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रमजान के महीने में रोजेदारों की पहली पसंद बन रही है यहां की शिकंजी - लखनऊ समाचार

अपने जायके के लिए मशहूर नवाबों के शहर में रोजेदारों को भीषण गर्मी से बचने के लिए एक खास जायका खूब भा रहा है. शहर की तंग गलियों में मिलने वाली मन्दू मियां की शिकंजी के लिए इफ्तार से लेकर सेहरी तक लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है.

40 सालों से बना रहे हैं खास शिकंजी.
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Published : May 16, 2019, 2:55 PM IST

लखनऊ : रमजान के पाक महीने में पड़ रही भीषण गर्मी रोजेदारों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर रही है. ऐसे में पुराने लखनऊ के चौक इलाके की तंग गलियों में बनी मन्दू मियां की दुकान लोगों की पहली पसंद बन रही है. सारे दिन के रोजे के बाद अपनी प्यास को बुझाने के लिए बड़ी तादाद में रोजेदार यहां पहुंच रहे हैं.

40 सालों से बना रहे हैं खास शिकंजी.

क्या है पूरा मामला?

  • शिकंजी के रूप में रोजेदारों को मिल रहा अलग जायका.
  • इफ्तार से लेकर सेहरी तक रहती है रोजेदारों की भीड़.
  • विदेशी सैलानी भी यहां की शिकंजी पिए बिना अपनी सैर को अधूरा मानते हैं.
  • भीषण गर्मी में मन्दू मियां के यहां शरबतों का अंबार है और शिकंजी के अनगिनत फ्लेवर मौजूद हैं.
  • बाप दादा के जमाने से मून्दू मियां इस दुकान को चलाते आ रहे हैं.

हमारे यहां 45 तरीके के अलग-अलग फ्लेवर के शरबत और शिकंजी मौजूद हैं. इनमें किसी भी तरीके के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है. हाथ से बने खास मसालों से शिकंजी तैयार की जाती है. इन शरबतों के चाहने वाले बड़ी दूर से इस मौसम में लाइन लगाकर अपने नंबर का इंतजार कर अपनी प्यास बुझाते हैं.
- मन्दू मियां, दुकानदार

लखनऊ : रमजान के पाक महीने में पड़ रही भीषण गर्मी रोजेदारों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर रही है. ऐसे में पुराने लखनऊ के चौक इलाके की तंग गलियों में बनी मन्दू मियां की दुकान लोगों की पहली पसंद बन रही है. सारे दिन के रोजे के बाद अपनी प्यास को बुझाने के लिए बड़ी तादाद में रोजेदार यहां पहुंच रहे हैं.

40 सालों से बना रहे हैं खास शिकंजी.

क्या है पूरा मामला?

  • शिकंजी के रूप में रोजेदारों को मिल रहा अलग जायका.
  • इफ्तार से लेकर सेहरी तक रहती है रोजेदारों की भीड़.
  • विदेशी सैलानी भी यहां की शिकंजी पिए बिना अपनी सैर को अधूरा मानते हैं.
  • भीषण गर्मी में मन्दू मियां के यहां शरबतों का अंबार है और शिकंजी के अनगिनत फ्लेवर मौजूद हैं.
  • बाप दादा के जमाने से मून्दू मियां इस दुकान को चलाते आ रहे हैं.

हमारे यहां 45 तरीके के अलग-अलग फ्लेवर के शरबत और शिकंजी मौजूद हैं. इनमें किसी भी तरीके के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है. हाथ से बने खास मसालों से शिकंजी तैयार की जाती है. इन शरबतों के चाहने वाले बड़ी दूर से इस मौसम में लाइन लगाकर अपने नंबर का इंतजार कर अपनी प्यास बुझाते हैं.
- मन्दू मियां, दुकानदार

Intro:नवाबों का शहर अपने ज़ायकों के लिए यूं तो पूरी दुनिया में अपनी एक खास पहचान रखता है लेकिन भीषड़ गर्मी के इन दिनों में पुराने लखनऊ के चौक इलाके की तंग गलियों में सारे दिन की रोजे की अपनी प्यास को बुझाने के लिए बड़ी तादाद में रोजेदार मून्दू मियां की दुकान पर पहुंच रहे हैं। मून्दू मियां की दुकान वैसे तो पूरे दिन खुली रहती है लेकिन अफ्तार के बाद से सेहरी तक यहाँ लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है।


Body:पुराना लखनऊ भी ना जाने कितने ज़ायके अपनी गलियों कूचों में छुपाये बैठा हैं ऐसा ही एक ज़ायका शिकंजी के रूप में पुराने लखनऊ की संकरी गली के भीतर से होता हुआ पाटा नाला इलाके में मौजूद है जिसके चाहने वाले सिर्फ पुराने या नए लखनऊ के नही बल्कि आसपास के कज़बो के तो है ही इसके साथ लखनऊ घूमने आए विदेशी सैलानी भी इस दुकान की शिकंजी पिये बगैर लखनऊ की अपनी सैर अधूरी मानते है। भीषण गर्मी के इस मौसम में मुंडू मियां की दुकान पर जहां शरबतों का एक अंबार है और अनगिनत शिकंजी के फ्लेवर मौजूद हैं तो इस मौसम में खास बात यह भी है कि रमजान में यह दुकान सुबह 3:00 बजे तक खुली रहती है जहां रोजेदार शाम से ही अफ्तार के बाद देर रात सहरी तक बड़ी तादाद में आते हैं और अपनी शिद्दत की प्यास को बुझाते है।


Conclusion:बाप दादा के जमाने से मून्दू मिया इस दुकान को चलाते आ रहे हैं उनका कहना है कि हमारे 45 तरीके के अलग-अलग फ्लेवर के शरबत और शिकंजी में किसी भी तरीके का केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है बल्कि हाथ से बने खास मसालों से शिकंजी तैयार की जाती है। मून्दू मियां बताते हैं कि इन शरबत के चाहने वाले बड़ी दूर से इस मौसम में लाइन तक लगा कर लोग अपने नंबर का इंतजार कर अपनी प्यास बुझाते हैं।
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