लखनऊ: रेलवे ने किसी प्रकार के किराए में बढ़ोतरी की घोषणा तो नहीं की है लेकिन, फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनों के टिकट के दाम सुनकर यात्री या तो ट्रेन से जाने का इरादा छोड़ दे रहे हैं. या फिर अपनी जेब ढीली करके गंतव्य तक पहुंच रहे हैं. बात लखनऊ से कानपुर की करें तो दोनों स्टेशन की दूरी 100 किलोमीटर से भी कम है. बस का किराया 130 से 140 रुपए है, लेकिन ट्रेन के किराए की बात करें तो आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि इतनी दूरी के लिए रेलवे आम यात्रियों से त्योहार के नाम पर चलने वाली ट्रेनों से कितना पैसा वसूल रहा है.
सिर्फ 80 किलोमीटर की दूरी के लिए कानपुर का लखनऊ से ₹1100 वसूल किया जा रहा है. कानपुर के लिए जहां 1100 वहीं, प्रतापगढ़ के लिए तो 1400 रुपए से ज्यादा यात्रियों से वसूली हो रही है. ऐसे में यात्रियों का ट्रेन से सफर करना दूभर हो गया है. आम आदमी के लिए जानी जाने वाली ट्रेन अब आम आदमी की ही पहुंच से दूर हो रही है.
रेल प्रशासन हर वर्ष यात्री सुविधा के नाम पर फेस्टिवल स्पेशल ट्रेनें संचालित करता है, जिनका किराया अलग-अलग श्रेणियों में सामान्य ट्रेनों से डेढ़ से दोगुना ज्यादा होता है, लेकिन इन ट्रेनों में छोटी दूरी का किराया इतना है कि आम यात्रियों का यात्रा करना संभव ही नहीं है. आईआरसीटीसी की ऑनलाइन टिकट बुकिंग वेबसाइट पर फेस्टिवल ट्रेन के नाम पर कम दूरी का किराया लखनऊ से हरदोई तक ₹1050, कानपुर तक 1100 और प्रतापगढ़ तक 1490 रुपये है. इतना किराया देखकर ही यात्री चौंक रहे हैं और त्योहार पर ट्रेन से सफर करने से दूर भाग रहे हैं.
महंगे किराए पर क्या कहते हैं अधिकारीः दैनिक यात्री एसोसिएशन के अध्यक्ष एसएस उप्पल का कहना है कि त्योहारों पर ट्रेनों में सीटों की मारामारी कम नहीं हो रही है. त्योहारी सीजन में स्पेशल ट्रेनों की घोषणा करके यात्रियों से महंगा किराया क्यों लिया जा रहा है. जबकि स्पेशल ट्रेनों का संचालन आम ट्रेनों की तर्ज पर होता है. परिवहन निगम के प्रवक्ता अजीत सिंह का कहना है कि रोडवेज बसों का किराया पहले से ही तय होता है. फेस्टिवल में भी यात्रियों को पहले की ही तरह उसी किराए पर बस से सफर की सुविधा दी जाती है, इसलिए यात्री ट्रेनों से ज्यादा अब बसों को तरजीह देने लगे हैं.