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UP schools : स्कूलों की कैंटीन में चिप्स, नूडल्स समेत सभी फास्ट फूड की बिक्री पर रोक लगाने की तैयारी

यूपी में सरकारी व गैर सरकारी स्कूलों (UP schools) की कैंटीन नें फास्टफूड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी है. ये फैसला उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने लिया है.

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Published : Mar 13, 2023, 5:20 PM IST

Updated : Mar 13, 2023, 8:48 PM IST

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में सरकारी और गैर सरकारी नर्सरी से लेकर इंटर कॉलेज की कैंटीन में चिप्स, चाउमीन और बर्गर नहीं बिक सकेंगे. अगर बेचे गए तो सख्त कार्रवाई भी की जा सकती है. ये फैसला उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने किया है, इसके लिए सभी जिलों के जिलाधिकारियों को एक पत्र भी भेज दिया गया है. आयोग का कहना है कि तीन साल पहले स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने स्कूल, कॉलेजों में बिकने वाली खाद्य सामग्रियों को लेकर भारत के राजपत्र जारी किया था, जिसके कैंटीन में फास्टफूड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा गया था. बावजूद इसके अब भी बिक्री बदस्तूर जारी है, जिससे बच्चों के शरीर में गलत प्रभाव पड़ रहा है.



यूपी बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी कहती हैं कि लोग कहते हैं कि आज के बच्चों और बच्चियों का शरीर कम उम्र में बड़ा दिखने लगा है. वजन बढ़ना या फिर हार्मोनल परिवर्तन ये बच्चों में आम सा हो गया है. इसके पीछे फास्ट फूड जैसे चिप्स, नूडल्स, बर्गर या फिर अन्य खाद्य सामग्री ही कारण होते हैं, जो बच्चों को आसानी से स्कूल कॉलेज में उपलब्ध हो जाते हैं. डॉक्टर्स कई बार फास्टफूड से दूरी बनाने के लिए कह चुके हैं, लेकिन इसकी धड़ल्ले से बिक्री होने के कारण बच्चे इससे दूरी नहीं बना पा रहे हैं. इसलिए आयोग ने राज्य के सभी जिलाधिकारियों को पत्र लिखा है. जिसमें ये कहा गया है कि बच्चों में मोटापा, गैर संचारी, कुपोषण, हार्ट अटैक, निमोनिया व लंबाई न बढ़ना जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं. इसके चलते राज्य में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण अधिसूचना का पालन कराना सुनिश्चित किया जाए.


स्कूलों की कैंटीन से हटाई जाए फास्ट फूड : आयोग

आयोग सदस्य ने जिलाधिकारियों को कहा है कि जिले के सरकारी, गैर सरकारी अस्पतालों, आंगनबाड़ी केंद्रों, विद्यालयों, मदरसों और हाॅस्टल के 18 साल तक के बच्चों को मानक के अनुसार, सुरक्षित और संतुलित खाद्य पदार्थ के उपयोग के लिए जागरूकता अभियान चलाएं. साथ ही इन संस्थानों में मौजूद कैंटीन व 100 मीटर की रेंज में मौजूद दुकानों से चिप्स, नूडल्स, बर्गर समेत अन्य फास्ट फूड की बिक्री पर पूर्णतया रोक लगाई जाए.

आयोग सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी ने कहा कि 'उन्होंने जिलाधिकारियों से न सिर्फ स्कूल और हॉस्टल की कैंटीन से जंक या फास्ट फूड हटाने के लिए कहा है बल्कि उसके सौ मीटर की रेंज में मौजूद दुकानों में भी बच्चों को फास्ट फूड की बिक्री करने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा है. उन्होंने कहा कि अभी लेटर लिखा गया है, कुछ समय के बाद आयोग खुद औचक निरीक्षण कर असल हकीकत देखेगा. यदि तब भी स्कूलों में बिक्री चलती रहती है तो सख्त कदम उठाए जाएंगे. क्योंकि बच्चों की सेहत से खिलवाड़ करने का किसी को भी हक नहीं है.'

भारत के राजपत्र में स्कूल में फास्ट फूड की बिक्री पर है रोक : वर्ष 2020 को भारत के राजपत्र में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने स्कूल व कॉलेजों के लिए खाद्य सुरक्षा के लिए कई सख्त नियम जारी किए थे, जिसमें खाद्य सामग्री की बिक्री को लेकर भी कई भाग थे. राजपत्र के अनुसार, स्कूल परिसर या फिर हॉस्टल में उच्च सैचुरेटेड फैट व ट्रांस फैट और सोडियम वाले खाद्य उत्पाद नहीं बेचे जाएंगे. इसके अलावा स्कूल कॉलेज में होने वाली खेल प्रतियोगिता या फिर अन्य प्रतियोगिता में मिलने वाले उपहारों में भी इस तरह की खाद्य सामग्री को नहीं दिया जाएगा.


ट्रांस फैट बच्चों के लिए है खतरनाक : डॉ. अंकित शुक्ला बताते हैं कि जंक फूड में वही ट्रांस फैट की मात्रा काफी अधिक होती है, जिसकी स्कूल की कैंटीन में बिक्री करने पर रोक लगी हुई है. डॉ. अंकित के मुताबिक, जंक फूड्स का सही प्रकार से पाचन नहीं हो पाता है, जिससे ये शरीर में जमा होने लगता है और कैलौरी बढ़ते लगती है. इसी कारण बच्चों को मोटापे की समस्या हो जाती है. उन्होंने बताया बीते कुछ वर्षों में देखा गया है कि बच्चों में मोटापा काफी बढ़ रहा है, वजन बढ़ने से बच्चों को टाइप-2 डायबिटीज भी हो रही है, यही नहीं फास्ट फूड से पेट और लिवर से संबंधित बीमारियां होने का भी खतरा रहता है. अगर बच्चे नियमित रूप से जंक फूड खाते हैं तो उनको कम उम्र में ही फैटी लिवर की परेशानी हो सकती है और आंतों में संक्रमण भी हो सकता है. ऐसे में कम से कम स्कूलों की कैंटीन और उसके आस-पास की दुकानों में यदि ऐसी खाद्य सामग्री की बिक्री में रोक लगती है तो आने वाली पीढ़ियों में ऐसी बीमारी नहीं होंगी.

यह भी पढ़ें : Lucknow के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में पहली बार होंगे रग्बी के मैच, ये है शेड्यूल

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में सरकारी और गैर सरकारी नर्सरी से लेकर इंटर कॉलेज की कैंटीन में चिप्स, चाउमीन और बर्गर नहीं बिक सकेंगे. अगर बेचे गए तो सख्त कार्रवाई भी की जा सकती है. ये फैसला उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने किया है, इसके लिए सभी जिलों के जिलाधिकारियों को एक पत्र भी भेज दिया गया है. आयोग का कहना है कि तीन साल पहले स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने स्कूल, कॉलेजों में बिकने वाली खाद्य सामग्रियों को लेकर भारत के राजपत्र जारी किया था, जिसके कैंटीन में फास्टफूड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा गया था. बावजूद इसके अब भी बिक्री बदस्तूर जारी है, जिससे बच्चों के शरीर में गलत प्रभाव पड़ रहा है.



यूपी बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी कहती हैं कि लोग कहते हैं कि आज के बच्चों और बच्चियों का शरीर कम उम्र में बड़ा दिखने लगा है. वजन बढ़ना या फिर हार्मोनल परिवर्तन ये बच्चों में आम सा हो गया है. इसके पीछे फास्ट फूड जैसे चिप्स, नूडल्स, बर्गर या फिर अन्य खाद्य सामग्री ही कारण होते हैं, जो बच्चों को आसानी से स्कूल कॉलेज में उपलब्ध हो जाते हैं. डॉक्टर्स कई बार फास्टफूड से दूरी बनाने के लिए कह चुके हैं, लेकिन इसकी धड़ल्ले से बिक्री होने के कारण बच्चे इससे दूरी नहीं बना पा रहे हैं. इसलिए आयोग ने राज्य के सभी जिलाधिकारियों को पत्र लिखा है. जिसमें ये कहा गया है कि बच्चों में मोटापा, गैर संचारी, कुपोषण, हार्ट अटैक, निमोनिया व लंबाई न बढ़ना जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं. इसके चलते राज्य में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण अधिसूचना का पालन कराना सुनिश्चित किया जाए.


स्कूलों की कैंटीन से हटाई जाए फास्ट फूड : आयोग

आयोग सदस्य ने जिलाधिकारियों को कहा है कि जिले के सरकारी, गैर सरकारी अस्पतालों, आंगनबाड़ी केंद्रों, विद्यालयों, मदरसों और हाॅस्टल के 18 साल तक के बच्चों को मानक के अनुसार, सुरक्षित और संतुलित खाद्य पदार्थ के उपयोग के लिए जागरूकता अभियान चलाएं. साथ ही इन संस्थानों में मौजूद कैंटीन व 100 मीटर की रेंज में मौजूद दुकानों से चिप्स, नूडल्स, बर्गर समेत अन्य फास्ट फूड की बिक्री पर पूर्णतया रोक लगाई जाए.

आयोग सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी ने कहा कि 'उन्होंने जिलाधिकारियों से न सिर्फ स्कूल और हॉस्टल की कैंटीन से जंक या फास्ट फूड हटाने के लिए कहा है बल्कि उसके सौ मीटर की रेंज में मौजूद दुकानों में भी बच्चों को फास्ट फूड की बिक्री करने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा है. उन्होंने कहा कि अभी लेटर लिखा गया है, कुछ समय के बाद आयोग खुद औचक निरीक्षण कर असल हकीकत देखेगा. यदि तब भी स्कूलों में बिक्री चलती रहती है तो सख्त कदम उठाए जाएंगे. क्योंकि बच्चों की सेहत से खिलवाड़ करने का किसी को भी हक नहीं है.'

भारत के राजपत्र में स्कूल में फास्ट फूड की बिक्री पर है रोक : वर्ष 2020 को भारत के राजपत्र में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने स्कूल व कॉलेजों के लिए खाद्य सुरक्षा के लिए कई सख्त नियम जारी किए थे, जिसमें खाद्य सामग्री की बिक्री को लेकर भी कई भाग थे. राजपत्र के अनुसार, स्कूल परिसर या फिर हॉस्टल में उच्च सैचुरेटेड फैट व ट्रांस फैट और सोडियम वाले खाद्य उत्पाद नहीं बेचे जाएंगे. इसके अलावा स्कूल कॉलेज में होने वाली खेल प्रतियोगिता या फिर अन्य प्रतियोगिता में मिलने वाले उपहारों में भी इस तरह की खाद्य सामग्री को नहीं दिया जाएगा.


ट्रांस फैट बच्चों के लिए है खतरनाक : डॉ. अंकित शुक्ला बताते हैं कि जंक फूड में वही ट्रांस फैट की मात्रा काफी अधिक होती है, जिसकी स्कूल की कैंटीन में बिक्री करने पर रोक लगी हुई है. डॉ. अंकित के मुताबिक, जंक फूड्स का सही प्रकार से पाचन नहीं हो पाता है, जिससे ये शरीर में जमा होने लगता है और कैलौरी बढ़ते लगती है. इसी कारण बच्चों को मोटापे की समस्या हो जाती है. उन्होंने बताया बीते कुछ वर्षों में देखा गया है कि बच्चों में मोटापा काफी बढ़ रहा है, वजन बढ़ने से बच्चों को टाइप-2 डायबिटीज भी हो रही है, यही नहीं फास्ट फूड से पेट और लिवर से संबंधित बीमारियां होने का भी खतरा रहता है. अगर बच्चे नियमित रूप से जंक फूड खाते हैं तो उनको कम उम्र में ही फैटी लिवर की परेशानी हो सकती है और आंतों में संक्रमण भी हो सकता है. ऐसे में कम से कम स्कूलों की कैंटीन और उसके आस-पास की दुकानों में यदि ऐसी खाद्य सामग्री की बिक्री में रोक लगती है तो आने वाली पीढ़ियों में ऐसी बीमारी नहीं होंगी.

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Last Updated : Mar 13, 2023, 8:48 PM IST
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