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बेमौसम बारिश ने किसानों को किया बर्बाद, मेंथा की फसल पूरी तहर खराब

लखनऊ में जल्दी मानसून आने से किसानों की मेंथा की फसल बर्बाद हो गई है. मेंथा कि फसल से किसानों को अधिक फायदा होता था. लेकिन इस बार किसानों को बहुत नुकसान हुआ है. बता दे कि मेंथा की फसल का प्रमाणीकरण नहीं होने के चलते उन्हें सरकार के द्वारा फसलों का मुआवजा भी नहीं मिल सकेगा.

मेंथा की फसल पूरी तहर खराब
मेंथा की फसल पूरी तहर खराब
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Published : Jun 18, 2021, 11:49 AM IST

लखनऊ : राजधानी में आगामी मानसून के आते ही बख्शी का तालाब, इटौंजा, चिनहट, मलिहाबाद और अन्य विकास खंडों में लगी किसानों की मेंथा की फसल 90 फीसदी तक पूरी तरह से बर्बाद हो गई है. फसल लगाए हुए किसान इस उम्मीद में थे कि इस बार उत्पादन अच्छा होगा और इससे अच्छा मुनाफा मिलेगा, लेकिन आगामी मानसून ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. जिसे किसानों के चेहरों पर मायूसी देखने को मिल रही है.

जहां एक तरफ सरकार औषधि और सुगंध वाली फसलों को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. वहीं दूसरी तरफ मेंथा की फसल का प्रमाणीकरण न किए जाने से सरकार द्वारा किसानों को बर्बाद हुए फसलों का मुआवजा नहीं मिल पा रहा है. जिस वजह से किसान बर्बाद हुए फसलों की भरपाई नहीं कर पा रहे हैं.

सरकारी अनुमानों के अनुसार करीब 80% मेंथा फसल उत्तर प्रदेश के कई जिलों में उगाई जाती है. मेंथा फसल के उत्पादन में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र उत्तर प्रदेश माना जाता है. उत्पादन की बात करें तो उत्तर प्रदेश के बाराबंकी चंदौली, सीतापुर, मुरादाबाद, रामपुर, लखीमपुर, अंबेडकर नगर, पीलीभीत, रायबरेली जैसे कई जिलों में इसकी खेती किसानों द्वारा बढ़-चढ़कर किया जाता है. वहीं मेंथा फसल के लिए बाराबंकी अपने आप में एक मशहूर जिला माना जाता है. लेकिन इस बार आगामी मानसून की मार ने फसल को बर्बादी की कगार पर ला दिया है. जिसकी वजह से किसान पूरी तरह से निराश दिख रहे हैं.

कृषि आचार्य डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इस बार मानसून के जल्दी आ जाने से मेंथा फसल की बर्बादी अधिक हुई है. क्योंकि जून माह में मेंथा का ओसावन करके मेंथा तेल निकाला जाता है. लेकिन इस बार मूसलाधार बारिश ने किसानों की फसलों को पूरी तरह से चौपट कर दिया. जिसके कारण इस बार फसल के उत्पादन में असर देखने को मिल रहा है. जहां हर बार 1 एकड़ में 50 से 60 लीटर तेल निकाला जाता था, वहीं इस बार 5 से 10 लीटर तेल निकल पा रहा है.

इसे भी पढ़ें-किसान कर रहे नहरों में पानी आने का इंतजार

लखनऊ : राजधानी में आगामी मानसून के आते ही बख्शी का तालाब, इटौंजा, चिनहट, मलिहाबाद और अन्य विकास खंडों में लगी किसानों की मेंथा की फसल 90 फीसदी तक पूरी तरह से बर्बाद हो गई है. फसल लगाए हुए किसान इस उम्मीद में थे कि इस बार उत्पादन अच्छा होगा और इससे अच्छा मुनाफा मिलेगा, लेकिन आगामी मानसून ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. जिसे किसानों के चेहरों पर मायूसी देखने को मिल रही है.

जहां एक तरफ सरकार औषधि और सुगंध वाली फसलों को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. वहीं दूसरी तरफ मेंथा की फसल का प्रमाणीकरण न किए जाने से सरकार द्वारा किसानों को बर्बाद हुए फसलों का मुआवजा नहीं मिल पा रहा है. जिस वजह से किसान बर्बाद हुए फसलों की भरपाई नहीं कर पा रहे हैं.

सरकारी अनुमानों के अनुसार करीब 80% मेंथा फसल उत्तर प्रदेश के कई जिलों में उगाई जाती है. मेंथा फसल के उत्पादन में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र उत्तर प्रदेश माना जाता है. उत्पादन की बात करें तो उत्तर प्रदेश के बाराबंकी चंदौली, सीतापुर, मुरादाबाद, रामपुर, लखीमपुर, अंबेडकर नगर, पीलीभीत, रायबरेली जैसे कई जिलों में इसकी खेती किसानों द्वारा बढ़-चढ़कर किया जाता है. वहीं मेंथा फसल के लिए बाराबंकी अपने आप में एक मशहूर जिला माना जाता है. लेकिन इस बार आगामी मानसून की मार ने फसल को बर्बादी की कगार पर ला दिया है. जिसकी वजह से किसान पूरी तरह से निराश दिख रहे हैं.

कृषि आचार्य डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इस बार मानसून के जल्दी आ जाने से मेंथा फसल की बर्बादी अधिक हुई है. क्योंकि जून माह में मेंथा का ओसावन करके मेंथा तेल निकाला जाता है. लेकिन इस बार मूसलाधार बारिश ने किसानों की फसलों को पूरी तरह से चौपट कर दिया. जिसके कारण इस बार फसल के उत्पादन में असर देखने को मिल रहा है. जहां हर बार 1 एकड़ में 50 से 60 लीटर तेल निकाला जाता था, वहीं इस बार 5 से 10 लीटर तेल निकल पा रहा है.

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