लखनऊ : लोकसभा चुनाव वर्ष 2024 को देखते हुए राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर ली है और वह अभी से बिसात बिछाने लगे हैं. उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने भी लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस ली है. सपा भारतीय जनता पार्टी को ही अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मान रही है और रणनीति बना रही है कि किस तरह उसे घेरा जाए. अखिलेश यादव जानते हैं कि भाजपा को तब तक केंद्र की सत्ता से दूर नहीं किया जा सकता जब तक कि विपक्ष में कोई मजबूत दावेदार और नेतृत्वकर्ता दिखाई न दे. इसीलिए वह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ मोर्चा बनाने में जुट गए हैं.
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव द्वारा खम्मन में आयोजित की गई रैली में जिस तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, केरल के सीएम पिनराई विजयन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, सीपीआई के नेता डी. राजा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित तमाम नेता जुटे वह यूं ही और अचानक नहीं था. कई राज्यों के क्षेत्रीय दल एक गैर भाजपा और गैर कांग्रेस तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास कर रहे हैं. स्वाभाविक है कि सबसे ज्यादा अस्सी लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल के नेता अखिलेश यादव इस मोर्चे में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले हैं. अंदर खाने में और नेताओं को इसमें जोड़ने की कोशिशें जारी हैं. अखिलेश यादव चाहते हैं कि भाजपा को चारों ओर से हर राज्य में घेरकर एक चुनौती पूर्ण स्थिति खड़ी की जाए. यदि भाजपा के खिलाफ कोई माहौल बनता है तो उत्तर प्रदेश में भी उन्हें इसका लाभ मिलेगा. दूसरी और अहम बात है कि आम आदमी पार्टी जैसे कई दल कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी रखने के हामी हैं. यही कारण है कि ऐसी सोच वाले दल ही खम्मन में केसीआर की रैली में दिखाई दिए. इस जमघट से एक बात तो साफ हो गई कि आगामी एक दो माह में भाजपा के खिलाफ विपक्षी की तैयारियों को और धार मिलने वाली है.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर संजय गुप्ता कहते हैं कि अखिलेश यादव व अन्य विपक्षी दलों ने अभी जो तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश शुरू की है, जिसमें अखिलेश के साथ केसीआर और अरविंद केजरीवाल सहित अन्य नेता भी होंगे. यह पहल लोकतंत्र में बहुत स्वाभाविक है. चूंकि एक साल बाद ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इसलिए यह जो प्रयास किया है विपक्षी दलों का वह यह बताता है कि अगला चुनाव भाजपा बनाम गैर भाजपा वाले दलों के नाम पर ही होगा. जैसे कभी कांग्रेस बनाम गैर कांग्रेस दल मिलकर पहले लड़ते थे चुनाव.'प्रोफेसर गुप्ता कहते हैं' इस पहल को बहुत सार्थक मानना चाहिए और यह पहल बहुत समय से की गई है, क्योंकि अभी एक साल बचा हुआ है. एक साल में बहुत कुछ इसमें डेवलपमेंट हो सकते हैं. यदि हम याद करें तो पहले भी इस प्रकार के प्रयास किए गए हैं. धीरे-धीरे इसमें अन्य राजनीतिक दल भी जुड़ेंगे. हालांकि अभी कई विपक्षी दलों का साथ आना बाकी है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, वैसे-वैसे यह लोग गठबंधन में शामिल होंगे.
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर संजय गुप्ता बताते हैं 'अभी देश में जो विपक्षी दल हैं, वह अपने राज्यों में तो सक्रिय हैं, लेकिन केंद्र की राजनीति अथवा लोकसभा चुनावों में वह कितना प्रभावशाली हो पाएंगे कहना कठिन है. यदि यह दल अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं, तो इनकी सफलता पर सभी को संशय है. इसीलिए विपक्षी दलों द्वारा यह प्रयास किया जा रहा है कि चलिए एक कॉमन और नया फ्रंट बनाया जाए. इसमें नए-नए मुद्दे शामिल होंगे. पिछले पांच साल के सरकार के जो कामकाज हैं और असफलताएं रही हैं, उसी को आधार बनाकर यह मोर्चा मैदान में जाएगा. हाल ही में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव का साथ में आना बहुत बड़ा फैक्टर है. लोक सभा सीटों में मामले में उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है. यहां अस्सी लोक सभा की सीटें हैं. इसलिए उत्तर प्रदेश में जीतने वाले दल को केंद्र की सत्ता में पहुंचने का रास्ता आसान हो जाता है. इसलिए सभी दलों की इच्छा होती है कि वह उत्तर प्रदेश पर फोकस करें और ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब हों.