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तीन साल से प्रमोशन के राह देख रहे लोक निर्माण विभाग के अधिकारी - लखनऊ न्यूज

उत्तर प्रदेश के लोक निर्माण विभाग के डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ ने यूपी सरकार से हाईकोर्ट में पदोन्नति के संबंध मे चल रहे बंच केस को मेंशन कराते हुए अंतिम निर्णय कराने मांग की है. पीडब्ल्यूडी डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ ने कहा कि विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के कारण पिछले तीन वर्ष से अधिशासी अभियंता सिविल के पद पर पदोन्नति नहीं हो पाई है.

लोक निर्माण विभाग उत्तर प्रदेश
लोक निर्माण विभाग उत्तर प्रदेश
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Published : Jun 7, 2021, 11:16 AM IST

Updated : Jun 7, 2021, 12:04 PM IST

लखनऊ: लोक निर्माण विभाग के डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ ने उत्तर प्रदेश सरकार से उच्च न्यायालय में पदोन्नति के संबंध मे चल रहे बंच केस को मेंशन कराते हुए अंतिम निर्णय कराने मांग की है. संघ के अध्यक्ष इंजीनियर एनडी द्विवेदी का आरोप है कि विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के कारण पिछले तीन वर्ष से अधिशासी अभियंता सिविल के पद पर पदोन्नति नहीं हो पाई है.



पदोन्नति से वंचित हैं अभियंता
पीडब्ल्यूडी डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ के मुताबिक विभाग में कुल 366 पदों में से 200 से अधिक पद रिक्त हैं. 105 सहायक अभियंता सिविल के पद भी विवाद में फंसे हैं. डेढ़ वर्ष में एक बार भी विभाग की तरफ से उच्च न्यायालय में बंच केस मेंशन नहीं किया गया. विभाग के कुछ अधिकारी बैकडोर से प्रभारी अधिशासी अभियंता बनाने की प्रक्रिया अपनाने जा रहे हैं, जिसका संघ हर स्तर पर विरोध करेगा. उन्होंने कहा है कि वर्ष 2002 से ही कुछ अधिकारी कर्मचारी मिलीभगत कर अपात्र डिग्रीधारकों को बैकडोर से सहायक अभियंता बनाने का कार्य करते आ रहे हैं. जिसको समय-समय पर उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न याचिकाओं में निरस्त किया जाता रहा है. ये प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा. सर्वोच्च न्यायालय ने 21 अगस्त 2019 को सभी याचिकाओं को उच्च न्यायालय इलाहाबाद रिमांड करते हुए 6 माह के अंदर निस्तारित करने का निर्देश दिया.

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मुख्य न्यायमूर्ति इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 31 जनवरी 2020 को निर्णय पारित करते हुए निर्देश दिया कि बंच केस में सभी लगभग 40 याचिका अंतिम सुनवाई के लिए परिपक्व हैं. उसकी सुनवाई खंडपीठ लखनऊ में ही की जाए. इसके लिए उन्होंने विशेष बेंच भी नामित कर दी. 20 फरवरी 2020 को विशेष बेंच ने सुनवाई प्रारंभ की. कोरोना संक्रमण के कारण कुछ अवधि तक सुनवाई बाधित रही. बाद में नामित बेंच सुनवाई के लिए फिर से उपलब्ध रही. 20 जुलाई 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने फिर उच्च न्यायालय को इस प्रकरण की अंतिम सुनवाई त्वरित गति से करने का निर्देश दिया. इस बंच केस के लंबित होने के कारण सहायक अभियंता से अधिशासी अभियंता के पदों पर पदोन्नति पिछले तीन साल से रुकी हुई है. इससे 105 सहायक अभियंता सिविल के पद पर भी 7 साल से पदोन्नति रुकी हुई है. विभागीय अधिकारियों ने इस संबंध में कोई भी कदम नहीं उठाया है. पिछले डेढ़ साल में एक बार भी उच्च न्यायालय में विभाग की तरफ से बंच केस मेंशन नहीं किया गया.

अधिकारियों की उदासीनता से नहीं निकल रहा हल
इंजीनियर एनडी द्विवेदी का कहना है कि जब विभागीय अधिकारियों से इस संबंध में कहा जाता है तो वह स्वयं न जाकर लिपिक संवर्ग के कर्मचारियों को इस कार्य के लिए भेजते हैं जो न तो अधिकृत हैं न ही उन्हें कोई रिस्पॉन्स मिलता है. इस प्रकार विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के कारण अधिशासी अभियंता व सहायक अभियंता के पद भारी संख्या में कई वर्षों से रिक्त हैं. एक अधिकारी को चार-चार पदों के चार्ज दिए गए हैं. बैकडोर से कुछ अधिकारी विवादित सहायक अभियंताओं को अधिशासी अभियंता का प्रभार देने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि इन्हें उच्च न्यायालय में केस मेंशन कराकर अंतिम सुनवाई करानी चाहिए.

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लखनऊ: लोक निर्माण विभाग के डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ ने उत्तर प्रदेश सरकार से उच्च न्यायालय में पदोन्नति के संबंध मे चल रहे बंच केस को मेंशन कराते हुए अंतिम निर्णय कराने मांग की है. संघ के अध्यक्ष इंजीनियर एनडी द्विवेदी का आरोप है कि विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के कारण पिछले तीन वर्ष से अधिशासी अभियंता सिविल के पद पर पदोन्नति नहीं हो पाई है.



पदोन्नति से वंचित हैं अभियंता
पीडब्ल्यूडी डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ के मुताबिक विभाग में कुल 366 पदों में से 200 से अधिक पद रिक्त हैं. 105 सहायक अभियंता सिविल के पद भी विवाद में फंसे हैं. डेढ़ वर्ष में एक बार भी विभाग की तरफ से उच्च न्यायालय में बंच केस मेंशन नहीं किया गया. विभाग के कुछ अधिकारी बैकडोर से प्रभारी अधिशासी अभियंता बनाने की प्रक्रिया अपनाने जा रहे हैं, जिसका संघ हर स्तर पर विरोध करेगा. उन्होंने कहा है कि वर्ष 2002 से ही कुछ अधिकारी कर्मचारी मिलीभगत कर अपात्र डिग्रीधारकों को बैकडोर से सहायक अभियंता बनाने का कार्य करते आ रहे हैं. जिसको समय-समय पर उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न याचिकाओं में निरस्त किया जाता रहा है. ये प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा. सर्वोच्च न्यायालय ने 21 अगस्त 2019 को सभी याचिकाओं को उच्च न्यायालय इलाहाबाद रिमांड करते हुए 6 माह के अंदर निस्तारित करने का निर्देश दिया.

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मुख्य न्यायमूर्ति इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 31 जनवरी 2020 को निर्णय पारित करते हुए निर्देश दिया कि बंच केस में सभी लगभग 40 याचिका अंतिम सुनवाई के लिए परिपक्व हैं. उसकी सुनवाई खंडपीठ लखनऊ में ही की जाए. इसके लिए उन्होंने विशेष बेंच भी नामित कर दी. 20 फरवरी 2020 को विशेष बेंच ने सुनवाई प्रारंभ की. कोरोना संक्रमण के कारण कुछ अवधि तक सुनवाई बाधित रही. बाद में नामित बेंच सुनवाई के लिए फिर से उपलब्ध रही. 20 जुलाई 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने फिर उच्च न्यायालय को इस प्रकरण की अंतिम सुनवाई त्वरित गति से करने का निर्देश दिया. इस बंच केस के लंबित होने के कारण सहायक अभियंता से अधिशासी अभियंता के पदों पर पदोन्नति पिछले तीन साल से रुकी हुई है. इससे 105 सहायक अभियंता सिविल के पद पर भी 7 साल से पदोन्नति रुकी हुई है. विभागीय अधिकारियों ने इस संबंध में कोई भी कदम नहीं उठाया है. पिछले डेढ़ साल में एक बार भी उच्च न्यायालय में विभाग की तरफ से बंच केस मेंशन नहीं किया गया.

अधिकारियों की उदासीनता से नहीं निकल रहा हल
इंजीनियर एनडी द्विवेदी का कहना है कि जब विभागीय अधिकारियों से इस संबंध में कहा जाता है तो वह स्वयं न जाकर लिपिक संवर्ग के कर्मचारियों को इस कार्य के लिए भेजते हैं जो न तो अधिकृत हैं न ही उन्हें कोई रिस्पॉन्स मिलता है. इस प्रकार विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के कारण अधिशासी अभियंता व सहायक अभियंता के पद भारी संख्या में कई वर्षों से रिक्त हैं. एक अधिकारी को चार-चार पदों के चार्ज दिए गए हैं. बैकडोर से कुछ अधिकारी विवादित सहायक अभियंताओं को अधिशासी अभियंता का प्रभार देने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि इन्हें उच्च न्यायालय में केस मेंशन कराकर अंतिम सुनवाई करानी चाहिए.

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Last Updated : Jun 7, 2021, 12:04 PM IST
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