च में पड़ रही मई-जून जैसी गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे अहम किरदार निभा रहा है. राजधानी के लोगों का कहना है कि इस समय बहुत चटक धूप हो रही है. चिलचिलाती धूप के कारण घर के बाहर निकलने में हालत गंभीर हो जा रही है. वहीं कुछ महिलाओं ने कहा कि मार्च के महीने में इतनी ज्यादा गर्मी है तो मई जून के महीने में तो और भी ज्यादा स्थिति चिंताजनक रहेगी.

वैज्ञानिक स्वाति सिंह ने बताया कि विश्व के विकसित एवं ताकतवर देश जलवायु परिवर्तन से चिंतित हैं. जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर पेरिस समझौते को लागू करने पर विशेष जोर देना चाहिए. पवन ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा को बढ़ावा के साथ ही धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए विश्व के देशों को एक होना चाहिए. उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियां बढ़ रही हैं. भीषण गर्मी और कड़ाके की सर्दी इसका ही प्रभाव है. इससे बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. जलवायु परिवर्तन के साथ ही स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहना अति आवश्यक है.

यह भी पढ़ें- सिंगल पिलर पर बन रहा मुरादनगर रैपिड रेलवे स्टेशन, जानिए क्या होंगी सुविधाएं

पर्यावरण विशेषज्ञ वीपी श्रीवास्तव ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन पर्यावरण विनाश और जलवायु संकट का कारण बना है. पृथ्वी का बढ़ता तापमान मानव के लिए संकट पैदा कर रहा है. जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों का कारण बना है. वैश्विक प्रतिबद्धता व सामूहिक प्रयासों से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों व पर्यावरण प्रदूषण को रोक पाना संभव हो सकेगा. प्रकृति के अनुकूल आचरण-व्यवहार ही आपदाओं से बचा सकेगा.

उन्होंने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस हैं. ग्रीन हाउस गैसें, वे गैसें होती हैं जो बाहर से मिल रही गर्मी या ऊष्मा को अपने अंदर सोख लेती हैं. ग्रीन हाउस गैसों का इस्तेमाल अत्यधिक सर्द इलाकों में उन पौधों को गर्म रखने के लिये किया जाता है जो अत्यधिक सर्द मौसम में खराब हो जाते हैं.

ऐसे में इन पौधों को कांच के एक बंद घर में रखा जाता है और कांच के घर में ग्रीन हाउस गैस भर दी जाती है. यह गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी सोख लेती है और पौधों को गर्म रखती है. ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है. सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है. इस प्रक्रिया में हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैसों का महत्त्वपूर्ण योगदान है.

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लखनऊ: चिलचिलाती धूप और भीषण गर्मी से अबकी बार फरवरी महीने के अंत से ही गर्मी जैसा एहसास शुरू हो गया था. भीषण गर्मी और तपन से लोगों का बुरा हाल है. बीरबल साहनी पुनर्विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों का दावा है कि मार्च में पड़ रही मई-जून जैसी गर्मी के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे अहम किरदार निभा रहा है. राजधानी के लोगों का कहना है कि इस समय बहुत चटक धूप हो रही है. चिलचिलाती धूप के कारण घर के बाहर निकलने में हालत गंभीर हो जा रही है. वहीं कुछ महिलाओं ने कहा कि मार्च के महीने में इतनी ज्यादा गर्मी है तो मई जून के महीने में तो और भी ज्यादा स्थिति चिंताजनक रहेगी.

वैज्ञानिक स्वाति सिंह ने बताया कि विश्व के विकसित एवं ताकतवर देश जलवायु परिवर्तन से चिंतित हैं. जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को लेकर पेरिस समझौते को लागू करने पर विशेष जोर देना चाहिए. पवन ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा को बढ़ावा के साथ ही धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के लिए विश्व के देशों को एक होना चाहिए. उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियां बढ़ रही हैं. भीषण गर्मी और कड़ाके की सर्दी इसका ही प्रभाव है. इससे बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. जलवायु परिवर्तन के साथ ही स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहना अति आवश्यक है.

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पर्यावरण विशेषज्ञ वीपी श्रीवास्तव ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन पर्यावरण विनाश और जलवायु संकट का कारण बना है. पृथ्वी का बढ़ता तापमान मानव के लिए संकट पैदा कर रहा है. जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों का कारण बना है. वैश्विक प्रतिबद्धता व सामूहिक प्रयासों से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों व पर्यावरण प्रदूषण को रोक पाना संभव हो सकेगा. प्रकृति के अनुकूल आचरण-व्यवहार ही आपदाओं से बचा सकेगा.

उन्होंने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस हैं. ग्रीन हाउस गैसें, वे गैसें होती हैं जो बाहर से मिल रही गर्मी या ऊष्मा को अपने अंदर सोख लेती हैं. ग्रीन हाउस गैसों का इस्तेमाल अत्यधिक सर्द इलाकों में उन पौधों को गर्म रखने के लिये किया जाता है जो अत्यधिक सर्द मौसम में खराब हो जाते हैं.

ऐसे में इन पौधों को कांच के एक बंद घर में रखा जाता है और कांच के घर में ग्रीन हाउस गैस भर दी जाती है. यह गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी सोख लेती है और पौधों को गर्म रखती है. ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है. सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है. इस प्रक्रिया में हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैसों का महत्त्वपूर्ण योगदान है.

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Last Updated : Mar 26, 2022, 2:50 PM IST
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