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आज भी याद है लोकतंत्र को बचाने का वह संघर्षः रविदास मेहरोत्रा - आपातकाल की स्टोरी

आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ के अवसर पर लोकतंत्र सेनानी कल्याण परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविदास मेहरोत्रा ने अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने बताया कि लोकतंत्र सेनानियों पर जेल में तमाम जुल्म किए गए.

लखनऊः
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Published : Jun 25, 2021, 11:23 AM IST

Updated : Jun 25, 2021, 11:31 AM IST

लखनऊः 25 जून का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत विशेष दिन हैं. यही वो दिन है जब 1975 में लोकतंत्र पर काले बादल छाए थे. इस बार देश में आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. 25 जून 1975 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया था. इस दौरान बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश से आपातकाल का विरोध करने वाले विपक्षी नेताओं और लोकतंत्र समर्थकों को जेल में डाल दिया गया था. इस दौरान लोकतंत्र में मिलने वाले सभी मौलिक अधिकारों को भी छीन लिया गया. उतर प्रदेश में फिलहाल 4300 लोकतंत्र सेनानी बचे हुए हैं.

बता दें कि आपातकाल को लागू करने के पीछे वजह इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक आदेश था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली से सांसद थीं. उनकी संसद सदस्यता को चुनौती देते हुए राज नारायण ने एक याचिका डाली थी. इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को 12 जून 1975 को बतौर सांसद अयोग्य ठहरा दिया था.

आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ

इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान के आपातकालीन उपबंध 352 के तहत आंतरिक अशांति के आधार पर आपातकाल (इमरजेंसी) लागू कर दिया था. यह आपातकाल देश में 21 महीनों तक लागू रहा. इस दौरान विरोध करने वालों को जेल में बंद किया गया. अनुभवी लोग बताते हैं कि इन लोगों पर इंदिरा गांधी की सरकार ने खूब जुल्म ढाए. आज भी उन बचे हुए लोकतंत्र सेनानियों को वह दिन याद है जब उन्हें जेल में डाल दिया गया.

उत्तर प्रदेश में कुल 4300 लोकतंत्र सेनानी है जबकि राजधानी लखनऊ में अकेले 109 लोकतंत्र सेनानी हैं. लोकतंत्र सेनानियों को अपने सम्मान के लिए 29 सालों तक संघर्ष करना पड़ा, तब जाकर मुलायम सिंह यादव की सरकार ने उन सेनानियों को सम्मान देने का काम किया. उन्हें ₹500 की मासिक पेंशन के साथ बस में यात्रा का फ्री अधिकार दिया गया. आज इन्हें मुफ्त इलाज की सुविधा के साथ सरकार की ओर से 20,000 रुपये पेंशन दी जा रही है.

पूरे प्रदेश में एक लाख से भी ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया था. इस दौरान उन्हें खूब यातनाएं भी दी गईं. उत्तर प्रदेश में इस आपातकाल की सजा का शिकार हुए 4500 लोकतंत्र सेनानी मौजूद हैं. राजधानी लखनऊ में 109 लोकतंत्र सेनानी में से जीवित रविदास मेहरोत्रा बताते हैं कि लोकतंत्र को बचाने के लिए वह जेलों में डाले गए थे. उन्हें खूब यातनाएं दी गईं. आज आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ है.


आपातकाल लगने के 21 महीने बाद देश में लोकतंत्र बहाल हुआ तो जेल में बंद हुए लोकतंत्र समर्थकों को सेनानी का दर्जा दिया गया. वहीं, लोकतंत्र के इन सेनानियों को सम्मान पाने के लिए 29 साल तक संघर्ष करना पड़ा. उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव की सरकार ने प्रदेश के 4300 लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन की घोषणा की. पहली बार सपा की मुलायम सिंह यादव सरकार ने ₹500 प्रति महीने सम्मान पेंशन की घोषणा की थी और रोडवेज की बसों में उन्हें फ्री यात्रा का अधिकार भी दिया था.

लोकतंत्र सेनानी कल्याण परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविदास मेहरोत्रा बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव सरकार में 29 सालों के बाद सम्मान मिला और उन्हें 500 रुपये महीने देकर सम्मान बढ़ाया. बाद में उनकी पेंशन को बढ़ाकर ₹1000 कर दिया गया लेकिन 2007 में जैसे ही बसपा की मायावती की सरकार आई, उनकी पेंशन को बंद कर दिया गया . अखिलेश यादव की सरकार ने दोबारा पेंशन शुरू की और 3000 रुपये कर दी. 2016 तक इस पेंशन में बढ़ोतरी होती रही और यह बढ़कर 15000 तक पहुंच गई. इस दौरान उन्हें रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा के साथ सभी तरह की मेडिकल सुविधाएं भी मुफ्त मुहैया कराई जाती थीं. फिर 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसमें ₹5000 का इजाफा किया और आज ₹20000 हर महीने लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन के रूप में मिल रहे हैं. इसके साथ बस यात्रा और मुफ्त मेडिकल सुविधा भी मिल रही है.

उत्तर प्रदेश सहित बिहार और मध्य प्रदेश में आपातकाल के दौरान जेल में डाले गए लोकतंत्र समर्थकों को सेनानी का दर्जा दिया गया. सपा के मुलायम सिंह यादव सरकार ने सबसे पहले लोकतंत्र सेनानियों के लिए पेंशन की घोषणा की. आज जीवित बचे 4300 लोकतंत्र सेनानियों को ₹20000 मासिक पेंशन के साथ मुफ्त रोडवेज यात्रा और मेडिकल की सभी सुविधाएं मुफ्त उपलब्ध है. वहीं, अब सरकार ने लोकतंत्र सेनानी की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को पेंशन दी जा रही है. इसके साथ ही लोकतंत्र सेनानी की मृत्यु के बाद राजकीय सम्मान के साथ उसकी अंतिम संस्कार भी किया जाता है.

इसे भी पढ़ेंः लावारिस पड़े बैग को खोला तो रह गए हैरान, मिले 106 कछुए

1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली लोकसभा सीट से एक लाख वोटों के अंतर से अपने प्रतिद्वंदी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण को हराया था. उस समय राजनारायण की पहचान बड़े समाजवादी नेता के रूप में की जाती थी. अपनी हार के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. फिर राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश के नाम से यह केस जारी रहा. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने फैसले में माना कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है इसलिए जनप्रतिनिधि कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाना अवैध है. 12 जून को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया . जिसके बाद 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में राज नारायण इंदिरा गांधी के इस्तीफे को लेकर एक बड़ी रैली की थी. अपने खिलाफ प्रखर हो रहे विरोध के स्वर को दबाने के लिए 25 जून 1975 की आधी रात को देश में आंतरिक अशांति को आधार बनाते हुए आपातकाल थोप दिया गया. इस दौरान नागरिकों के सभी मौलिक अधिकार को खत्म कर दिया गया. देश में एक लाख से ज्यादा ऐसे लोगों को, जो आपातकाल का विरोध कर रहे थे, उन्हें जेलों में ठूंस दिया गया और खूब यातनाएं दी गईं. देश में आपातकाल 21 महीनों तक लागू रहा.

लखनऊः 25 जून का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत विशेष दिन हैं. यही वो दिन है जब 1975 में लोकतंत्र पर काले बादल छाए थे. इस बार देश में आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. 25 जून 1975 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया था. इस दौरान बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश से आपातकाल का विरोध करने वाले विपक्षी नेताओं और लोकतंत्र समर्थकों को जेल में डाल दिया गया था. इस दौरान लोकतंत्र में मिलने वाले सभी मौलिक अधिकारों को भी छीन लिया गया. उतर प्रदेश में फिलहाल 4300 लोकतंत्र सेनानी बचे हुए हैं.

बता दें कि आपातकाल को लागू करने के पीछे वजह इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक आदेश था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली से सांसद थीं. उनकी संसद सदस्यता को चुनौती देते हुए राज नारायण ने एक याचिका डाली थी. इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को 12 जून 1975 को बतौर सांसद अयोग्य ठहरा दिया था.

आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ

इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान के आपातकालीन उपबंध 352 के तहत आंतरिक अशांति के आधार पर आपातकाल (इमरजेंसी) लागू कर दिया था. यह आपातकाल देश में 21 महीनों तक लागू रहा. इस दौरान विरोध करने वालों को जेल में बंद किया गया. अनुभवी लोग बताते हैं कि इन लोगों पर इंदिरा गांधी की सरकार ने खूब जुल्म ढाए. आज भी उन बचे हुए लोकतंत्र सेनानियों को वह दिन याद है जब उन्हें जेल में डाल दिया गया.

उत्तर प्रदेश में कुल 4300 लोकतंत्र सेनानी है जबकि राजधानी लखनऊ में अकेले 109 लोकतंत्र सेनानी हैं. लोकतंत्र सेनानियों को अपने सम्मान के लिए 29 सालों तक संघर्ष करना पड़ा, तब जाकर मुलायम सिंह यादव की सरकार ने उन सेनानियों को सम्मान देने का काम किया. उन्हें ₹500 की मासिक पेंशन के साथ बस में यात्रा का फ्री अधिकार दिया गया. आज इन्हें मुफ्त इलाज की सुविधा के साथ सरकार की ओर से 20,000 रुपये पेंशन दी जा रही है.

पूरे प्रदेश में एक लाख से भी ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया था. इस दौरान उन्हें खूब यातनाएं भी दी गईं. उत्तर प्रदेश में इस आपातकाल की सजा का शिकार हुए 4500 लोकतंत्र सेनानी मौजूद हैं. राजधानी लखनऊ में 109 लोकतंत्र सेनानी में से जीवित रविदास मेहरोत्रा बताते हैं कि लोकतंत्र को बचाने के लिए वह जेलों में डाले गए थे. उन्हें खूब यातनाएं दी गईं. आज आपातकाल की 46वीं वर्षगांठ है.


आपातकाल लगने के 21 महीने बाद देश में लोकतंत्र बहाल हुआ तो जेल में बंद हुए लोकतंत्र समर्थकों को सेनानी का दर्जा दिया गया. वहीं, लोकतंत्र के इन सेनानियों को सम्मान पाने के लिए 29 साल तक संघर्ष करना पड़ा. उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव की सरकार ने प्रदेश के 4300 लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन की घोषणा की. पहली बार सपा की मुलायम सिंह यादव सरकार ने ₹500 प्रति महीने सम्मान पेंशन की घोषणा की थी और रोडवेज की बसों में उन्हें फ्री यात्रा का अधिकार भी दिया था.

लोकतंत्र सेनानी कल्याण परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविदास मेहरोत्रा बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव सरकार में 29 सालों के बाद सम्मान मिला और उन्हें 500 रुपये महीने देकर सम्मान बढ़ाया. बाद में उनकी पेंशन को बढ़ाकर ₹1000 कर दिया गया लेकिन 2007 में जैसे ही बसपा की मायावती की सरकार आई, उनकी पेंशन को बंद कर दिया गया . अखिलेश यादव की सरकार ने दोबारा पेंशन शुरू की और 3000 रुपये कर दी. 2016 तक इस पेंशन में बढ़ोतरी होती रही और यह बढ़कर 15000 तक पहुंच गई. इस दौरान उन्हें रोडवेज की बसों में मुफ्त यात्रा के साथ सभी तरह की मेडिकल सुविधाएं भी मुफ्त मुहैया कराई जाती थीं. फिर 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसमें ₹5000 का इजाफा किया और आज ₹20000 हर महीने लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन के रूप में मिल रहे हैं. इसके साथ बस यात्रा और मुफ्त मेडिकल सुविधा भी मिल रही है.

उत्तर प्रदेश सहित बिहार और मध्य प्रदेश में आपातकाल के दौरान जेल में डाले गए लोकतंत्र समर्थकों को सेनानी का दर्जा दिया गया. सपा के मुलायम सिंह यादव सरकार ने सबसे पहले लोकतंत्र सेनानियों के लिए पेंशन की घोषणा की. आज जीवित बचे 4300 लोकतंत्र सेनानियों को ₹20000 मासिक पेंशन के साथ मुफ्त रोडवेज यात्रा और मेडिकल की सभी सुविधाएं मुफ्त उपलब्ध है. वहीं, अब सरकार ने लोकतंत्र सेनानी की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को पेंशन दी जा रही है. इसके साथ ही लोकतंत्र सेनानी की मृत्यु के बाद राजकीय सम्मान के साथ उसकी अंतिम संस्कार भी किया जाता है.

इसे भी पढ़ेंः लावारिस पड़े बैग को खोला तो रह गए हैरान, मिले 106 कछुए

1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली लोकसभा सीट से एक लाख वोटों के अंतर से अपने प्रतिद्वंदी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी राजनारायण को हराया था. उस समय राजनारायण की पहचान बड़े समाजवादी नेता के रूप में की जाती थी. अपनी हार के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी. फिर राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश के नाम से यह केस जारी रहा. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने फैसले में माना कि इंदिरा गांधी ने सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है इसलिए जनप्रतिनिधि कानून के अनुसार उनका सांसद चुना जाना अवैध है. 12 जून को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया . जिसके बाद 25 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में राज नारायण इंदिरा गांधी के इस्तीफे को लेकर एक बड़ी रैली की थी. अपने खिलाफ प्रखर हो रहे विरोध के स्वर को दबाने के लिए 25 जून 1975 की आधी रात को देश में आंतरिक अशांति को आधार बनाते हुए आपातकाल थोप दिया गया. इस दौरान नागरिकों के सभी मौलिक अधिकार को खत्म कर दिया गया. देश में एक लाख से ज्यादा ऐसे लोगों को, जो आपातकाल का विरोध कर रहे थे, उन्हें जेलों में ठूंस दिया गया और खूब यातनाएं दी गईं. देश में आपातकाल 21 महीनों तक लागू रहा.

Last Updated : Jun 25, 2021, 11:31 AM IST
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