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सम्मेलनों के सहारे क्या 22 में साइकिल चला पाएगी सपा? - भारतीय जनता पार्टी

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) में सत्ता पर काबिज होने के लिए समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) भी सम्मेलनों का सहारा ले रहे है. आइये जानते हैं क्या सम्मेलनों से सपा की नैया पार हो पाएगी?

समाजवादी पार्टी भी ले रही सम्मेलनों का सहारा.
समाजवादी पार्टी भी ले रही सम्मेलनों का सहारा.
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Published : Aug 15, 2021, 6:44 PM IST

लखनऊः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) में किला फतह करने के लिए समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) भी लगातार सम्मेलन कर रही है. सपा सम्मेलनों के सहारे ही सभी जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने का प्रयास कर रही है. वर्तमान में समाजवादी पार्टी का प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन, पिछड़ा वर्ग सम्मेलन और आदिवासी सम्मेलन के जरिए अपना वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश कर रही है. सपा प्रबुद्ध वर्ग के सहारे ब्राह्मणों के साथ क्षत्रिय को भी साधने की कोशिश कर रही हैं. वहीं, पिछड़ा वर्ग सम्मेलन के सहारे पिछड़ी जातियों को एकजुट करने की कोशिश है तो आदिवासी सम्मेलन से हाशिए पर रहने वाले आदिवासी समाज को भी पार्टी अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है. समाजवादी पार्टी को उम्मीद है कि सम्मेलन के जरिए सभी जाति और वर्ग समाजवादी पार्टी की उम्मीदों की साइकिल दौड़ाने में सहायक होंगे.

समाजवादी पार्टी भी ले रही सम्मेलनों का सहारा.
सम्मेलनों से सभी जातियों के जुड़ने की उम्मीद
चुनाव नजदीक आते ही अखिलेश यादव ने विभिन्न जाति, वर्गों को आकर्षित करने के लिए सम्मेलन कर रहे हैं. इसके साथ ही छोटे दलों के नेताओं को अपने साथ लाने की कवायद में भी जुटे हैं. इतना ही नहीं ब्राह्मण कार्ड खेलने के लिए स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र की जयंती पर अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं के साथ सड़क पर उतरकर साइकिल की सवारी भी की. ब्राह्मणों को लुभाने के लिए अखिलेश यादव ने प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलनों को आयोजित करने का ग्रीन सिग्नल दिया. भगवान परशुराम की मूर्तियां लगवाने के लिए भी नेताओं को निर्देशित कर दिया. पिछड़ा वर्ग सम्मेलन आयोजित करने की कमान पार्टी के एमएलसी और सपा सरकार में मंत्री रहे राजपाल कश्यप को थमा दी है. वहीं, पिछड़ा वर्ग सम्मेलन भी विभिन्न जिलों में चल रहे हैं. इसके अलावा आदिवासी सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है. इसके बाद शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षक सम्मेलन भी आयोजित करने की योजना है. कुल मिलाकर इन सम्मेलनों के जरिए सभी जातियों को अपने साथ लाने की कोशिश है.
अखिलेश ने सोच-समझकर सौंपी कमान
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने इन सम्मेलनों की कमान सोच समझकर ऐसे नेताओं को सौंपी है जो जनता पर अपना जादू बिखेर सकें. प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की कमान सपा सरकार में मंत्री रहे अभिषेक मिश्रा, पूर्व मंत्री मनोज पांडेय सनातन पांडेय, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय और पवन पांडेय को सौंपी है. इन्हीं नेताओं को प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर भगवान परशुराम की मूर्तियां भी लगवाने का जिम्मा सौंपा गया है. वहीं, पिछड़ा वर्ग सम्मेलन की जिम्मेदारी पार्टी ने सरकार में मंत्री रहे और वर्तमान एमएलसी राजपाल कश्यप को कमान सौंपी है. पिछड़ा वर्ग पर राजपाल कश्यप की पकड़ है, ऐसे में पार्टी को लग रहा है कि राजपाल पिछड़ा वर्ग को पार्टी के साथ जोड़कर चुनाव में सपा के लिए खेवनहार साबित होंगे.

जातिगत आंकड़ों पर नजर
यूपी में तकरीबन 12 फीसद ब्राह्मण वोटर हैं. ये फ्लोटिंग वोट जिस पार्टी के साथ जुड़ जाते हैं उसको यूपी की गद्दी मिल जाती है, इसीलिए सपा को प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन से काफी उम्मीदें हैं. वहीं, पिछड़ा वर्ग तो प्रदेश में सबसे बड़ा वर्ग यही है, जिस पर सपा की नजर है. तकरीबन 53 फीसद पिछड़ा वर्ग वोटर उत्तर प्रदेश में है, इसलिए पिछड़ा वर्ग सम्मेलन भी सपा के लिए उम्मीदों वाला साबित हो सकता है. प्रदेश में करीब 23 फीसद दलित भी उत्तर प्रदेश में अहम भूमिका निभाते हैं. दलितों का वोट मिलने की सपा को काफी कम उम्मीद है, क्योंकि इसपर बहुजन समाज पार्टी का प्रभुत्व स्थापित है. इसीलिए पार्टी ने अब तक कोई दलित सम्मेलन आयोजित नहीं किया है. आदिवासी सम्मेलन आयोजित कर पार्टी को उम्मीद है कि आदिवासी समाजवादी पार्टी के साथ खड़े हो सकते हैं. सपा को झटके दे सकते हैं अन्य पार्टियों के सम्मेलन बता दें कि सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी ने ही साल 2007 की तरह प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन आयोजित करने का फैसला ले लिया और सतीश चंद्र मिश्रा को पूरे प्रदेश में सम्मेलन आयोजित करने की जिम्मेदारी दी गई है. वे जोर-शोर से इसे निभा भी रहे हैं. उधर कांग्रेस पार्टी भी लगातार पिछड़ा वर्ग और दलित सम्मेलन आयोजित कर रही है. हालांकि प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन से कांग्रेस ने दूरी बना रखी है. पिछड़ा वर्ग के सम्मेलन आयोजित कर कांग्रेस की भी नजर पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर है और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी पिछड़ा वर्ग से ही ताल्लुक रखते हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी के लिए अन्य पार्टियों के सम्मेलन झटके भी दे सकते हैं.

सपा की चाल को जनता समझ चुकीः भाजपा
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता आनंद दुबे कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के जो पिछले कुकर्म हैं और जिस तरह का समाजवादी का नारा देकर समर्थन हासिल किया था, लेकिन जब वह सत्ता में आई तो एक जाति और धर्म के नाम पर और फिर जाति और धर्म से हटकर सैफई कुनबे के लिए काम किया. यह जनता नहीं भूली है. किस तरह से नौकरियों और ठेके पट्टों में, ट्रांसफर पोस्टिंग में एक जाति विशेष को महत्व दिया जाता था. उत्तर प्रदेश की जनता भूल नहीं सकती है. समाजवादी पार्टी कोई भी सम्मेलन करे जनता उनका चाल, चेहरा चरित्र समझ चुकी है. आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी जनता की पहली पसंद होगी. समाजवादी पार्टी के तमाम सम्मेलनों को जनता खारिज कर देगी.

इसे भी पढ़ें-साइकिल यात्रा के बहाने अखिलेश ने दिखाई ताकत, लोहिया पथ पर उमड़ा जन सैलाब


सपा का सम्मेलन सीजनल पॉलिटिक्सः कांग्रेस
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता कृष्णकांत पांडेय कहते हैं कि जब देश आजाद हुआ था उस समय जब पिछड़ों की कोई बात नहीं करता था. तब भी हमने चंद्रजीत यादव और चंदूलाल चंद्राकर जैसे तमाम पिछड़े नेताओं को आगे बढ़ाने का काम किया. जिन राज्यों में केवल सवर्णों को ही महत्व दिया जाता था. उड़ीसा जैसा राज्य वहां भी हमने दलित, पिछड़ा, आदिवासी को महत्व दिया. राजस्थान जैसे राज्य में जहां कोई सोच नहीं सकता था, वहां मोहनलाल सुखाडिया, जगन्नाथ पहाड़िया तमाम चेहरों को आगे बढ़ाया. कांग्रेस पार्टी से चाहे कोई पिछड़े, दलित आदिवासी की बात करे तो जनता सब जानती है. अब इस समय यह सब सम्मेलन आयोजित कराकर सीजनल पॉलिटिक्स कर रहे हैं.

प्रसपा जातीय सम्मेलनों के खिलाफः दीपक मिश्रा
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता दीपक मिश्रा कहते हैं कि प्रसपा भारतीय संविधान में आस्था रखती है. किसी भी प्रकार के जातीय सम्मेलनों के खिलाफ है. राष्ट्रीय महासचिव आदित्य यादव ने राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव की सहमति से घोषणा की थी कि हम इस प्रदेश को जातीय कबीलों में बांटने के सख्त खिलाफ हैं. हम नहीं चाहते देश दोबारा मध्यकालीन युग में जाए. संविधान ऐसे जातीय सम्मेलन करने की इजाजत नहीं देता. देश एक बार संप्रदायिक बंटवारे का दंश झेल चुका है दूसरा दंश झेलने की स्थिति में नहीं है. सम्मेलन करना है तो किसानों की समस्या पर सम्मेलन करिए, बेरोजगारी पर सम्मेलन करिए, गरीबों की समस्या पर करिए, सरकार को जगाने के लिए सम्मेलन करिए. यह मध्य युगीन सोच क्या इस देश को वैश्विक फलक पर स्थापित कर पाएगी?

यूपी में अखिलेश यादव की आंधी चल रहीः सपा
समाजवादी पार्टी युवजन सभा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष विकास यादव कहते हैं कि इस समय उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की आंधी चल रही है. भाजपा ने जनता को भ्रमित कर दिया था, लेकिन अब जनता को अखिलेश यादव के कराए गए काम याद आ रहे हैं. जनता इस बार उन्हें मुख्यमंत्री बनाने को पूरी तरह तैयार है. अखिलेश यादव ने जब साइकिल चलाई तो प्रदेश भर में लाखों युवा उनके साथ साइकिल लेकर निकल पड़े. अब यह तय है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार ही बनेगी. जहां तक बात सम्मेलनों की है तो सम्मेलन में भी लोग अखिलेश यादव की उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने को तैयार हैं.

सम्मेलन में प्रबुद्ध वर्ग के ही लोग आते हैंः राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है सम्मेलन में प्रबुद्ध वर्ग के ही लोग आते हैं. उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी मूल रूप से जो सामाजिक न्याय की सबसे बड़ी लंबरदार रही है. जो लोहिया की ऑडियोलॉजी थी, जो सिद्धांत थे, उसे लेकर राजनीति की. मंडल आयोग लागू होने के बाद से समाजवादी पार्टी में एक नए तरीके की पॉलिटिक्स की, जिसमें ओबीसी के साथ मुस्लिम एलायंस भी था. लोहिया की पार्टी थी संसोपा, उसने नारा दिया था कि संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पाए 100 में साठ. अब पिछड़ों की राजनीति एक अलग दौर में आ गई है. पिछड़ों में अति पिछड़ों की बात हो रही है. अभी जब राज्यों को पिछड़ा वर्ग आयोग की तरफ सेयह अधिकार मिल गया है कि अति पिछड़ों को पिछड़े वर्ग में शामिल कर सकते हैं, तो उससे एक नई दुविधा भी पैदा हो गई है. क्योंकि जब आप किसी को जोड़ेंगे तो कोई नाराज होगा. प्रबुद्ध सम्मेलन में अपर कास्ट को फोकस किया जा रहा है. उसका नाम नहीं लिया जा रहा है, इसलिए उसे प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कहा जा रहा है. राजनीतिक दलों को हर वर्ग का वोट चाहिए, वह इसीलिए अलग-अलग तरह के सम्मेलन कर रहे हैं और यह जताने की कोशिश करते हैं कि हम आपके लिए ही बेहतर करेंगे. यह हर वर्ग को संतुष्ट करने की चुनाव के पहले एक कोशिश होती है. उन्होंने कहा कि 2007 के बाद उत्तर प्रदेश में जाति आधारित समीकरणों की राजनीति खत्म हो चुकी है. सिर्फ औपचारिकता रह गई है, वही सभी दल निभा रहे हैं.

लखनऊः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) में किला फतह करने के लिए समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) भी लगातार सम्मेलन कर रही है. सपा सम्मेलनों के सहारे ही सभी जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने का प्रयास कर रही है. वर्तमान में समाजवादी पार्टी का प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन, पिछड़ा वर्ग सम्मेलन और आदिवासी सम्मेलन के जरिए अपना वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश कर रही है. सपा प्रबुद्ध वर्ग के सहारे ब्राह्मणों के साथ क्षत्रिय को भी साधने की कोशिश कर रही हैं. वहीं, पिछड़ा वर्ग सम्मेलन के सहारे पिछड़ी जातियों को एकजुट करने की कोशिश है तो आदिवासी सम्मेलन से हाशिए पर रहने वाले आदिवासी समाज को भी पार्टी अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है. समाजवादी पार्टी को उम्मीद है कि सम्मेलन के जरिए सभी जाति और वर्ग समाजवादी पार्टी की उम्मीदों की साइकिल दौड़ाने में सहायक होंगे.

समाजवादी पार्टी भी ले रही सम्मेलनों का सहारा.
सम्मेलनों से सभी जातियों के जुड़ने की उम्मीद
चुनाव नजदीक आते ही अखिलेश यादव ने विभिन्न जाति, वर्गों को आकर्षित करने के लिए सम्मेलन कर रहे हैं. इसके साथ ही छोटे दलों के नेताओं को अपने साथ लाने की कवायद में भी जुटे हैं. इतना ही नहीं ब्राह्मण कार्ड खेलने के लिए स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र की जयंती पर अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं के साथ सड़क पर उतरकर साइकिल की सवारी भी की. ब्राह्मणों को लुभाने के लिए अखिलेश यादव ने प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलनों को आयोजित करने का ग्रीन सिग्नल दिया. भगवान परशुराम की मूर्तियां लगवाने के लिए भी नेताओं को निर्देशित कर दिया. पिछड़ा वर्ग सम्मेलन आयोजित करने की कमान पार्टी के एमएलसी और सपा सरकार में मंत्री रहे राजपाल कश्यप को थमा दी है. वहीं, पिछड़ा वर्ग सम्मेलन भी विभिन्न जिलों में चल रहे हैं. इसके अलावा आदिवासी सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है. इसके बाद शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षक सम्मेलन भी आयोजित करने की योजना है. कुल मिलाकर इन सम्मेलनों के जरिए सभी जातियों को अपने साथ लाने की कोशिश है.
अखिलेश ने सोच-समझकर सौंपी कमान
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने इन सम्मेलनों की कमान सोच समझकर ऐसे नेताओं को सौंपी है जो जनता पर अपना जादू बिखेर सकें. प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की कमान सपा सरकार में मंत्री रहे अभिषेक मिश्रा, पूर्व मंत्री मनोज पांडेय सनातन पांडेय, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय और पवन पांडेय को सौंपी है. इन्हीं नेताओं को प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर भगवान परशुराम की मूर्तियां भी लगवाने का जिम्मा सौंपा गया है. वहीं, पिछड़ा वर्ग सम्मेलन की जिम्मेदारी पार्टी ने सरकार में मंत्री रहे और वर्तमान एमएलसी राजपाल कश्यप को कमान सौंपी है. पिछड़ा वर्ग पर राजपाल कश्यप की पकड़ है, ऐसे में पार्टी को लग रहा है कि राजपाल पिछड़ा वर्ग को पार्टी के साथ जोड़कर चुनाव में सपा के लिए खेवनहार साबित होंगे.

जातिगत आंकड़ों पर नजर
यूपी में तकरीबन 12 फीसद ब्राह्मण वोटर हैं. ये फ्लोटिंग वोट जिस पार्टी के साथ जुड़ जाते हैं उसको यूपी की गद्दी मिल जाती है, इसीलिए सपा को प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन से काफी उम्मीदें हैं. वहीं, पिछड़ा वर्ग तो प्रदेश में सबसे बड़ा वर्ग यही है, जिस पर सपा की नजर है. तकरीबन 53 फीसद पिछड़ा वर्ग वोटर उत्तर प्रदेश में है, इसलिए पिछड़ा वर्ग सम्मेलन भी सपा के लिए उम्मीदों वाला साबित हो सकता है. प्रदेश में करीब 23 फीसद दलित भी उत्तर प्रदेश में अहम भूमिका निभाते हैं. दलितों का वोट मिलने की सपा को काफी कम उम्मीद है, क्योंकि इसपर बहुजन समाज पार्टी का प्रभुत्व स्थापित है. इसीलिए पार्टी ने अब तक कोई दलित सम्मेलन आयोजित नहीं किया है. आदिवासी सम्मेलन आयोजित कर पार्टी को उम्मीद है कि आदिवासी समाजवादी पार्टी के साथ खड़े हो सकते हैं. सपा को झटके दे सकते हैं अन्य पार्टियों के सम्मेलन बता दें कि सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी ने ही साल 2007 की तरह प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन आयोजित करने का फैसला ले लिया और सतीश चंद्र मिश्रा को पूरे प्रदेश में सम्मेलन आयोजित करने की जिम्मेदारी दी गई है. वे जोर-शोर से इसे निभा भी रहे हैं. उधर कांग्रेस पार्टी भी लगातार पिछड़ा वर्ग और दलित सम्मेलन आयोजित कर रही है. हालांकि प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन से कांग्रेस ने दूरी बना रखी है. पिछड़ा वर्ग के सम्मेलन आयोजित कर कांग्रेस की भी नजर पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर है और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी पिछड़ा वर्ग से ही ताल्लुक रखते हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी के लिए अन्य पार्टियों के सम्मेलन झटके भी दे सकते हैं.

सपा की चाल को जनता समझ चुकीः भाजपा
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता आनंद दुबे कहते हैं कि समाजवादी पार्टी के जो पिछले कुकर्म हैं और जिस तरह का समाजवादी का नारा देकर समर्थन हासिल किया था, लेकिन जब वह सत्ता में आई तो एक जाति और धर्म के नाम पर और फिर जाति और धर्म से हटकर सैफई कुनबे के लिए काम किया. यह जनता नहीं भूली है. किस तरह से नौकरियों और ठेके पट्टों में, ट्रांसफर पोस्टिंग में एक जाति विशेष को महत्व दिया जाता था. उत्तर प्रदेश की जनता भूल नहीं सकती है. समाजवादी पार्टी कोई भी सम्मेलन करे जनता उनका चाल, चेहरा चरित्र समझ चुकी है. आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी जनता की पहली पसंद होगी. समाजवादी पार्टी के तमाम सम्मेलनों को जनता खारिज कर देगी.

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सपा का सम्मेलन सीजनल पॉलिटिक्सः कांग्रेस
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता कृष्णकांत पांडेय कहते हैं कि जब देश आजाद हुआ था उस समय जब पिछड़ों की कोई बात नहीं करता था. तब भी हमने चंद्रजीत यादव और चंदूलाल चंद्राकर जैसे तमाम पिछड़े नेताओं को आगे बढ़ाने का काम किया. जिन राज्यों में केवल सवर्णों को ही महत्व दिया जाता था. उड़ीसा जैसा राज्य वहां भी हमने दलित, पिछड़ा, आदिवासी को महत्व दिया. राजस्थान जैसे राज्य में जहां कोई सोच नहीं सकता था, वहां मोहनलाल सुखाडिया, जगन्नाथ पहाड़िया तमाम चेहरों को आगे बढ़ाया. कांग्रेस पार्टी से चाहे कोई पिछड़े, दलित आदिवासी की बात करे तो जनता सब जानती है. अब इस समय यह सब सम्मेलन आयोजित कराकर सीजनल पॉलिटिक्स कर रहे हैं.

प्रसपा जातीय सम्मेलनों के खिलाफः दीपक मिश्रा
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता दीपक मिश्रा कहते हैं कि प्रसपा भारतीय संविधान में आस्था रखती है. किसी भी प्रकार के जातीय सम्मेलनों के खिलाफ है. राष्ट्रीय महासचिव आदित्य यादव ने राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल यादव की सहमति से घोषणा की थी कि हम इस प्रदेश को जातीय कबीलों में बांटने के सख्त खिलाफ हैं. हम नहीं चाहते देश दोबारा मध्यकालीन युग में जाए. संविधान ऐसे जातीय सम्मेलन करने की इजाजत नहीं देता. देश एक बार संप्रदायिक बंटवारे का दंश झेल चुका है दूसरा दंश झेलने की स्थिति में नहीं है. सम्मेलन करना है तो किसानों की समस्या पर सम्मेलन करिए, बेरोजगारी पर सम्मेलन करिए, गरीबों की समस्या पर करिए, सरकार को जगाने के लिए सम्मेलन करिए. यह मध्य युगीन सोच क्या इस देश को वैश्विक फलक पर स्थापित कर पाएगी?

यूपी में अखिलेश यादव की आंधी चल रहीः सपा
समाजवादी पार्टी युवजन सभा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष विकास यादव कहते हैं कि इस समय उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की आंधी चल रही है. भाजपा ने जनता को भ्रमित कर दिया था, लेकिन अब जनता को अखिलेश यादव के कराए गए काम याद आ रहे हैं. जनता इस बार उन्हें मुख्यमंत्री बनाने को पूरी तरह तैयार है. अखिलेश यादव ने जब साइकिल चलाई तो प्रदेश भर में लाखों युवा उनके साथ साइकिल लेकर निकल पड़े. अब यह तय है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार ही बनेगी. जहां तक बात सम्मेलनों की है तो सम्मेलन में भी लोग अखिलेश यादव की उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने को तैयार हैं.

सम्मेलन में प्रबुद्ध वर्ग के ही लोग आते हैंः राजनीतिक विश्लेषक
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय का कहना है सम्मेलन में प्रबुद्ध वर्ग के ही लोग आते हैं. उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी मूल रूप से जो सामाजिक न्याय की सबसे बड़ी लंबरदार रही है. जो लोहिया की ऑडियोलॉजी थी, जो सिद्धांत थे, उसे लेकर राजनीति की. मंडल आयोग लागू होने के बाद से समाजवादी पार्टी में एक नए तरीके की पॉलिटिक्स की, जिसमें ओबीसी के साथ मुस्लिम एलायंस भी था. लोहिया की पार्टी थी संसोपा, उसने नारा दिया था कि संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पाए 100 में साठ. अब पिछड़ों की राजनीति एक अलग दौर में आ गई है. पिछड़ों में अति पिछड़ों की बात हो रही है. अभी जब राज्यों को पिछड़ा वर्ग आयोग की तरफ सेयह अधिकार मिल गया है कि अति पिछड़ों को पिछड़े वर्ग में शामिल कर सकते हैं, तो उससे एक नई दुविधा भी पैदा हो गई है. क्योंकि जब आप किसी को जोड़ेंगे तो कोई नाराज होगा. प्रबुद्ध सम्मेलन में अपर कास्ट को फोकस किया जा रहा है. उसका नाम नहीं लिया जा रहा है, इसलिए उसे प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कहा जा रहा है. राजनीतिक दलों को हर वर्ग का वोट चाहिए, वह इसीलिए अलग-अलग तरह के सम्मेलन कर रहे हैं और यह जताने की कोशिश करते हैं कि हम आपके लिए ही बेहतर करेंगे. यह हर वर्ग को संतुष्ट करने की चुनाव के पहले एक कोशिश होती है. उन्होंने कहा कि 2007 के बाद उत्तर प्रदेश में जाति आधारित समीकरणों की राजनीति खत्म हो चुकी है. सिर्फ औपचारिकता रह गई है, वही सभी दल निभा रहे हैं.

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