लखनऊ : प्रदेश की मैनपुरी संसदीय सीट और रामपुर व खतौली विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए मतदान सोमवार को संपन्न हो गया. तीनों सीटों पर मतदाताओं ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया और मतदान प्रतिशत पिछले चुनाव की अपेक्षा काफी कम रहा. मैनपुरी में सात फीसद तो रामपुर और खतौली में 25 प्रतिशत और 13 प्रतिशत मतदान में कमी आई है. मतदान के दौरान विपक्षी दल समाजवादी पार्टी में मतदान में गड़बड़ी के आरोप भी लगाए. अब सभी को परिणामों का इंतजार है. इस उप चुनाव में दो सीटों पर सपा तो एक पर भाजपा के प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. आजमगढ़ और रामपुर की सीटें समाजवादी पार्टी के प्रभाव वाली रही हैं. यदि इनमें सपा एक भी सीट हारती है, तो उसे भविष्य में नए सिरे से अपनी रणनीति पर विचार करना होगा.
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी संसदीय सीट सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव मैदान में उतारा है. इस सीट पर लगातार समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है. इस उपचुनाव में सपा ने अपनी पूरी ताकत लगाई है और सपा प्रमुख अखिलेश यादव सहित पार्टी के सभी बड़े नेता यहां डेरा जमाए रहे. पिछले चार साल से भी अधिक समय से चले आ रहे अखिलेश और शिवपाल में तकरार का भी इस चुनाव में पटाक्षेप हो गया. अखिलेश यादव शिवपाल को साथ लाने में कामयाब रहे. मैनपुरी में शिवपाल यादव का खासा प्रभाव माना जाता है. समाजवादी पार्टी के लिए इस सीट पर जीत लगभग तय मानी जा रही है, हालांकि यह देखने वाली बात होगी कि जीत का अंतर कितना बड़ा है. यदि सपा पहले से बड़ी लकीर खींचने में कामयाब न हुई तो भी पार्टी के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए. इस चुनाव में भाजपा ने यादव मतदाताओं को भी लुभाने का भरपूर प्रयास किया. यही कारण है कि मुलायम सिंह यादव के निधन पर भाजपा ने उन्हें सम्मान देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मोहम्मद आजम खान (Senior Samajwadi Party leader and former minister Mohammad Azam Khan) को सजा सुनाए जाने के बाद उनकी सदस्यता जाने से रिक्त हुई रामपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान मतदान बेहद कम रहा. पिछली बार की तुलना में इस बार 25 फीसद कम मतदाता घरों से बाहर निकले. यह बात सपा और मोहम्मद आजम खान के लिए खतरे की घंटी मालूम देती है. सपा की इस परंपरागत सीट पर भाजपा पहली बार कब्जा करने को बेताब है. भाजपा ने 2022 में इस सीट पर चुनाव हारे आकाश सक्सेना को एक बार फिर मैदान में उतारा है. आकाश सक्सेना वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने आजम के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज कराई हैं. इस चुनाव में आकाश सक्सेना की स्थिति मजबूत मानी जा रही है. मुस्लिम बहुल सीट पर मतदाता बदलाव को बेताब दिखाई दे रहे हैं. बताते हैं कि बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं में आजम और सपा प्रत्याशी को लेकर गुस्सा है. यदि सपा अपने गढ़वाली सीटें भी बचाने में कामयाब नहीं हुई, तो आगामी लोकसभा चुनाव में उसे नए सिरे से अपनी रणनीति बनानी होगी. यही नहीं समाजवादी पार्टी का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले मोहम्मद आजम खान का विकल्प भी अखिलेश यादव को तलाशना होगा. मुकदमों में फंसने और लंबा समय जेल में गुजारने के बाद मोहम्मद आजम खान में अब पहले वाली धार नहीं रही. यही नहीं तमाम मुस्लिम मतदाता उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी भी मानते हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी को एक नए चेहरे की जरूरत होगी, जो मुस्लिम मतदाताओं को पार्टी से जुड़ सके. निश्चितरूप से समाजवादी पार्टी के लिए या एक नई चुनौती होगी.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western Uttar Pradesh) की ही खतौली विधानसभा सीट पर दूसरी बार चुनकर आए विक्रम सैनी ने कवाल दंगे में सजा सुनाए जाने के बाद अपनी सदस्यता खो दी थी. वर्ष 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में यह सीट भाजपा के पास थी. वर्ष 2012 में राष्ट्रीय लोक दल के अवतार सिंह भड़ाना ने यह सीट जीती थी. इस बार भाजपा ने विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी तो राष्ट्रीय लोक दल ने मदन भैया को टिकट दिया है. इस सीट पर कांटे की टक्कर मानी जा रही है. लोकदल ने इस सीट पर जीत के लिए चंद्रशेखर आजाद का समर्थन भी हासिल किया है. खतौनी विधानसभा सीट में दलितों की आबादी ठीक-ठाक है और माना जा रहा है कि चंद्रशेखर आजाद दलित मतदाताओं में अपनी सेंध लगाने में कामयाब होंगे. हालांकि उपचुनाव में पलड़ा हमेशा सत्ताधारी दल का ही भरी होता है, क्योंकि लोग ऐसी पार्टी को ही जिताना पसंद करते हैं, जिसकी सरकार हो और जो विकास कार्य कराने में सक्षम हो. यही कारण है कि इस सीट पर मुकाबला मजबूत माना जा रहा है. जो भी हो, यह सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की बात है. वैसे तो एक सीट हारने या जीतने से भाजपा पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे जो संदेश से आएगा वह भाजपा के लिए अच्छा नहीं होगा. इसलिए भाजपा भी यहां के नतीजों पर नजरें गड़ाए है. भाजपा, सपा अथवा रालोद सभी इन चुनावों के सबक लेकर वर्ष 2024 के संसदीय चुनाव में उतरेंगे.
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