लखनऊ: यूपी सरकार ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विद्यार्थियों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति रोके जाने का फैसला पिछले महीने लिया है. सरकार की ओर से जारी आदेश अब निजी शिक्षण संस्थानों तक भी पहुंच गया है. सरकार ने आरक्षित वर्ग के छात्र-छात्राओं को फीस जमा किये बगैर प्रवेश देने से मना कर दिया है. सरकार के इस फैसले को विद्यार्थी उच्च शिक्षा से वंचित करने की साजिश मान रहे हैं और प्रदेशव्यापी आंदोलन की तैयारी में जुट गये हैं. छात्रों ने कहा कि इस मामले में जिलाधिकारी और मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी बात कहेंगे.
निजी शिक्षण संस्थानों में नि:शुल्क प्रवेश की प्रक्रिया समाप्ति पर भड़के विद्यार्थी
- 20 अगस्त 2019 को प्रदेश सरकार के समाज कल्याण विभाग निदेशक की ओर से पत्र जारी हुआ था.
- पत्र में साफ कहा गया है कि भारत सरकार की गाइडलाइन के क्रम में निजी शिक्षण संस्थानों में नि:शुल्क प्रवेश की प्रक्रिया समाप्त की जा रही है.
- नियमावली के नए प्रावधान नियम 12 (1)( क) में कहा गया है कि राजकीय अनुदानित शिक्षण संस्थानों में अनुमोदित पाठ्यक्रम में पात्र एवं सही डाटा वाले छात्रों को नि:शुल्क प्रवेश की सुविधा अनुमान्य होगी.
- नि:शुल्क प्रवेश की सुविधा निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों में अनुमान्य नहीं होगी.
- निदेशक समाज कल्याण की ओर से यह पत्र प्रदेश के सभी जिला अधिकारी को भेजा गया है.
- उनसे अपेक्षा की गई है कि वह नि:शुल्क प्रवेश का दावा करने वाले निजी शिक्षण संस्थानों पर रोक लगायें.
- सरकारी आदेश का असर निजी शिक्षण संस्थानों के प्रवेश पर पड़ा है.
- अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है, इससे इस वर्ग से जुड़े छात्रों में खासा आक्रोश है.
- डॉ. भीमराव अंबेडकर छात्रावास के कुछ वरिष्ठ छात्रों का कहना है कि शुल्क प्रतिपूर्ति की व्यवस्था, आरक्षित वर्ग के शैक्षिक उत्थान के लिये आवश्यक है.
- इस पर रोक लगाने का सीधा दुष्प्रभाव शोषित, वंचित समाज पर पड़ने वाला है.
- देश के एक बड़े वर्ग को उच्च शिक्षा प्राप्त करने से रोकने की साजिश की जा रही है, समाज के लोग इसका कड़ा विरोध करेंगे.