लखनऊ : प्रदेश में एक बार फिर बिजली की दरें बढ़ाने की तैयारी हो रही है. बिजली कंपनियों ने विगत दिवस उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग को वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 23 फीसद तक बिजली महंगी करने का प्रस्ताव (Preparation to increase electricity rates) पेश किया. यदि आयोग ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया तो उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दरें 18 से 23 फीसद तक बढ़ सकती हैं. इस वृद्धि से किसानों, घरेलू उपभोक्ताओं और व्यावसायिक कनेक्शन धारकों यानी हर वर्ग पर प्रभाव पड़ेगा. अचरज की बात है कि उत्तर प्रदेश देश के पांच सबसे महंगी विद्युत दरें वसूलने वाले राज्यों में शामिल है, फिर भी और बिजली महंगी करने की बात हो रही है. आज के दौर में बिजली एक ऐसी आवश्यकता बन गई है, जिसके बिना आम जीवन, व्यवसाय और कृषि संभव ही नहीं है. दरें बढ़ाने के बजाय बिजली चोरी और लाइन लॉस रोककर भी बिजली सस्ती की जा सकती है. इस विषय में सरकारों की कोशिशें हमेशा आधी-अधूरी ही रही हैं और खामियाजा जनता को भुगतना होता है.
बिजली कंपनियों के दबाव में सरकारें उपभोक्ताओं पर साल दर साल महंगी बिजली का बोझ लादती चली गईं, हालांकि तमाम ऐसे उपाय थे जिनके माध्यम से उपभोक्ताओं को राहत दी जा सकती थी. सरकार कई निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीदती है. साथ ही बिजली चोरी रोकने पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता. फैक्ट्रियों और तमाम व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में धड़ल्ले से बिजली चोरी होती है और कई बार तो बिजली कर्मियों की मिलीभगत भी सामने आ चुकी है. इसके बावजूद कभी कोई बड़ा प्रदेश व्यापी अभियान चोरी रोकने के लिए नहीं चलता. यह बिजली चोरी और ठीक से अंकुश लगे तो दरें अपने आप कम हो जाएंगी और ईमानदार उपभोक्ताओं पर बोझ नहीं बढ़ेगा. बिजली विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों के लिए बिजली मुफ्त होने की वजह से अपव्यय भी बहुत होता है. तमाम स्थानों पर बिजली की बर्बादी देखी जा सकती है, पर इसे रोकने के लिए कोई सटीक योजना नहीं मिल पाती. लाइन लॉस कम करके भी उपभोक्ताओं को राहत दी जा सकती है.
इस संबंध में उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा कहते हैं कि 'उत्तर प्रदेश उन टॉप फाइव राज्यों में शामिल है, जहां बिजली सबसे महंगी है.' वह इसका कारण भी बताते हैं और कहते हैं कि 'प्रदेश की बिजली कंपनियां अपनी अक्षमताओं का खामियाजा उपभोक्ताओं पर डालना चाहती हैं, जो गलत है. प्रदेश में बिजली दर में जो बढ़ोतरी की जाती है, उसके अनुपात में राजस्व वसूली नहीं हो पाती है, वहीं साल में लगभग पांच हजार करोड़ की बिजली चोरी होती है. उस पर अंकुश नहीं लग पाता. फिजूलखर्ची बहुत होती है. यही सब कारण हैं प्रदेश में बिजली महंगी होने के.' अवधेश वर्मा कहते हैं कि 'कई निजी कंपनियों से सरकार महंगी बिजली भी खरीदती है. उसका खामियाजा भी अतत: उपभोक्ता को ही झेलना पड़ता है.'
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा लाइन लॉस के विषय में बताते हुए कहते हैं कि '2022-23 में यदि लाइन लॉस की बात करें तो 10.56 प्रतिशत पर टैरिफ तय हुआ है, किंतु विभाग इसे बढ़ाना चाहता है. अब विभाग इस बढ़ाकर 14.9 प्रतिशत करना चाहता है. इसका मतलब यह हुआ कि विभाग अपनी अक्षमता का खामियाजा जनता पर डालना चाहता हो, जो कि गलत है.' वर्मा कहते हैं 'बिजली के बिल इतने उलझाऊ होते हैं कि उपभोक्ता समझ ही नहीं पाते कि उन्हें प्रति यूनिट कितने पैसे देने पड़ रहे हैं. हम टैरिफ सरलीकरण का विषय बार-बार उठाते हैं, पर इस ओर कोई ध्यान ही नहीं देता है. टू पार्ट टैरिफ खत्म कर सीधे एनर्जी चार्ज पर आना चाहिए, लेकिन कंपनियां यह होने नहीं देतीं. उपभोक्ताओं की इस दिक्कत के लिए भी बिजली कंपनियां जिम्मेदार हैं. उन्हें इस संबंध में प्रस्ताव लाना चाहिए, लेकिन वह नहीं लातीं.'
वह कहते हैं कि 'मैंने नियामक में याचिका दाखिल की है कि प्रदेश के उपभोक्ताओं के बिजली कंपनियों पर पच्चीस हजार एक सौ तैंतीस करोड़ रुपये बकाया हैं, उसके अनुपात में बिजली दरों में कमी की जाए. बिजली कंपनियों की सहूलियत के लिए पैंतीस प्रतिशत एकमुश्त दरों में कमी के प्रस्ताव को पांच साल की किस्तों में धीरे-धीरे भी किया जा सकता है. वह कहते हैं प्रदेश में बिजली का निजीकरण होने वाला है. सरकार इस दिशा में आगे बढ़ चुकी है.'