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शिवपाल यादव के अखिलेश के साथ आने से सहज नहीं हैं रामगोपाल यादव

ऐसा लगता है कि मैनपुरी उपचुनाव ने एक बार फिर मुलायम सिंह यादव के कुनबे को एकजुट कर दिया है. शिवपाल फिर से अखिलेश के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी के झंडे के नीचे आ गए हैं. मगर ऐसा नहीं है. शिवपाल और अखिलेश की जुगलबंदी से परिवार के एक बड़े सदस्य डॉ. रामगोपाल यादव सहज नहीं है (Ramgopal Yadav is not comfortable with Shivpal).

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Published : Dec 12, 2022, 7:39 PM IST

Updated : Dec 12, 2022, 8:29 PM IST

लखनऊ : मैनपुरी उपचुनाव के बाद समाजवादी पार्टी का यादव परिवार अब पूरी तरह से एक हो गया है. शिवपाल सिंह यादव अखिलेश यादव के साथ आ गए हैं. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय हो चुका है. शिवपाल सिंह यादव ने एक बार फिर समाजवादी पार्टी का झंडा थाम लिया है (Shivpal Yadav with Akhilesh yadav). सूत्रों का कहना है इस बदले घटनाक्रम से रामगोपाल यादव सहज नहीं हैं. हालांकि अखिलेश के फैसले पर वह फिलहाल चुप हैं.

Shivpal Yadav with Akhilesh yadav
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के बाद प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय हो गया.

समाजवादी पार्टी के सूत्रों का कहना है कि यादव परिवार में बिखराव के पीछे सबसे बड़ा कारण रामगोपाल यादव ही रहे हैं. शिवपाल यादव के पार्टी छोड़ने के बाद डॉ. रामगोपाल यादव अखिलेश के प्रमुख सलाहकार रहे. अब अखिलेश यादव ने रामगोपाल यादव को बहुत ज्यादा तवज्जो देना बंद कर दिया है. मैनपुरी उपचुनाव में जीत के बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव का सम्मान करते हुए उनकी पार्टी प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय करा लिया. मैनपुरी में जीत के बाद डॉ. राम गोपाल यादव ने ट्विटर के माध्यम से जनता को बधाई दी, लेकिन शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के विलय पर प्रतिक्रिया नहीं दी. उन्होंने किसी मंच पर शिवपाल यादव के पार्टी में लौटने का सार्वजनिक तौर पर न तो स्वागत किया और न ही विरोध. वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन कहते हैं कि शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी पार्टी में अब पूरी तरह से आने के बाद रामगोपाल से नाराजगी जैसा भाव अब नहीं दिख रहा है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं, वही सारे फैसले करते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि देखिए रामगोपाल यादव की अभी तक पार्टी में हैसियत नंबर दो की थी. वह अपना यूपी के साथ-साथ दिल्ली में मैनेजमेंट की पूरी कोशिश करते थे. जब शिवपाल यादव की पार्टी में वापसी हो गई है और जिस तरीके से चाचा और भतीजे में तालमेल नजर आ रहा है उससे रामगोपाल यादव की पकड़ पार्टी में कमजोर पड़ेगी. वैसे पहले सपा के नेताओं का मानना था कि रामगोपाल यादव ने पार्टी को कमजोर किया है . यादव परिवार और पार्टी में मतभेद खुलकर सामने आए थे, उसमें रामगोपाल यादव की बड़ी भूमिका मानी जाती थी. अब जब शिवपाल सिंह यादव पार्टी में आ गए हैं तो रामगोपाल यादव जाहिर तौर पर कमजोर होंगे. उनके करीबी नेताओं की हैसियत कम होगी.

शिवपाल संगठन के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. मुलायम सिंह यादव को जब भी कुछ बड़ा निर्णय लेना होता था या कोई राजनीतिक उलटफेर की चीजें आती थी तो उसमें शिवपाल सबसे कारगर साबित होते थे. यह भी माना जाता था कि नेताजी के बाद समाजवादी पार्टी में सबसे ज्यादा मजबूत पकड़ है. राजनीतिक रूप से परिपक्व नेता के रूप में शिवपाल सिंह यादव की पहचान मानी जाती है. साथ ही बीते दिनों मैनपुरी चुनाव में शिवपाल सिंह यादव कार्यकर्ताओं के साथ पूरी तरह से खड़े रहे. वह ब्लॉक प्रमुख को थाने से छुड़ाकर साबित कर दिया कि समाजवादी पार्टी अपने पुराने रंग में शिवपाल के साथ कदमताल करती हुई नजर आएगी. इससे स्वाभाविक रूप से रामगोपाल यादव खुश नहीं होंगे और असहज भी होंगे.

मनमोहन कहते हैं कि रामगोपाल यादव की पार्टी में भूमिका भी अलग है. वह पार्लियामेंट देखते हैं. परिवार की एकता के बारे में सब लोगों ने मिल बैठकर तय किया है. मैनपुरी चुनाव प्रचार से पहले यादव कुनबे यह तय किया कि मुलायम सिंह यादव के नहीं रहने के बाद पूरा परिवार एक साथ रहेगा. रामगोपाल यादव के मन में शिवपाल सिंह यादव के प्रति कुछ कड़वाहट होगी तो वह अखिलेश यादव से बात कर चुके होंगे. फिलहाल परिवार पूरी तरह से एक नजर आ रहा है. परिवार के किसी सदस्य में नाराजगी का भाव फ़िलहाल दिखाई नहीं दे रहा है.

समाजवादी पार्टी को बनाने में शिवपाल सिंह यादव ने भी बड़ा योगदान दिया है. रामगोपाल यादव बाद में जुड़े थे. शिवपाल यादव ने जमीनी स्तर पर काम किया था. अखिलेश यादव ने कहा भी है कि चाचा शिवपाल सिंह यादव को बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी. अखिलेश यादव अब शिवपाल यादव को क्या जिम्मेदारी देंगे, यह देखने वाली बात होगी. अब मुलायम सिंह यादव के नहीं रहने के बाद पूरा परिवार एक रहेगा तभी सियासी रूप से लाभ मिल सकेगा.

फेक ट्वीट के बाद जमकर ट्रोल हुए अखिलेश यादव : राजनीति में अंधविरोध जो न करा दे, मगर कई बार बिना जाने समझे प्रतिक्रिया व्यक्त करने में लेने के देने भी पड़ सकते हैं. ऐसा ही सोमवार को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ हुआ. दरअसल, अखिलेश ने वर्कशॉप में सर्विसिंग के लिए जा रही एक क्षतिग्रस्त बस की तस्वीर को यात्री बस बताकर ट्विटर पर पोस्ट कर दिया. फिर क्या था ट्विटर पर यूजर्स ने उनकी जमकर खिंचाई कर दी. वहीं यूपी रोडवेज के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से भी अखिलेश यादव को रिप्लाई करते हुए वास्तुस्थिति की जानकारी दी गई.

इधर परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने अखिलेश यादव के ट्वीट पर कड़ी अपत्ति दर्ज की है. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर अखिलेश लगातार फेक पोस्ट करते रहते हैं. कुछ माह पहले ही उन्होंने एक फोटो पोस्ट की थी, जिसमें बनारस में वरुणा नदी गंदगी और जलकुंभी से पटी हुई दिख रही थी, जबकि वो फोटो उन्हीं के कार्यकाल में खींची गई थी. वहीं आज उन्होंने रायबरेली डिपो की एक क्षतिग्रस्त बस की तस्वीर को यात्री बस बताकर पोस्ट की है, जबकि हकीकत ये है कि उक्त बस क्षेत्रीय कार्यशाला लखनऊ में मरम्मत के लिए आ रही थी. इस दौरान बस में एक भी यात्री नहीं था. अखिलेश को ट्विटर की राजनीति करने से बाज आना चाहिए. इधर अखिलेश यादव के ट्वीट को यूजर्स के गुस्से का भी सामना करना पड़ा. लोगों ने उन्हें लगातार फेक सूचना देने के लिए आड़े हाथ लिया है. लोगों ने यहां तक लिखा कि जब अखिलेश यादव वास्तविक मुद्दों पर जीत हासिल ना कर सके तो अब उन्होंने फेक तस्वीरों के जरिए दुष्प्रचार शुरू कर दिया है.

पढ़ें : जीत को आदत बनाना है, तो सपा को मैनपुरी की तर्ज पर लड़ना होगा हर चुनाव

लखनऊ : मैनपुरी उपचुनाव के बाद समाजवादी पार्टी का यादव परिवार अब पूरी तरह से एक हो गया है. शिवपाल सिंह यादव अखिलेश यादव के साथ आ गए हैं. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय हो चुका है. शिवपाल सिंह यादव ने एक बार फिर समाजवादी पार्टी का झंडा थाम लिया है (Shivpal Yadav with Akhilesh yadav). सूत्रों का कहना है इस बदले घटनाक्रम से रामगोपाल यादव सहज नहीं हैं. हालांकि अखिलेश के फैसले पर वह फिलहाल चुप हैं.

Shivpal Yadav with Akhilesh yadav
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के बाद प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय हो गया.

समाजवादी पार्टी के सूत्रों का कहना है कि यादव परिवार में बिखराव के पीछे सबसे बड़ा कारण रामगोपाल यादव ही रहे हैं. शिवपाल यादव के पार्टी छोड़ने के बाद डॉ. रामगोपाल यादव अखिलेश के प्रमुख सलाहकार रहे. अब अखिलेश यादव ने रामगोपाल यादव को बहुत ज्यादा तवज्जो देना बंद कर दिया है. मैनपुरी उपचुनाव में जीत के बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव का सम्मान करते हुए उनकी पार्टी प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय करा लिया. मैनपुरी में जीत के बाद डॉ. राम गोपाल यादव ने ट्विटर के माध्यम से जनता को बधाई दी, लेकिन शिवपाल सिंह यादव की पार्टी के विलय पर प्रतिक्रिया नहीं दी. उन्होंने किसी मंच पर शिवपाल यादव के पार्टी में लौटने का सार्वजनिक तौर पर न तो स्वागत किया और न ही विरोध. वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन कहते हैं कि शिवपाल सिंह यादव के समाजवादी पार्टी में अब पूरी तरह से आने के बाद रामगोपाल से नाराजगी जैसा भाव अब नहीं दिख रहा है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं, वही सारे फैसले करते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी कहते हैं कि देखिए रामगोपाल यादव की अभी तक पार्टी में हैसियत नंबर दो की थी. वह अपना यूपी के साथ-साथ दिल्ली में मैनेजमेंट की पूरी कोशिश करते थे. जब शिवपाल यादव की पार्टी में वापसी हो गई है और जिस तरीके से चाचा और भतीजे में तालमेल नजर आ रहा है उससे रामगोपाल यादव की पकड़ पार्टी में कमजोर पड़ेगी. वैसे पहले सपा के नेताओं का मानना था कि रामगोपाल यादव ने पार्टी को कमजोर किया है . यादव परिवार और पार्टी में मतभेद खुलकर सामने आए थे, उसमें रामगोपाल यादव की बड़ी भूमिका मानी जाती थी. अब जब शिवपाल सिंह यादव पार्टी में आ गए हैं तो रामगोपाल यादव जाहिर तौर पर कमजोर होंगे. उनके करीबी नेताओं की हैसियत कम होगी.

शिवपाल संगठन के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. मुलायम सिंह यादव को जब भी कुछ बड़ा निर्णय लेना होता था या कोई राजनीतिक उलटफेर की चीजें आती थी तो उसमें शिवपाल सबसे कारगर साबित होते थे. यह भी माना जाता था कि नेताजी के बाद समाजवादी पार्टी में सबसे ज्यादा मजबूत पकड़ है. राजनीतिक रूप से परिपक्व नेता के रूप में शिवपाल सिंह यादव की पहचान मानी जाती है. साथ ही बीते दिनों मैनपुरी चुनाव में शिवपाल सिंह यादव कार्यकर्ताओं के साथ पूरी तरह से खड़े रहे. वह ब्लॉक प्रमुख को थाने से छुड़ाकर साबित कर दिया कि समाजवादी पार्टी अपने पुराने रंग में शिवपाल के साथ कदमताल करती हुई नजर आएगी. इससे स्वाभाविक रूप से रामगोपाल यादव खुश नहीं होंगे और असहज भी होंगे.

मनमोहन कहते हैं कि रामगोपाल यादव की पार्टी में भूमिका भी अलग है. वह पार्लियामेंट देखते हैं. परिवार की एकता के बारे में सब लोगों ने मिल बैठकर तय किया है. मैनपुरी चुनाव प्रचार से पहले यादव कुनबे यह तय किया कि मुलायम सिंह यादव के नहीं रहने के बाद पूरा परिवार एक साथ रहेगा. रामगोपाल यादव के मन में शिवपाल सिंह यादव के प्रति कुछ कड़वाहट होगी तो वह अखिलेश यादव से बात कर चुके होंगे. फिलहाल परिवार पूरी तरह से एक नजर आ रहा है. परिवार के किसी सदस्य में नाराजगी का भाव फ़िलहाल दिखाई नहीं दे रहा है.

समाजवादी पार्टी को बनाने में शिवपाल सिंह यादव ने भी बड़ा योगदान दिया है. रामगोपाल यादव बाद में जुड़े थे. शिवपाल यादव ने जमीनी स्तर पर काम किया था. अखिलेश यादव ने कहा भी है कि चाचा शिवपाल सिंह यादव को बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी. अखिलेश यादव अब शिवपाल यादव को क्या जिम्मेदारी देंगे, यह देखने वाली बात होगी. अब मुलायम सिंह यादव के नहीं रहने के बाद पूरा परिवार एक रहेगा तभी सियासी रूप से लाभ मिल सकेगा.

फेक ट्वीट के बाद जमकर ट्रोल हुए अखिलेश यादव : राजनीति में अंधविरोध जो न करा दे, मगर कई बार बिना जाने समझे प्रतिक्रिया व्यक्त करने में लेने के देने भी पड़ सकते हैं. ऐसा ही सोमवार को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ हुआ. दरअसल, अखिलेश ने वर्कशॉप में सर्विसिंग के लिए जा रही एक क्षतिग्रस्त बस की तस्वीर को यात्री बस बताकर ट्विटर पर पोस्ट कर दिया. फिर क्या था ट्विटर पर यूजर्स ने उनकी जमकर खिंचाई कर दी. वहीं यूपी रोडवेज के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से भी अखिलेश यादव को रिप्लाई करते हुए वास्तुस्थिति की जानकारी दी गई.

इधर परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने अखिलेश यादव के ट्वीट पर कड़ी अपत्ति दर्ज की है. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर अखिलेश लगातार फेक पोस्ट करते रहते हैं. कुछ माह पहले ही उन्होंने एक फोटो पोस्ट की थी, जिसमें बनारस में वरुणा नदी गंदगी और जलकुंभी से पटी हुई दिख रही थी, जबकि वो फोटो उन्हीं के कार्यकाल में खींची गई थी. वहीं आज उन्होंने रायबरेली डिपो की एक क्षतिग्रस्त बस की तस्वीर को यात्री बस बताकर पोस्ट की है, जबकि हकीकत ये है कि उक्त बस क्षेत्रीय कार्यशाला लखनऊ में मरम्मत के लिए आ रही थी. इस दौरान बस में एक भी यात्री नहीं था. अखिलेश को ट्विटर की राजनीति करने से बाज आना चाहिए. इधर अखिलेश यादव के ट्वीट को यूजर्स के गुस्से का भी सामना करना पड़ा. लोगों ने उन्हें लगातार फेक सूचना देने के लिए आड़े हाथ लिया है. लोगों ने यहां तक लिखा कि जब अखिलेश यादव वास्तविक मुद्दों पर जीत हासिल ना कर सके तो अब उन्होंने फेक तस्वीरों के जरिए दुष्प्रचार शुरू कर दिया है.

पढ़ें : जीत को आदत बनाना है, तो सपा को मैनपुरी की तर्ज पर लड़ना होगा हर चुनाव

Last Updated : Dec 12, 2022, 8:29 PM IST
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