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IAS बनने का सपना छोड़ GI प्रोडक्ट को दिया ऑनलाइन प्लेटफॉर्म

योगी सरकार ने देश के शिल्पियों के हुनर को जीआई उत्पाद के रूप में विश्व में पहचान दिलाई है. जिससे कोरोना काल में भी जीआई उत्पादों पर लोगों का भरोसा रहा और मांग बनी रही. लॉकडाउन में जब दुकानें बंद रही तब भी इस उत्पाद की बिक्री देश और विदेशों में ऑनलाइन होती रही. ऐसे में वाराणसी के प्रतीक बी सिंह ने मेक इन इंडिया कांसेप्ट के तहत शॉपिंगकार्ट-24 नामक ई-कॉमर्स की साइट बनाकर जीआई उत्पादों की बिक्री कर रहे हैं.

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Published : Jul 3, 2021, 12:41 PM IST

जीआई प्रोडक्ट को मिला ऑनलाइन प्लेटफॉर्म.
जीआई प्रोडक्ट को मिला ऑनलाइन प्लेटफॉर्म.

वाराणसी: आईएएस बनकर देश की सेवा करने का सपना छोड़कर प्रतीक बी सिंह ने एक स्टार्टअप की शुरुआत कर दी. उद्यमी ने योगी सरकार के स्टार्टअप योजना का लाभ उठाते हुए कोविड काल में जीआई उत्पादों का लाखों का कारोबार किया. ये कोराबार सिर्फ ऑनलाइन हुआ है और संक्रमण के भयानक दौर में भी न सिर्फ जीआई को इंटरनेशनल लेवल पर ले जाने में बड़ी मदद मिली. बल्कि मोटा मुनाफा भी कमाया.

खुद के साथ कारीगरों को फायदा

वाराणसी के रहने वाले प्रतीक बी सिंह ने वेब साइट पर सिर्फ जीआई उत्पाद की बिक्री करते हैं. अब कुछ ओडीओपी उत्पादों को भी ऑनलाइन प्लेटफार्म देना शुरू किया है. प्रतीक ने कोरोना काल में भी लाखों का व्यवसाय कर डाला है. आईएएस बनने की चाह रखने वाले इस युवा को स्टार्टअप योजना ने आसमान में उड़ने की राह दिखा दी. अब प्रतीक उन हुनरमंद लोगों को प्लेटफोर्म दे रहे है. जिन्होंने अपने हुनर का लोहा पूरी दुनिया से मनवाया है.

GI प्रोडक्ट को दिया ऑनलाइन प्लेटफॉर्म.

पूरे देश के जीआई प्रोडक्ट एक जगह

370 जीआई उत्पादों में से देश के 299 जीआई उत्पादों (जिनमें से उत्तर प्रदेश से अकेले 27 जीआई उत्पाद हैं) को एक जगह शॉपिंगकार्ट-24 नामक ई-कॉमर्स की साइट पर लाकर भारत के हस्तकला शिल्पियों के हुनर को पूरे विश्व में पहुंचा रहे हैं. खाने, सजाने, संगीत, खिलौने, पहनने से लेकर रोज इस्तमाल होने वाली जीआई उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री विदेशों में खूब हो रही है. वाराणसी के लकड़ी के खिलौना, बनारसी साड़ी, गुलाबी मीनाकारी, पंजादारी, जरी जरदोजी, सिद्धार्थ नगर का काला नमक चावल, गोरखपुर का टेराकोटा, गाजीपुर की वाल हैंगिंग के अलावा असम, मेघालय, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र के कई अलग-अलग जिलों में बनने वाले खास तरह के प्रोडक्ट, जिनको डीआई का टैग मिल चुका है. उनकी बिक्री इस प्लेटफार्म के जरिए एक साथ, एक ही जगह पर बिक्री की जा रही है. जो अपने आप में अब तक पहली बार हुआ है. प्रतीक बताते हैं कि अमेरिका से जीआई उत्पादों की मांग ज्यादा है. जीआई उत्पाद कि खास बात ये भी होती ये सभी उत्पाद हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट उत्पाद होते हैं.

इसे भी पढ़ें- वाराणसी के इस वास्तुविद को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड ने दिया वास्तु गुरु का सम्मान

2016 में की शुरुआत

प्रतीक बताते हैं कि 2014 में उन्होंने आईएएस बनने के अपने सपने को छोड़ दिया, क्योंकि 2014 तक उन्होंने दो बार इस परीक्षा के लिए प्रयास करते हुए सिविल की तैयारी कर परीक्षा दी, लेकिन सफलता नहीं मिली तो उन्होंने कुछ अपना करने की ठानी. पहले कुछ वेबसाइट पर काम करके उन्होंने इस काम को समझा. फिर केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय से संपर्क किया और केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु से मुलाकात भी की. इसके बाद पूरी प्लानिंग तैयार कर सुरेश प्रभु को फाइल भेजी. साथ ही पहली बार जीआई प्रोडक्ट को डिजिटल प्लेटफार्म देने की योजना तैयार की.

प्रतीक ने बताया कि 2016 में स्टार्टअप कंपनी की शुरुआत की थी. उसके बाद जीआई उत्पादों को धीरे-धीरे ऑनलाइन लाना शुरू किया. कोरोना काल में लॉकडाउन ने जब दुकानें खुलना बंद हुईं तो प्रतीक ने ऑनलाइन बाजार का दरवाजा दुनिया के लिए खोल दिया. अप्रैल से अब तक करीब 7 लाख का जीआई उत्पाद देश और विदेशों में बेच चुके है. पिछले साल हुए लॉकडाउन के दौरान प्रतीक ने 20 से 30 तक की कमाई की थी.

ट्रिपल ए के फार्मूले से बढ़े आगे

प्रतीक बी सिंह ने बताया कि पहले काशी के जीआई टैगिंग प्राप्त उत्पादों को ऑनलाइन बेचना शुरू किया. फिर यूपी के 27 प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लाया. इनकी कंपनी से डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्रीज एंड इंटरनल ट्रेड ( DPIIT ) से मान्यता प्राप्त है. जिससे ई-कॉमर्स में मदद मिलती है. अपने कस्टमर के लिए ये कंपनी हुनरमंद कलाकारों के लाइव प्रदर्शन भी करवाती है. जिसे बाद में सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी कला को और लोगों तक पहुंचने में भी मदद मिलती है. शिल्पियों को ट्रिपल "ए" एजुकेट, एम्पॉवर, एनरिच के फॉर्मूले से समृद्ध करते हैं.

इसे भी पढ़ें- वाराणसी में मां गंगा में जल्द उतरेगा सी-प्लेन, हो रही तैयारी

क्या है जीआई टैग

जीआई ( जियोग्राफिकल इंडिकेशन ) यानी भौगोलिक संकेतक या जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऐसे उत्पाद होते हैं. जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है. विशेष राज्य विशेष जिले में तैयार होने वाले प्रोडक्ट को जीआई टैग मिलने के बाद उनका उत्पादन और किसी स्थान पर नहीं किया जा सकता. यानी वह प्रोडक्ट पूरी तरह से उसी स्थान या उसी जिले के नाम से जाने जाते हैं, जहां से इनका जन्म या निर्माण शुरू हुआ है.

वाराणसी: आईएएस बनकर देश की सेवा करने का सपना छोड़कर प्रतीक बी सिंह ने एक स्टार्टअप की शुरुआत कर दी. उद्यमी ने योगी सरकार के स्टार्टअप योजना का लाभ उठाते हुए कोविड काल में जीआई उत्पादों का लाखों का कारोबार किया. ये कोराबार सिर्फ ऑनलाइन हुआ है और संक्रमण के भयानक दौर में भी न सिर्फ जीआई को इंटरनेशनल लेवल पर ले जाने में बड़ी मदद मिली. बल्कि मोटा मुनाफा भी कमाया.

खुद के साथ कारीगरों को फायदा

वाराणसी के रहने वाले प्रतीक बी सिंह ने वेब साइट पर सिर्फ जीआई उत्पाद की बिक्री करते हैं. अब कुछ ओडीओपी उत्पादों को भी ऑनलाइन प्लेटफार्म देना शुरू किया है. प्रतीक ने कोरोना काल में भी लाखों का व्यवसाय कर डाला है. आईएएस बनने की चाह रखने वाले इस युवा को स्टार्टअप योजना ने आसमान में उड़ने की राह दिखा दी. अब प्रतीक उन हुनरमंद लोगों को प्लेटफोर्म दे रहे है. जिन्होंने अपने हुनर का लोहा पूरी दुनिया से मनवाया है.

GI प्रोडक्ट को दिया ऑनलाइन प्लेटफॉर्म.

पूरे देश के जीआई प्रोडक्ट एक जगह

370 जीआई उत्पादों में से देश के 299 जीआई उत्पादों (जिनमें से उत्तर प्रदेश से अकेले 27 जीआई उत्पाद हैं) को एक जगह शॉपिंगकार्ट-24 नामक ई-कॉमर्स की साइट पर लाकर भारत के हस्तकला शिल्पियों के हुनर को पूरे विश्व में पहुंचा रहे हैं. खाने, सजाने, संगीत, खिलौने, पहनने से लेकर रोज इस्तमाल होने वाली जीआई उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री विदेशों में खूब हो रही है. वाराणसी के लकड़ी के खिलौना, बनारसी साड़ी, गुलाबी मीनाकारी, पंजादारी, जरी जरदोजी, सिद्धार्थ नगर का काला नमक चावल, गोरखपुर का टेराकोटा, गाजीपुर की वाल हैंगिंग के अलावा असम, मेघालय, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र के कई अलग-अलग जिलों में बनने वाले खास तरह के प्रोडक्ट, जिनको डीआई का टैग मिल चुका है. उनकी बिक्री इस प्लेटफार्म के जरिए एक साथ, एक ही जगह पर बिक्री की जा रही है. जो अपने आप में अब तक पहली बार हुआ है. प्रतीक बताते हैं कि अमेरिका से जीआई उत्पादों की मांग ज्यादा है. जीआई उत्पाद कि खास बात ये भी होती ये सभी उत्पाद हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट उत्पाद होते हैं.

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2016 में की शुरुआत

प्रतीक बताते हैं कि 2014 में उन्होंने आईएएस बनने के अपने सपने को छोड़ दिया, क्योंकि 2014 तक उन्होंने दो बार इस परीक्षा के लिए प्रयास करते हुए सिविल की तैयारी कर परीक्षा दी, लेकिन सफलता नहीं मिली तो उन्होंने कुछ अपना करने की ठानी. पहले कुछ वेबसाइट पर काम करके उन्होंने इस काम को समझा. फिर केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय से संपर्क किया और केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु से मुलाकात भी की. इसके बाद पूरी प्लानिंग तैयार कर सुरेश प्रभु को फाइल भेजी. साथ ही पहली बार जीआई प्रोडक्ट को डिजिटल प्लेटफार्म देने की योजना तैयार की.

प्रतीक ने बताया कि 2016 में स्टार्टअप कंपनी की शुरुआत की थी. उसके बाद जीआई उत्पादों को धीरे-धीरे ऑनलाइन लाना शुरू किया. कोरोना काल में लॉकडाउन ने जब दुकानें खुलना बंद हुईं तो प्रतीक ने ऑनलाइन बाजार का दरवाजा दुनिया के लिए खोल दिया. अप्रैल से अब तक करीब 7 लाख का जीआई उत्पाद देश और विदेशों में बेच चुके है. पिछले साल हुए लॉकडाउन के दौरान प्रतीक ने 20 से 30 तक की कमाई की थी.

ट्रिपल ए के फार्मूले से बढ़े आगे

प्रतीक बी सिंह ने बताया कि पहले काशी के जीआई टैगिंग प्राप्त उत्पादों को ऑनलाइन बेचना शुरू किया. फिर यूपी के 27 प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लाया. इनकी कंपनी से डिपार्टमेंट ऑफ प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्रीज एंड इंटरनल ट्रेड ( DPIIT ) से मान्यता प्राप्त है. जिससे ई-कॉमर्स में मदद मिलती है. अपने कस्टमर के लिए ये कंपनी हुनरमंद कलाकारों के लाइव प्रदर्शन भी करवाती है. जिसे बाद में सोशल मीडिया के माध्यम से उनकी कला को और लोगों तक पहुंचने में भी मदद मिलती है. शिल्पियों को ट्रिपल "ए" एजुकेट, एम्पॉवर, एनरिच के फॉर्मूले से समृद्ध करते हैं.

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क्या है जीआई टैग

जीआई ( जियोग्राफिकल इंडिकेशन ) यानी भौगोलिक संकेतक या जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऐसे उत्पाद होते हैं. जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है. विशेष राज्य विशेष जिले में तैयार होने वाले प्रोडक्ट को जीआई टैग मिलने के बाद उनका उत्पादन और किसी स्थान पर नहीं किया जा सकता. यानी वह प्रोडक्ट पूरी तरह से उसी स्थान या उसी जिले के नाम से जाने जाते हैं, जहां से इनका जन्म या निर्माण शुरू हुआ है.

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