लखनऊ: प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सफाई के नाम पर करोड़ों का खेल हो रहा है. स्मार्ट सिटी बनाने के नाम पर जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी की जा रही है. आलम यह है कि प्रदेश की यह स्मार्ट सिटी कूड़े के ढेर में तब्दील हो गई है. ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है. उत्तर प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास के 2 से 3 किलोमीटर के दायरे में ही कूड़े के ढेर नजर आ जाएंगे. यह हाल तब है, जबकि प्रदेश सरकार लखनऊ को स्मार्ट सिटी बनाने के दावे कर रही है.
यह है हालात
1. माल एवेन्यू पुल के नीचे बनाया डंपिंग यार्ड
लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास से चंद कदम दूर माल एवेन्यू पुल के नीचे नगर निगम ने कूड़े का डंपिंग यार्ड बना दिया है. यह शहर के पॉश इलाकों में से है. कई बड़े-बड़े दफ्तर यहां चल रहे हैं. हालत यह है कि पुल के नीचे से निकलना मुश्किल है. सुबह से यहां कूड़े की गाड़ियां कचरा पलट कर चली जाती हैं. दिन भर यहां मवेशी नजर आते हैं. कूड़े के कारण लोगों का हाल बेहाल है. इतना पॉश इलाका होने के बावजूद नगर निगम के अधिकारी और कर्मचारी आंखों पर पट्टी बांधे बैठे हैं.
2. नरही में सरस्वती बालिका विद्यालय के बाहर
नरही में सरस्वती बालिका विद्यालय के बाहर नगर निगम की तरफ से एक कूड़ा दान रखा गया है. यहां से भी कर्मचारी नियमित रूप से कूड़ा नहीं उठा रहे हैं. हालत यह है कि मवेशी स्कूलों को सड़क पर फैला देते हैं. आसपास के लोगों का निकलना मुश्किल हो गया. कई बार तो स्कूलों में खाने की तलाश करने वाले मवेशी आपस में लड़ जाते हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि इसके चलते कई हादसे हो चुके हैं.
3. मुख्यमंत्री आवास से चंद कदमों की दूरी पर पुराना किला इलाका है. क्षेत्र में जगह-जगह कूड़े के ढेर साफ नजर आते हैं. स्थानीय लोगों ने बताया कि कई बार नगर निगम के सफाई कर्मियों से लेकर स्थानीय अधिकारियों को भी सूचना दी गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.
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सड़कों पर बिखरा है कूड़ा
यह तीनों मामले सिर्फ बानगी भर है. लखनऊ के पॉश इलाकों का अगर यह हाल है तो बाकी शहर का अंदाजा आप लगा सकते हैं. महात्मा गांधी वार्ड के पार्षद अमित कुमार चौधरी कहते हैं कि निजी संस्था इको ग्रीन को सफाई की जिम्मेदारी देने के पीछे सरकार की मंशा थी कि निजी संस्था काम अच्छा करती है. लेकिन, अगर इस निजी संस्था ने अच्छा काम किया होता तो शहर की सड़कों पर पूरा नजर नहीं आता. असल में, यह पूरी तरह से मनमानी कर रहे हैं. निजी संस्था की असली कमाई कॉमर्शियल संस्थानों से होती है. इसलिए यह घरों से कूड़ा लेने में रुचि ही नहीं दिखा रहे हैं. नतीजा है कि मजबूरन आदमी घर का कूड़ा निकाल कर बाहर फेंक रहा.
70 से 80 करोड़ रुपए सिर्फ सफाई के नाम पर
लखनऊ नगर निगम की कमाई का एक बड़ा हिस्सा शहर की सफाई के नाम पर खर्च किया जाता है. वर्ष 2020 के बजट के आंकड़ों के मुताबिक करीब 70 करोड़ रुपए का प्रावधान ठेका सफाई के नाम पर किया गया. इतने मोटे बजट के बावजूद शहर की गंदी सड़कें नगर निगम के अधिकारियों और जिम्मेदारों पर सवाल खड़े कर रही हैं.