लखनऊ : कोई भी अच्छा अनुवादक सिर्फ कोई कोर्स करने से नहीं बन सकता है, बल्कि लगातार प्रयास करने वाला अपने आप ही एक अच्छा अनुवादक बन जाता है. यह सीख जेएनयू के अरबी एवं अफ्रीकन स्टडीज के अध्यक्ष प्रो रिजवानुर्रहमान ने बुधवार को विद्यार्थियों को दी. वह ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय (Khwaja Moinuddin Chishti Language University) में भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय, केंद्र सरकार) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे. इंटरनेट टूल्स के माध्यम से अनुवाद : चुनौतियां एवं समाधान विषय पर दूसरे दिन प्रो. रिजवानुर्रहमान ने अनुवाद की बारीकियों को सहज भाषा में विद्यार्थियों को समझाया.
उन्होंने बताया कि अनुवाद अपनी मातृभाषा में करना सबसे आसान होता है और अनुवाद करने से पूर्व दोनों भाषाओं का ज्ञान होना अति आवश्यक है. उन्होंने बताया कि मशीनी ट्रांसलेशन अभी इतना सक्षम नहीं हो पाया है कि वह हर तरह का अनुवाद कर सके. कार्यक्रम के तकनीकी सत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रो. सूरज बहादुर थापा ने इंटरनेट माध्यमों से साहित्यिक कृतियों के अनुवाद की चुनौतियों के विषय पर अपना वक्तव्य दिया. उन्होंने हिंदी के महान साहित्यकारों जैसे मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि के साहित्यों के विषय और उसके अनुवाद को करने की मूलभूत बातें प्रायोगिक रूप से विद्यार्थियों के साथ साझा कीं.
उन्होंने विद्यार्थियों से लोकल होने की बात कही और उन्हें समझाया कि अनुवाद करने से पहले उन्हें स्थानीय भाषा पर पकड़ बना लेनी चाहिए. दूसरे सत्र की वक्ता आईईटी लखनऊ की डॉ. प्रोमिला बहादुर ने ऑनलाइन टूल्स के माध्यम से संस्कृत के अनुवाद के बारे में अपने विचार रखे. उन्होंने ऑनलाइन उपलब्ध विभिन्न प्लेटफार्म और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से अनुवाद में आने वाली चुनौतियों को दूर करने का रास्ता विद्यार्थियों को सुझाया.