जयपुर: राज्य सरकार भरतपुर के बंशी पहाड़ के 5 स्क्वायर किमी को बंध बरेठा अभ्यारण्य से बाहर करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को जल्द ही भेजेगी, जिससे बंशी पहाड़ के गुलाबी पत्थर का वैध खनन हो सके. साथ ही राम मंदिर निर्माण में बंशी पहाड़ का पत्थर बेरोकटोक काम आ सके.
बता दें कि 1996 में बंशी पहाड़ बंध बरेठा अभ्यारण का हिस्सा बना था. तब से यहां खनन बंद था, लेकिन यहां धड़ल्ले से अवैध खनन हो रहा था. जिससे अयोध्या के राम मंदिर के लिए यहां से पत्थर जा रहा था. लेकिन यहां अवैध खनन पर रोक के बाद मंदिर निर्माण में इस्तेमाल में लिया जा रहा भरतपुर के बंशी पहाड़ का पत्थर अब वहां नहीं पहुंच रहा है.
अब इसके लिए राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार को यह प्रस्ताव भेजा जाएगा कि बंद बरेठा अभ्यारण से बंशी पहाड़ के उस 5 स्क्वायर किलोमीटर के क्षेत्र को अभ्यारण से बाहर कर दिया जाए, जहां न तो कोई वन्य प्राणी है और नहीं कोई पेड़ पौधे लगे हैं. अगर यह क्षेत्र अभ्यारण से बाहर हो जाता है तो फिर इस इलाके में वैध माइनिंग शुरू हो जाएगी.
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बंशी पहाड़ से लाल और पिंक पत्थर निकलता है. जिसमें से पिंक पत्थर को बेहतरीन पत्थर माना जाता है क्योंकि कहा जाता है कि पानी में रहने के बावजूद भी 5000 से 7000 साल तक ये पत्थर खराब नहीं होता है.
माइनिंग शुरू हुई तो राजस्व बढ़ेगा
बंशी पहाड़ बंध बरेठा अभ्यारण का हिस्सा है. वहीं अभ्यारण की इको सेंसेटिव जोन नीति के चलते यहां पर माइनिंग बंद हो गई थी. लेकिन इसके बाद यहां अवैध माइनिंग का खेल शुरू हो गया. अब जब राम मंदिर के लिए जा रहा पत्थर रोका गया तो राज्य सरकार भी इस अवैध माइनिंग को वैध बनाने के काम में जुट गई है.
राजस्थान की एसीएस माइंस एवं पेट्रोलियम सुबोध अग्रवाल ने कहा कि कलेक्टर भरतपुर ने यह प्रस्ताव भेजा है कि अगर इस एरिया को हम अभ्यारण क्षेत्र से बाहर निकाल सके तो यह अवैध खनन बंद होकर यहां वैध खनन शुरू हो सकेगा. जिससे सरकार का राजस्व तो बढ़ेगा ही लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा. कलेक्टर का प्रस्ताव राज्य सरकार को मिल चुका है.
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एसीएस अग्रवाल का कहना है कि सरकार की मंशा है कि पूरी तरीके से इस खनन को वैध किया जाए. जिससे बंशी पहाड़ का प्रसिद्ध पत्थर देश विदेश में इस्तेमाल हो सके. राम मंदिर निर्माण में इस पत्थर का इस्तेमाल हो तो इससे बेहतर बात हो ही नहीं सकती.
अब राज्य सरकार यह प्रस्ताव जल्दी ही भारत सरकार को भेजेगी कि बंशी पहाड़ को अभ्यारण क्षेत्र से अलग कर दिया जाए, क्योंकि अभ्यारण से किसी क्षेत्र को अलग करने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक है. ऐसे में यह प्रस्ताव राज्य सरकार केंद्र सरकार को भेजने जा रही है.